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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न: "एच.एल. मेनकेन के कथन 'नैतिकता और आज्ञाकारिता' के बीच अंतर को समझते हुए, वर्तमान समय में व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सामाजिक ज़िम्मेदारी एवं नैतिक निर्णय लेने की भूमिका पर चर्चा कीजिये। यह उद्धरण आपको क्या संदेश देता है?" (150 शब्द)

    23 Jan, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • एच.एल. मेनकेन के कथन का औचित्य सिद्ध करते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
    • आज की दुनिया में नैतिकता के महत्त्व पर प्रकाश डालिये।
    • आज्ञाकारिता को दोधारी तलवार के रूप में समझना।
    • नैतिकता बनाम आज्ञाकारिता: संतुलन खोजना।
    • उचित निष्कर्ष निकालिये। 

    परिचय: 

    एच.एल. मेनकेन का यह उद्धरण नैतिकता और आज्ञाकारिता के बीच के अंतर को रेखांकित करता है। नैतिकता व्यक्ति के सही और गलत के आंतरिक बोध से उत्पन्न होती है, जबकि आज्ञाकारिता बाहरी प्राधिकरण के प्रति निष्ठा है, जो अक्सर नैतिक मूल्यांकन से रहित होती है। 

    वर्तमान में बढ़ती चुनौतियों के संदर्भ में - नौकरशाही की आत्मसंतुष्टि से लेकर अधिनायकवाद तक - यह उद्धरण नैतिक स्वायत्तता और आदेशों का पालन करने के दायित्व के बीच संतुलन पर चिंतन करने के लिये प्रेरित करता है।

    मुख्य भाग:

    आज की दुनिया में नैतिकता का महत्त्व

    • नैतिक नेतृत्व: नैतिक साहस वाले नेता मानदंडों के प्रति अंध निष्ठा की अपेक्षा व्यापक भलाई को प्राथमिकता देते हैं।
      • उदाहरण: IAS अधिकारी आर्मस्ट्रांग पाम ने मणिपुर में सरकारी धन के बिना सड़क का निर्माण किया, जिससे उन्होंने नौकरशाही की निष्क्रियता पर नैतिक ज़िम्मेदारी का प्रदर्शन किया।
    • सामाजिक न्याय आंदोलन: नैतिकता व्यक्तियों को सामाजिक अन्याय के विरुद्ध खड़े होने के लिये प्रेरित करती है, तब भी जब कानून या व्यवस्था उदासीन रहती है।
      • उदाहरण: नर्मदा बचाओ आंदोलन (NBA) में मेधा पाटकर का नेतृत्व इस बात का उदाहरण है कि कैसे नैतिकता व्यक्तियों को सामाजिक अन्याय के खिलाफ खड़े होने के लिये प्रेरित करती है, तब भी जब कानूनी व्यवस्था उदासीन रहती है।
    • शासन में भूमिका: नैतिकता सिविल सेवकों और नीति-निर्माताओं को नैतिक दुविधाओं से निपटने में सहयोग करती है, जहाँ कानूनी प्रावधान मानवीय मूल्यों के साथ संघर्ष कर सकते हैं।

    आज्ञाकारिता: एक दोधारी तलवार

    • आज्ञाकारिता की सकारात्मक भूमिका: समाज में व्यवस्था और अनुशासन बनाए रखने के लिये वैध निर्देशों का पालन करना आवश्यक है।
      • उदाहरण: महामारी के दौरान कोविड-19 लॉकडाउन प्रोटोकॉल का पालन करने से लोगों की जान बचाने में मदद मिली।
    • अंध आज्ञाकारिता और नैतिक विफलताएँ: प्राधिकार के प्रति बिना सवाल किये अनुपालन नैतिक विनाश का कारण बन सकता है।
      • उदाहरण: नूर्नबर्ग परीक्षणों ने इस बात को उजागर किया कि किस प्रकार नाजी अधिकारियों ने अपने कार्यों को केवल आदेशों का पालन मानकर प्रस्तुत किया और उनके नैतिक परिणामों की अनदेखी की।
    • कॉर्पोरेट और नौकरशाही दुराचार: कर्मचारी या अधिकारी अनैतिक निर्देशों का आँख मूंदकर पालन करते हैं, जिससे अक्सर भ्रष्टाचार और दुराचार को बढ़ावा मिलता है।
      • उदाहरण: वर्ष 2008 के वित्तीय संकट में बैंकिंग क्षेत्र के पेशेवरों ने संभावित नुकसान को जानते हुए भी उच्च जोखिम वाले, अनैतिक वित्तीय व्यवहारों का अनुपालन किया।

    नैतिकता बनाम आज्ञाकारिता: संतुलन खोजना

    • लोक सेवा में नैतिक स्वायत्तता: सिविल सेवकों को अक्सर हानिकारक नीतियों को लागू करने और न्यायोचित बातों के पक्ष में खड़े होने के बीच चुनाव करना पड़ता है।
      • उदाहरण: सुचिर बालाजी जैसे मुखबिर, आज्ञाकारिता की अपेक्षा नैतिकता को प्राथमिकता देते हैं।
    • आलोचनात्मक चिंतन और शिक्षा: नैतिक तर्क विकसित करने से व्यक्तियों को आदेशों पर कार्रवाई करने से पहले उनका आलोचनात्मक मूल्यांकन करने में मदद मिलती है।
      • उदाहरण: लोक प्रशासन प्रशिक्षण के अंतर्गत नैतिकता और शासन के कार्यक्रम नैतिक मूल्यों एवं संस्थागत आज्ञाकारिता के बीच की खाई को पाट सकते हैं।
    • संस्थागत संस्कृति में सुधार: संगठनों को जवाबदेही बढ़ाने के लिये केवल अनुपालन ही नहीं, बल्कि नैतिक निर्णय लेने को भी प्रोत्साहित करना चाहिये।

    निष्कर्ष: 

    मेनकेन का उद्धरण एक शक्तिशाली अनुस्मारक है कि नैतिकता को मानवीय कार्यों के लिये दिशासूचक के रूप में काम करना चाहिये, जबकि आज्ञाकारिता को अंध अनुरूपता के बजाय नैतिक तर्क द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिये। वर्तमान संदर्भ में, जहाँ सामाजिक, पर्यावरणीय और राजनीतिक चुनौतियाँ सैद्धांतिक कार्यों की मांग करती हैं, नैतिक रूप से साहसी व्यक्तियों की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है।

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