प्रश्न: 'आकांक्षी ज़िला' की अवधारणा एक नवाचार आधारित शासन मॉडल प्रस्तुत करती है। क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने में इसकी प्रभावशीलता का विश्लेषण कीजिये और इसके प्रभाव को बढ़ाने के लिये उपयुक्त सुधारों का सुझाव दीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम के संदर्भ में संक्षिप्त जानकारी देकर उत्तर दीजिये।
- आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम की प्रमुख उपलब्धियों की चर्चा कीजिये।
- कार्यक्रम के समक्ष आने वाली चुनौतियों और इसकी सीमाओं पर प्रकाश डालते हुए सुधार के उपाय सुझाइये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
जनवरी 2018 में शुरू किया गया आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम (ADP) एक लक्षित शासन दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है जिसका उद्देश्य भारत के 112 सबसे अविकसित ज़िलों में बदलाव लाना है।
- NITI आयोग द्वारा संचालित तथा एकीकरण, सहयोग और प्रतिस्पर्द्धा के सिद्धांतों से प्रेरित ADP का उद्देश्य क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करना है।
मुख्य भाग:
क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने में प्रभावशीलता:
- मुख्य सफलताएँ:
- डाटा-संचालित दृष्टिकोण: सामाजिक-आर्थिक विषयों में 49 प्रमुख प्रदर्शन संकेतकों (KPI) का प्रयोग करके प्रगति का आकलन किया जाता है। मासिक डेल्टा रैंकिंग डाटा-संचालित निर्णय लेने और उत्तरदायित्व को प्रोत्साहित करती है।
- स्थानीयकृत कार्यान्वयन: मुख्य चालक के रूप में राज्य ज़िला-विशिष्ट चुनौतियों के अनुरूप शासन को सक्षम बनाते हैं, जिससे प्रतिस्पर्द्धी और सहकारी संघवाद को बढ़ावा मिलता है।
- समावेशन और SDG स्थानीयकरण: सीमांत क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना सतत् विकास के लिये वर्ष 2030 एजेंडा के “लीव नो वन बिहाइंड (LNOB)” सिद्धांत के अनुरूप है।
- क्षमता निर्माण: NITI आयोग, मंत्रालयों, विकास भागीदारों और ज़िला स्तरीय अधिकारियों के बीच सहयोग से ज़मीनी स्तर पर शासन क्षमता में वृद्धि हुई है।
- प्रमुख क्षेत्रों में सुधार:
- स्वास्थ्य एवं पोषण: पोषण अभियान जैसे लक्षित हस्तक्षेपों के माध्यम से बाल कुपोषण और मातृ मृत्यु दर में कमी।
- बुनियादी ढाँचा विकास: पिछड़े क्षेत्रों में ग्रामीण विद्युतीकरण, आवास और सड़क निर्माण परियोजनाओं में तीव्रता लाना।
- चुनौतियाँ और सीमाएँ:
- असमान प्रगति: जबकि कुछ ज़िलों ने महत्त्वपूर्ण सुधार हासिल किया है, वहीं अन्य ज़िले विभिन्न प्रशासनिक अक्षमताओं और स्थानीय शासन की अकुशलताओं के कारण पिछड़ गए हैं।
- NITI आयोग की वर्ष 2018 की रिपोर्ट में कहा गया है कि दाहोद जैसे ज़िलों ने उल्लेखनीय सुधार दिखाया है, लेकिन बिहार के कई चिह्नित ज़िले शासन की अक्षमताओं और रसद संबंधी बाधाओं के कारण पिछड़ रहे हैं।
- सरल लक्ष्यों पर ध्यान: कार्यक्रम में अल्पकालिक, आसानी से प्राप्त किये जा सकने वाले लक्ष्यों पर ज़ोर दिया गया है, जिससे गरीबी और बेरोज़गारी जैसे संरचनात्मक व प्रणालीगत मुद्दों की उपेक्षा होने का खतरा है।
- उदाहरण के लिये, यद्यपि शिक्षा के बुनियादी अवसंरचना में सुधार हुआ है, फिर भी कई ज़िलों में अधिगम के परिणाम (जैसा कि ASER रिपोर्ट द्वारा संकेत दिया गया है) अभी भी निम्न स्तर पर हैं।
- डाटा की गुणवत्ता और विश्वसनीयता: ज़िलों द्वारा स्वयं-रिपोर्ट किये गए डाटा पर निर्भरता, प्रदर्शन मीट्रिक्स की सटीकता और विश्वसनीयता के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करती है।
- अत्यधिक कार्यभार वाले प्रशासन: ज़िला प्रशासन अनेक प्राथमिकताओं के कारण अत्यधिक तनावग्रस्त है, जिससे उनका केवल कार्यक्रम पर ही ध्यान केंद्रित करने की क्षमता सीमित हो जाती है।
- निजी क्षेत्र की सीमित भागीदारी: कार्यक्रम को अभी तक नवाचार और संसाधन जुटाने के लिये निजी क्षेत्र की भागीदारी का पूर्ण लाभ नहीं मिल पाया है।
- सुधार के लिये सुझाव
- संस्थागत क्षमता को मज़बूत बनाना:
- प्रभावी हस्तक्षेपों को डिज़ाइन करने और कार्यान्वित करने की उनकी क्षमता बढ़ाने के लिये ज़िला अधिकारियों को केंद्रित प्रशिक्षण प्रदान किया जाना आवश्यक है।
- अत्यधिक कार्यभार वाले ज़िला प्रशासन पर बोझ कम करने के लिये अतिरिक्त मानव संसाधन तैनात किया जाना चाहिये।
- अल्पकालिक लक्ष्यों से आगे अपना ध्यान व्यापक करना:
- गरीबी, बेरोज़गारी और क्षेत्रीय असमानता जैसे प्रणालीगत मुद्दों का समाधान दीर्घकालिक, संरचनात्मक सुधारों के साथ-साथ आसान उपायों के माध्यम से किया जाना आवश्यक है।
- सतत् आजीविका सृजित करने के लिये कौशल विकास पहलों को रोज़गार के अवसरों के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
- डाटा गुणवत्ता और निगरानी में सुधार:
- रैंकिंग के लिये प्रयुक्त स्व-रिपोर्ट किये गए डाटा को मान्य करने के लिये स्वतंत्र तृतीय-पक्ष ऑडिट स्थापित किया जाना आवश्यक है।
- गतिशील निर्णय लेने के लिये रियल टाइम डाटा एनालिसिस के प्रयोग को बढ़ाया जाना चाहिये।
- ज़िलों के बीच क्रॉस-लर्निंग को प्रोत्साहन:
- सफल मॉडलों की पुनरावृत्ति के लिये आकांक्षी ज़िलों में सर्वोत्तम प्रथाओं और नवीन समाधानों को साझा करने के लिये मंच बनाया जाना आवश्यक है।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाना:
- विकास परियोजनाओं के लिये अतिरिक्त संसाधन, प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता का लाभ उठाने के लिये निजी क्षेत्र व नागरिक समाज संगठनों के साथ साझेदारी करना।
- लाभ की संधारणीयता को बढ़ावा देना:
- स्थायी प्रभाव सुनिश्चित करने के लिये अल्पकालिक हस्तक्षेप से दीर्घकालिक विकास योजनाओं की ओर संक्रमण आवश्यक है।
- समग्र विकास के लिये ADP लक्ष्यों को डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसे अन्य राष्ट्रीय कार्यक्रमों के साथ संरेखित किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
ADP एक अभिनव शासन मॉडल है जो एकीकरण, सहयोग और प्रतिस्पर्द्धा के माध्यम से क्षेत्रीय असमानताओं को संतुलित करता है, जो ‘सबका साथ, सबका विकास’ की भावना को दर्शाता है। स्थानीय आकांक्षाओं का अभिनिर्धारण करके और उन्हें दिशा देकर, यह परिवर्तन के लिये एक प्रभाव उत्पन्न करता है। इन 112 ज़िलों के प्रत्येक गाँव का विकास सामाजिक न्याय और सतत् राष्ट्रीय प्रगति हासिल करने के लिये आवश्यक है।