प्रश्न. 1857 के विद्रोह के प्रति ब्रिटिश प्रतिक्रिया ने न केवल प्रशासन में, बल्कि भारत में औपनिवेशिक शासन के संपूर्ण वैचारिक संरचना में एक मौलिक बदलाव को चिह्नित किया। टिप्पणी कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- सिपाही विद्रोह और ब्रिटिश प्रतिक्रिया के महत्त्व को संक्षेप में बताते हुए उत्तर दीजिये।
- प्रारंभिक ब्रिटिश प्रतिक्रिया पर चर्चा कीजिये।
- प्रशासनिक सुधारों और वैचारिक बदलावों पर प्रकाश डालिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
सिपाही विद्रोह (जिसे सन् 1857 के विद्रोह के रूप में भी जाना जाता है) एक प्रलयकारी घटना थी जिसने भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन को हिलाकर रख दिया था। इस उथल-पुथल की प्रतिक्रिया बहुआयामी थी, जिसके परिणामस्वरूप व्यापक प्रशासनिक सुधार हुए और औपनिवेशिक नीति को नियंत्रित करने वाले वैचारिक ढाँचे की पुनर्संरचना हुई।
मुख्य भाग:
प्रारंभिक ब्रिटिश प्रतिक्रिया:
- ब्रिटेन शासन को झटका और आक्रोश: विद्रोह की प्रारंभिक खबर से ब्रिटेन में व्यापक दहशत और आक्रोश फैल गया।
- विद्रोहियों द्वारा किये गए अत्याचारों की खबरों, जैसे कानपुर में ब्रिटिश नागरिकों की हत्या, ने कड़ी सजा की मांग को बढ़ावा दिया।
- इससे प्रतिशोधात्मक माहौल बन गया और पूरे ब्रिटेन में “कानपुर को याद रखो” जैसे नारे गूंजने लगे।
- बदला लेने का आह्वान: कोलिन कैम्पबेल और गवर्नर-जनरल लॉर्ड कैनिंग जैसे प्रभावशाली लोगों ने विद्रोह को दबाने के लिये कठोर उपाय अपनाए, हालाँकि बाद में कैनिंग ने भारतीयों को अधिकविद्रोही होने से बचने के लिये शांति और संयम की नीति अपनाने का समर्थन किया।"
- असहमति के स्वर: रिचर्ड कोबडेन और लॉर्ड शेफ्ट्सबरी जैसे सुधारवादियों सहित कुछ लोगों ने अविवेकी प्रतिशोध के प्रति आगाह किया तथा भारत में दीर्घकालिक ब्रिटिश सत्ता को बनाए रखने के लिये संयम बरतने का आग्रह किया।
प्रशासनिक सुधार:
- ईस्ट इंडिया कंपनी का उन्मूलन: अपनी अकुशलता और भ्रष्टाचार के लिये लंबे समय से आलोचना की जा रही कंपनी को समाप्त कर दिया गया।
- यह धारणा कि इसकी नीतियों जैसे कि व्यपगत का सिद्धांत और सामाजिक प्रथाओं में हस्तक्षेप ने विद्रोह को जन्म दिया था, इसके विघटन का कारण बनी।
- क्राउन द्वारा प्रत्यक्ष शासन: भारत सरकार अधिनियम, 1858 ने सत्ता के हस्तांतरण को औपचारिक रूप दिया।
- भारत का शासन अब महारानी विक्टोरिया के नाम पर था, जिससे उपनिवेश के लिये सीधे तौर पर शाही उत्तरदायित्व का संकेत मिलता था।
- गवर्नर-जनरल के कार्यालय का पुनर्गठन किया गया और उसका नाम बदलकर भारत का वायसराय कर दिया गया, जिसमें वायसराय भारत में क्राउन के प्रत्यक्ष प्रतिनिधि के रूप में कार्य करेगा।
- नई संस्थाओं की स्थापना: लंदन में एक नया पद, भारत सचिव बनाया गया, जो भारतीय प्रशासन की देखरेख करता था।
- इससे औपनिवेशिक शासन पर ब्रिटिश नियंत्रण और अधिक सख्त हो गया।
- सेना का पुनर्गठन: एक और विद्रोह को रोकने के लिये भारत में ब्रिटिश सेना का पुनर्गठन किया गया:
- यूरोपीय सैनिकों का अनुपात बढ़ा दिया गया, जिससे भारतीय सैनिकों पर निर्भरता कम हो गयी।
- सैन्य शक्ति की रीढ़, तोपखाना, विशेष रूप से ब्रिटिश नियंत्रण में रखा गया था।
- सैन्य उद्देश्यों के लिये अवसंरचनात्मक विकास: रेलवे, सड़क और टेलीग्राफ प्रणालियों का विस्तार भारत के लाभ के लिये नहीं, बल्कि भविष्य में विद्रोह की स्थिति में ब्रिटिश सैनिकों के तीव्र आवागमन को सुविधाजनक बनाने के लिये किया गया था।
वैचारिक बदलाव:
- सुधारवाद से रूढ़िवाद तक: सन् 1857 से पूर्व, ब्रिटिश शासन ने सुधारवादी नीतियों पर जोर दिया, जिसमें पश्चिमीकरण, सामाजिक सुधार (जैसे: सती प्रथा का उन्मूलन) और अंग्रेज़ी शिक्षा को बढ़ावा देना शामिल था।
- सन् 1857 के बाद, अंग्रेजों ने रूढ़िवादी दृष्टिकोण अपनाया और भारतीय धार्मिक एवं सामाजिक प्रथाओं में हस्तक्षेप करने से परहेज़ किया।
- फूट डालो और राज करो की संस्थागत स्थापना: इस विद्रोह ने विभिन्न धर्मों और जातियों के भारतीयों की सामूहिक कार्रवाई की शक्ति को प्रदर्शित किया, जिससे अंग्रेज़ों को फूट डालो और राज करो की नीति अपनाने के लिये प्रेरित किया गया।
- सांप्रदायिक पहचान को जानबूझकर बढ़ावा दिया गया, तथा ब्रिटिश नीतियों में मुसलमानों जैसे कुछ समुदायों का पक्ष लिया गया, ताकि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दरार पैदा की जा सके।
- नस्लीय श्रेष्ठता का उदय: विद्रोह ने अंग्रेज़ों के बीच नस्लीय दृष्टिकोण को और बढ़ावा दिया। सन् 1857 से पहले समानता और नैतिक उत्थान के उदारवादी आदर्शों की जगह नस्लीय श्रेष्ठता और अलगाव की खुली भावना ने ले ली।
- भारतीयों को उच्च प्रशासनिक और सैन्य पदों से लगातार बाहर रखा गया, जिससे औपनिवेशिक पदानुक्रम दृढ़ होता गया।
- निगरानी और नियंत्रण को मज़बूत किया गया: ब्रिटिश सरकार ने भविष्य में विद्रोहों को रोकने के लिये खुफिया नेटवर्क में निवेश किया।
- जासूस, मुखबिर और एक मज़बूत पुलिस प्रणाली शासन का अभिन्न अंग बन गए।
निष्कर्ष:
सन् 1857-1858 के सिपाही विद्रोह के प्रति ब्रिटिश प्रतिक्रिया ने भारतीय औपनिवेशिक इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ को चिह्नित किया। विद्रोह ने न केवल ईस्ट इंडिया कंपनी के विघटन और क्राउन शासन को औपचारिक रूप दिया, बल्कि वैचारिक बदलाव भी लाए, जिसने सुधार पर एकीकरण को प्राथमिकता दी। फूट डालो और राज करो, नस्लीय अलगाव एवं सैन्य पुनर्गठन जैसी नीतियों ने ब्रिटिश प्रभुत्व को सुनिश्चित किया, लेकिन भारतीयों के अलगाव को भी बढ़ावा दिया।