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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू हुए एक दशक से अधिक समय हो चुका है। क्या यह अपने मूल उद्देश्य—सामाजिक समावेश और शिक्षा तक समान पहुँच—को प्राप्त करने में सफल रहा है? विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    21 Jan, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • शिक्षा का अधिकार अधिनियम की उत्पत्ति की व्याख्या करते हुए उत्तर दीजिये।
    • सामाजिक समावेशन में RTE अधिनियम की उपलब्धियों पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये। 
    • सामाजिक समावेशन प्राप्त करने में चुनौतियों और संबंधित RTE मुद्दों पर प्रकाश डालिये। 
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: 

    शिक्षा का अधिकार अधिनियम की जड़ें वर्ष 1993 में उन्नीकृष्णन बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में दिये गए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में निहित हैं, जिसमें शिक्षा के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई थी। 

    • इसके बाद, 86वें संविधान संशोधन (वर्ष 2002) द्वारा अनुच्छेद 21A को शामिल किया गया, साथ ही अनुच्छेद 45 (DPSP) और अनुच्छेद 51A (मौलिक कर्त्तव्यों) में संशोधन करके 6-14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों के लिये निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा को अनिवार्य बना दिया गया।

    मुख्य भाग: 

    सामाजिक समावेशन में RTE अधिनियम की उपलब्धियाँ: 

    • सामाजिक-आर्थिक समूहों में नामांकन में वृद्धि: RTE अधिनियम के निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के प्रावधान से नामांकन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, विशेष रूप से अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) जैसे सीमांत समुदायों में। 
    • उदाहरण के लिये सत्र 2014-15 से 2021-22 तक अनुसूचित जाति के छात्रों के नामांकन में 44% की वृद्धि हुई।
      • निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लिये 25% आरक्षण से वंचित पृष्ठभूमि के लाखों बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में मदद मिली है।
    • बेहतर बुनियादी अवसंरचना और अभिगम: अधिनियम में बुनियादी अवसंरचना के मानदंडों को अनिवार्य किया गया है, जैसे कि दिव्यांग बच्चों के लिये रैंप, अलग शौचालय और पेयजल तक सुगमता, जिससे समावेशिता को बढ़ावा मिलता है।
    • सीमांत समूहों को मुख्यधारा में लाना: दिव्यांग बच्चों को शामिल करना (वर्ष 2012 के संशोधन के माध्यम से) और गंभीर रूप से दिव्यांग बच्चों के लिये घर-आधारित शिक्षा।

    सामाजिक समावेशन प्राप्त करने में चुनौतियाँ: 

    • शिक्षा की गुणवत्ता: हालाँकि पहुँच में सुधार हुआ है, लेकिन अधिगम के परिणाम निम्नस्तरीय बने हुए हैं। शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (ASER) बच्चों में साक्षरता और संख्यात्मक कौशल में कमी को उजागर करती है, जो समावेशी शिक्षा के लक्ष्य को कमज़ोर करती है।
      • सरकारी स्कूल प्रायः अपर्याप्त शिक्षक प्रशिक्षण, अनुपस्थिति और निम्नस्तरीय शिक्षण पद्धति से ग्रस्त रहते हैं, जिसका प्रतिकूल प्रभाव सीमांत समूहों पर पड़ता है।
    • कार्यान्वयन में कमी: शिक्षा के लिये ज़िला सूचना प्रणाली (DISE) के अनुसार, देश भर में केवल 13% स्कूल ही सभी RTE मानदंडों, जैसे छात्र-शिक्षक अनुपात और बुनियादी अवसंरचना के मानकों का अनुपालन करते हैं।
      • गैर-अनुपालन के लिये विशिष्ट दंड का अभाव राज्य और स्थानीय स्तर पर उत्तरदायित्व को कम करता है।
    • कुछ समूहों का बहिष्कार: यह अधिनियम छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कवर नहीं करता है, जिससे प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (समावेश के लिये एक महत्त्वपूर्ण आधार) पर इसका प्रभाव सीमित हो जाता है।
      • अल्पसंख्यक और गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को RTE अधिनियम के प्रावधानों से छूट दी गई है, जिससे संभवतः इन संस्थानों से सीमांत समूह बाहर हो जाएंगे।
    • आरक्षण कोटा चुनौतियाँ: वित्त पोषण में विलंब और प्रतिपूर्ति की कमी के कारण 25% EWS कोटा लागू करने में निजी स्कूलों के प्रतिरोध ने इसकी प्रभावशीलता को सीमित कर दिया है।
    • बहु-ग्रेड शिक्षण: ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों की कमी के कारण बहु-ग्रेड शिक्षण होता है, जिससे वंचित समूहों के लिये शिक्षा की गुणवत्ता से समझौता होता है।

    आगे की राह:

    • कार्यान्वयन तंत्र को सुदृढ़ करना: नियमित लेखापरीक्षा के माध्यम से बेहतर उत्तरदायित्व, गैर-अनुपालन के लिये दंडात्मक प्रावधान और राज्य व स्थानीय सरकारों के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता है।
      • RTE के लिये पर्याप्त वित्तीय आवंटन, विशेष रूप से 25% EWS कोटे के तहत निजी स्कूल फीस की प्रतिपूर्ति के लिये।
    • शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान देना: शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को सुदृढ़ कर शिक्षक के प्रदर्शन की निगरानी किये जाने की आवश्यकता है।
      • ग्रामीण एवं दूरदराज़ के क्षेत्रों में अंतराल को पाटने के लिये प्रौद्योगिकी-सक्षम शिक्षण उपकरणों का उपयोग किया जाना चाहिये।
    • समावेशी शिक्षा नीतियाँ: प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा कार्यक्रमों को लागू करके 3-6 वर्ष की आयु के बच्चों को शामिल करने के लिये अधिनियम का विस्तार किया जा सकता है।
      • यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि अल्पसंख्यक समुदायों के स्कूल उनकी स्वायत्तता से समझौता किये बिना RTE सिद्धांतों का पालन करें।
    • उन्नत सार्वजनिक-निजी भागीदारी: सीमांत समूहों के लिये बुनियादी अवसंरचना, शिक्षक प्रशिक्षण और अभिगम में सुधार के लिये सरकारों, निजी स्कूलों एवं गैर सरकारी संगठनों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • सामुदायिक भागीदारी: स्कूल विकास का स्वामित्व लेने के लिये स्कूल प्रबंधन समितियों (SMC) को सशक्त बनाया जाना चाहिये तथा यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि वंचित समुदायों की आवाज़ सुनी जाए।

    निष्कर्ष: 

    RTE अधिनियम ने सीमांत समूहों के लिये शिक्षा तक पहुँच में सुधार, नामांकन में वृद्धि और बुनियादी अवसंरचना को बेहतर बनाकर सामाजिक समावेशन के लिये एक मज़बूत आधार तैयार किया है। इन अंतरों को समाप्त करने के लिये अधिक निवेश, नवीन नीतियों और सामुदायिक भागीदारी द्वारा समर्थित एक केंद्रित दृष्टिकोण आवश्यक है। तभी RTE अधिनियम सभी के लिये सामाजिक न्याय और समान शिक्षा के साधन के रूप में अपनी क्षमता को सही मायने में पूरा कर सकता है।

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