- फ़िल्टर करें :
- निबंध
-
प्रश्न :
प्रश्न. मानव मन एक पिंजरा भी है और एक कुंजी भी।
प्रश्न. नैतिकता उद्देश्य और कार्रवाई के बीच एक निरंतर अंतः क्रिया है।
18 Jan, 2025 निबंध लेखन निबंधउत्तर :
1. अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:
- बुद्ध: "आप जो सोचते हैं, वही बन जाते हैं। आप जो महसूस करते हैं, वही आकर्षित करते हैं। आप जो कल्पना करते हैं, वही निर्माण करते हैं।"
- अल्बर्ट आइंस्टीन: "दिमाग पैराशूट की तरह है। जब तक यह खुला न हो, यह काम नहीं करता।"
सैद्धांतिक और दार्शनिक आयाम:
- मन का द्वैत: मानव मन की अपार संज्ञानात्मक क्षमताएँ नवाचार, सहानुभूति और आत्म-जागरूकता को सक्षम करती हैं, जिससे यह प्रगति के द्वार खोलने की एक कुंजी बन जाता है।
- इसके साथ ही यह पूर्वाग्रहों, भय और असुरक्षाओं को भी आश्रय देता है, जो एक पिंजरे की तरह कार्य कर सकता है तथा संभावनाओं को सीमित कर सकता है।
- मनोवैज्ञानिक स्थितियाँ: बी.एफ. स्किनर जैसे व्यवहार मनोवैज्ञानिक तर्क देते हैं कि अनुकूलन इस बात को प्रभावित करता है कि मन एक पिंजरा (नकारात्मक प्रबलता के कारण फँसा हुआ) बनता है या एक कुंजी (सकारात्मक प्रबलता द्वारा सशक्त) बनता है।
- अस्तित्ववादी दर्शन: जीन-पॉल सार्त्र ने "बुरे विश्वास" के विचार पर प्रकाश डाला, जहाँ व्यक्ति अपने कार्य करने की स्वतंत्रता को नकार कर स्वयं को फँसा लेते हैं, यह उदाहरण देते हुए कि मन किस प्रकार स्वयं अपना पिंजरा बन जाता है।
- इसके विपरीत, अस्तित्ववाद भी चयन की स्वतंत्रता पर बल देता है, तथा जीवनकी सार्थकता के लिये मन को महररवपूर्ण मानता है।
- न्यूरोप्लास्टिसिटी और ग्रोथ माइंडसेट: आधुनिक न्यूरोसाइंस से पता चलता है कि मस्तिष्क का लचीलापन अनुकूलनशीलता और अधिगम की अनुमति देती है, जिससे मानव मन आत्म-सुधार के लिये एक शक्तिशाली साधन बन जाता है। हालाँकि, स्थिर मानसिकता इस विकास को बाधित कर सकती है।
नीति और ऐतिहासिक उदाहरण:
- पुनर्जागरण और मानव सृजनात्मकता: पुनर्जागरण ने प्रदर्शित किया कि किस प्रकार बौद्धिक मुक्ति और मानव क्षमता पर ध्यान केंद्रित करने से मस्तिष्क सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और कलात्मक उत्कर्ष की कुंजी बन गया।
- उपनिवेशवाद और मानसिक अधीनता: उपनिवेशवादियों ने उपनिवेशित आबादी पर हीनता की कहानियाँ थोपीं, जिससे सामूहिक मानस ने एक ‘पिंजरे का रूप’ ले लिया।
- भारतीय स्वतंत्रता संग्रामों की तरह, विउपनिवेशीकरण के आंदोलनों ने भी गर्व और आत्मविश्वास को बढ़ावा देकर इस मानसिक पिंजरे को तोड़ दिया।
- अंतरिक्ष अन्वेषण: मानव मस्तिष्क की स्वप्न देखने और नवप्रवर्तन करने की क्षमता ने अंतरिक्ष अन्वेषण जैसे नए क्षेत्रों का द्वार खोल दिया है, तथा अनंत संभावनाओं की कुंजी के रूप में इसकी क्षमता को प्रदर्शित किया है।
समकालीन उदाहरण:
- मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता: मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों के बारे में बढ़ती जागरूकता और कलंक-मुक्ति इस बात पर बल देती है कि मन किस प्रकार व्यक्तियों को चिंता, अवसाद और अन्य चुनौतियों के घेरे में डाल सकता है।
- हालाँकि, थेरेपी और सहायता प्रणालियाँ उनकी भलाई के लिये ‘कुंजी’ के रूप में काम करती हैं।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI): मानव मस्तिष्क की सरलता ने AI का निर्माण किया है, जो समाज के लिये एक परिवर्तनकारी साधन है।
- हालाँकि, इसके दुरुपयोग से जुड़ी नैतिक चिंताएँ दर्शाती हैं कि अनियंत्रित नवाचार किस प्रकार अनपेक्षित परिणामों का पिंजरा बन सकता है।
- सोशल मीडिया और व्यक्तिगत स्वतंत्रता: जबकि सोशल मीडिया वैश्विक कनेक्टिविटी (एक कुंजी) को सक्षम बनाता है, यह इको-चैम्बर्स और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं (एक पिंजरा) को भी बढ़ावा देता है।
2. अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:
- इमैनुअल कांट: "किसी कार्य की नैतिकता उमें निहित उद्देश्य पर निर्भर करती है।"
- विक्टर फ्रैंकल: "उद्देश्य और प्रतिक्रिया के बीच एक अंतर होता है। हमारे पास उस अंतराल में अपनी प्रतिक्रिया चुनने की शक्ति होती है और प्रतिक्रिया में ही हमारा विकास एवं हमारी स्वतंत्रता निहित होते हैं।"
सैद्धांतिक और दार्शनिक आयाम:
- कांट के नीतिशास्त्र: कांत ने उद्देश्य की प्रधानता पर ज़ोर दिया तथा यह तर्क दिया कि किसी कार्य की नैतिकता इस बात में निहित है कि क्या वह व्यक्ति के कर्त्तव्य और सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांतों के अनुरूप है।
- हालाँकि, व्यवहारिक रूप से अनपेक्षित परिणाम उद्देश्य के सख्त पालन के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं।
- उपयोगितावाद: जॉन स्टुअर्ट मिल का उपयोगितावादी दृष्टिकोण उद्देश्य के बजाय किसी कार्य के परिणामों पर केंद्रित है, जिससे यह बात विवादित हो जाती है कि क्या अच्छे उद्देश्य हानिकारक परिणामों को उचित ठहरा सकते हैं या क्या लाभकारी परिणाम संदिग्ध उद्देश्यों को वैध ठहरा सकते हैं।
- नैतिक दुविधाएँ: व्यावहारिक स्थितियाँ प्रायः उद्देश्य और प्रतिक्रिया के बीच असंगतता को उजागर करती हैं– उदाहरण के लिये किसी के जीवन की रक्षा के हेतु झूठ बोलना नैतिक रूप से स्वीकार्य माना जा सकता है, भले ही झूठ बोलना स्वाभाविक रूप से अनैतिक हो।
नीति और ऐतिहासिक उदाहरण:
- महात्मा गांधी का अहिंसा आंदोलन: अहिंसा के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्त करने के गांधी के उद्देश्य को क्रियान्वयन में चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जैसे विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा की घटनाएँ। हालाँकि, नैतिक उद्देश्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता एक वैश्विक प्रेरणा बन गई।
- हिरोशिमा और नागासाकी पर बमबारी: अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध को शीघ्रता से समाप्त करने के साधन के रूप में परमाण्विक आयुध को उचित ठहराया, लेकिन इसके उद्देश्य (युद्ध को समाप्त करके जीवन बचाना) और विनाशकारी परिणामों (बड़ी संख्या में नागरिक हताहत) के बीच नैतिक संघर्ष विवादास्पद है।
- शासन में मुखबिर: मुखबिर प्रायः नैतिकता और पारदर्शिता को बनाए रखने के उद्देश्य से कार्य करते हैं।
- हालाँकि, उनके कार्यों के परिणाम जैसे: नौकरी छूटना, सार्वजनिक प्रतिक्रिया, या यहाँ तक कि राष्ट्रीय सुरक्षा को नुकसान उनके उद्देश्यों और वास्तविक दुनिया के परिणामों के बीच समझौते को रेखांकित करते हैं।
समकालीन उदाहरण:
- जलवायु परिवर्तन नीतियाँ: विश्व भर की सरकारें कार्बन उत्सर्जन को रोकने की मंशा व्यक्त करती हैं, लेकिन राजनीतिक और आर्थिक बाधाओं के कारण प्रायः कार्रवाई कम हो जाती है, जो नैतिक उद्देश्य और कार्यान्वयन के बीच अंतर को दर्शाती है।
- कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR): कई निगम CSR पहलों के माध्यम से नैतिक उद्देश्यों का दावा करते हैं, लेकिन ग्रीनवाशिंग जैसी कार्रवाइयाँ घोषित मूल्यों और ठोस प्रभाव के बीच जटिल अंतः क्रिया को उजागर करती हैं।
- सोशल मीडिया और सक्रियता: ट्विटर या इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्मों पर कार्यकर्त्ता प्रायः जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से कार्य करते हैं, लेकिन कुछ कार्यों की प्रदर्शनात्मक प्रकृति उनके उद्देश्यों के नैतिक महत्त्व को कम कर देती है।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print