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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    स्थानीय रोज़गार और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिये राज्य सरकार द्वारा स्वीकृत एक बढ़ते अर्द्ध-शहरी क्षेत्र के समीप सात वर्ष पूर्व एक कपड़ा रंगाई इकाई स्थापित की गई थी। इस इकाई से हज़ारों लोगों को रोज़गार प्राप्त हुआ है और इसने स्थानीय अर्थव्यवस्था में भी योगदान दिया, लेकिन इसने अनुपचारित अपशिष्टों को पास की नदी में प्रवाहित कर जल को गंभीर रूप से संदूषित कर दिया। इससे क्षेत्र के वासियों में त्वचा और श्वसन संबंधी बीमारियाँ हो गई हैं, भू-जल संदूषित हो गया है तथा आसपास के गाँवों में कृषि उत्पादकता को भी नुकसान पहुँचा है। बार-बार शिकायतों के बावजूद, स्थिति खराब होने तक कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिससे किसानों, पर्यावरण समूहों और प्रभावित नागरिकों द्वारा व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। विरोध प्रदर्शनों ने सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित कर दिया है, जिससे सरकार को इकाई को बंद करने पर विचार करने के लिये मज़बूर होना पड़ा है।

    हालाँकि, फैक्ट्री बंद होने से श्रमिकों की बड़ी संख्या में बेरोज़गारी बढ़ेगी और इससे उत्पादित रंगों पर निर्भर व्यवसायों पर असर पड़ेगा। इसके अतिरिक्त, यूनिट से जुड़े सहायक उद्योगों एवं ट्रांसपोर्टरों को भी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ेगा। ज़िला मजिस्ट्रेट के रूप में, आपको संकट को हल करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा, पर्यावरण सुरक्षा को पुनर्स्थापित करने तथा आर्थिक चिंताओं को दूर करने के लिये स्थायी समाधान सुनिश्चित करने का काम सौंपा गया है।

    प्रश्न:

    1. इस स्थिति में कौन-कौन से हितधारक शामिल हैं?
    2. इस स्थिति में नैतिक, सामाजिक और प्रशासनिक चुनौतियाँ क्या हैं?
    3. पर्यावरण, सार्वजनिक स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं में संतुलन बनाए रखते हुए संकट को हल करने के लिये तत्काल एवं दीर्घकालिक उपाय सुझाइये।

    17 Jan, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़

    उत्तर :

    परिचय: 

    यह मामला एक कपड़ा रंगाई फैक्ट्री पर आधारित है, जिसने स्थानीय रोज़गार और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया है, लेकिन पास की नदी में अनुपचारित अपशिष्ट उत्सर्जित कर गंभीर जल संदूषण का कारण बना है। इससे स्वास्थ्य संकट, भू-जल संदूषण और कृषि उत्पादकता में कमी आई है, जिससे व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। 

    • यद्यपि फैक्ट्री को बंद करने से पर्यावरण सुरक्षा पुनर्स्थापित हो सकती है, लेकिन इससे बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी और आर्थिक व्यवधान का खतरा भी उत्पन्न हो सकता है। 
    • ज़िला मजिस्ट्रेट के रूप में चुनौतियाँ सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरणीय संवहनीयता और आर्थिक स्थिरता के बीच संतुलन बनाकर संकट का समाधान करने की हैं।

    मुख्य भाग: 

    1. इस स्थिति में कौन-कौन से हितधारक शामिल हैं? 

    हितधारक

    भूमिका/रुचि

    निवासी (स्थानीय जनसंख्या)

    जल-संदूषण से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित, जिसमें स्वास्थ्य और आजीविका पर प्रभाव शामिल है।

    किसान

    सिंचाई और कृषि गतिविधियों के लिये नदी और भूजल पर निर्भर हैं।

    कपड़ा रंगाई फैक्ट्री 

    यह न केवल संदूषण का स्रोत है, बल्कि स्थानीय रोज़गार और अर्थव्यवस्था में भी इसका प्रमुख योगदान है।

    कपड़ा रंगाई फैक्ट्री में काम करने वाले श्रमिक

    रोज़गार और आजीविका के लिये कारखाने पर निर्भर हैं।

    सहायक उद्योग

    फैक्ट्री द्वारा उत्पादित रंगों पर निर्भर व्यवसाय (जैसे: परिधान निर्माता, छोटे व्यवसाय)।

    पर्यावरण समूह/कार्यकर्त्ता

    पर्यावरण सुरक्षा और संधारणीय औद्योगिक प्रथाओं का समर्थन करना।

    राज्य संदूषण नियंत्रण बोर्ड

    औद्योगिक संदूषण की निगरानी और पर्यावरण मानकों को लागू करने के लिये नियामक प्राधिकरण।

    किसान एवं नागरिक समूह

    संदूषण के विरुद्ध संगठित विरोध प्रदर्शन और जवाबदेही की मांग।

    मीडिया

    मुद्दे को उजागर करना और जनमत तैयार करना।


    2. इस स्थिति में नैतिक, सामाजिक और प्रशासनिक चुनौतियाँ क्या हैं?

    नैतिक चुनौतियाँ:

    • पर्यावरणीय नैतिकता बनाम आर्थिक विकास: यह स्थिति औद्योगिक विकास (जो रोज़गार प्रदान करता है और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है) तथा पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करने की नैतिक जिम्मेदारी के बीच संघर्ष को दर्शाती है।
      • फैक्ट्री को अपशिष्ट उत्सर्जन द्वारा प्रदूषण जारी रखने की अनुमति देना संवहनीयता और पर्यावरण संरक्षण के सिद्धांतों के प्रति उपेक्षा को दर्शाता है।
    • लापरवाही के लिये जवाबदेही: प्रदूषण मानदंडों के प्रति फैक्ट्री की उपेक्षा और नियमों को लागू करने में अधिकारियों की विफलता, कॉर्पोरेट एवं सरकारी जवाबदेही के संदर्भ में गंभीर नैतिक चिंताएँ उत्पन्न करती है। 
      • यह लापरवाही पारदर्शिता, न्याय और सुशासन के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है।
    • भावी पीढ़ियों के अधिकार (अंतर-पीढ़ीगत समानता): जल संसाधनों का संदूषण और कृषि भूमि को होने वाली क्षति, भावी पीढ़ियों के कल्याण के लिये खतरा है, जो संधारणीय प्रथाओं की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। 
      • नैतिक नेतृत्व के लिये दीर्घकालिक पर्यावरणीय और सार्वजनिक हितों की सुरक्षा हेतु कार्रवाई की आवश्यकता होती है।

    सामाजिक चुनौतियाँ:

    • सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट: अपशिष्टों के अनुपचारित निर्वहन से गंभीर जल संदूषण हो रहा है, जिससे त्वचा रोग, श्वसन संबंधी बीमारियाँ और भूजल संदूषण हो रहा है।
      • इससे स्थानीय आबादी, विशेषकर बच्चों और बुजुर्गों जैसे कमज़ोर समूहों पर स्वास्थ्य संबंधी कुप्रभाव पड़ा है।
    • कृषि उत्पादकता में कमी: संदूषण के कारण मृदा की गुणवत्ता का ह्रास हुआ है और कृषि उत्पादन कम हो गया है, जिससे किसानों की आजीविका प्रभावित हुई है तथा ग्रामीण सुभेद्यता बढ़ गई है। 
      • यह मुद्दा क्षेत्र में सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को बढ़ाता है।
    • सामुदायिक विरोध और अविश्वास: अधिकारियों की निष्क्रियता के कारण किसानों, पर्यावरण समूहों और नागरिकों द्वारा व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है। 
      • ये विरोध प्रदर्शन सरकार और जनता के बीच विश्वास के टूटने को उजागर करते हैं, जिससे सामाजिक अशांति एवं सार्वजनिक अव्यवस्था उत्पन्न होती है।
    • प्रभाव की असमानता: हालाँकि कारखाना के मालिक और व्यवसाय वित्तीय घाटे को सहन कर सकते हैं, लेकिन किसान, दैनिक मजदूरी करने वाले श्रमिक एवं ग्रामीण गरीब जैसे सीमांत समूह स्वास्थ्य, आजीविका व स्वच्छ जल तक पहुँच पर संदूषण के प्रभाव का खामियाज़ा भुगतते हैं।

    प्रशासनिक चुनौतियाँ:

    • पर्यावरण विनियमों का प्रवर्तन: संदूषण मानदंडों का अनुपालन न करने पर फैक्ट्री की निगरानी करने और उसे दंडित करने में विफलता, राज्य संदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं स्थानीय प्रशासन द्वारा विनियामक प्रवर्तन में खामियों को उजागर करती है। 
    • प्रतिस्पर्द्धी प्राथमिकताओं में संतुलन: ज़िला मजिस्ट्रेट के रूप में कई प्राथमिकताओं में संतुलन (जैसे: सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण सुरक्षा बनाए रखना, सामाजिक सद्भाव सुनिश्चित करना और आर्थिक व्यवधानों को न्यूनतम करना) बनाए रखने की आवश्यकता है। 
      • इसके लिये सावधानीपूर्वक, बहु-हितधारक वार्ता और नीति-निर्माण की आवश्यकता है।
    • संसाधन और क्षमता संबंधी बाधाएँ: संधारणीय समाधानों (जैसे: अपशिष्ट उपचार संयंत्र स्थापित करना या वैकल्पिक रोज़गार के अवसर प्रदान करना) को लागू करने के लिये वित्तीय संसाधनों, तकनीकी विशेषज्ञता और समय की आवश्यकता होती है, जो आसानी से उपलब्ध नहीं हो सकते हैं।

    3. पर्यावरण, सार्वजनिक स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं में संतुलन बनाए रखते हुए संकट को हल करने के लिये तत्काल एवं दीर्घकालिक उपाय सुझाइये।

    तत्काल उपाय:

    • पर्यावरण अनुपालन को तत्काल लागू करना: कपड़ा रंगाई इकाई को नदी में अनुपचारित अपशिष्टों का निर्वहन तत्काल बंद करने का निर्देश दिये जाने की आवश्यकता है।
      • पर्यावरण कानूनों (जैसे: जल (संदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974) के प्रावधानों के अनुसार, संदूषण मानदंडों का उल्लंघन करने पर फैक्ट्री पर कठोर दंड लगाए जाने चाहिये।
      • अस्थायी उपाय के रूप में दूषित नदी जल के उपचार के लिये मोबाइल जल उपचार इकाइयाँ तैनात की जानी चाहिये या निजी एजेंसियों से काम लिया जाना चाहिये।
    • स्वास्थ्य संकट प्रबंधन: संदूषण के कारण होने वाली त्वचा और श्वसन संबंधी बीमारियों के समाधान के लिये प्रभावित गाँवों में चिकित्सा शिविर स्थापित किये जाने चाहिये।
      • प्रभावित व्यक्तियों को रियायती या निःशुल्क स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान की जानी चाहिये।
      • तात्कालिक जल संकट को कम करने के लिये टैंकरों या सामुदायिक जल सुविधाओं के माध्यम से स्वच्छ पेयजल वितरित किये जाने चाहिये।
    • तनाव कम करने के लिये हितधारकों को शामिल करना: सभी हितधारकों- नागरिकों, किसानों, कारखाना मालिकों, श्रमिकों, पर्यावरण समूहों और सहायक व्यवसायों के साथ परामर्श किये जाने की आवश्यकता है ताकि उन्हें सरकार की कार्य योजना समझाई जा सके और उन्हें उचित समाधान का आश्वासन दिया जा सके।
      • प्रदर्शनकारियों को सहयोग करने के लिये प्रोत्साहित किये जाने चाहिये तथा समय पर शिकायत निवारण सुनिश्चित करके सार्वजनिक व्यवधान को समाप्त किये जाने चाहिये।
    • अल्पकालिक संदूषण नियंत्रण योजना लागू करना: फैक्ट्री को अंतरिम समाधान के रूप में अस्थायी अपशिष्ट उपचार इकाइयाँ (ETU) स्थापित करने का निर्देश दिया जाना चाहिये।
      • राज्य संदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) को दैनिक अनुपालन की निगरानी करने तथा यह सुनिश्चित करने के लिये शामिल किया जाना चाहिये कि निर्वहन से पहले अपशिष्टों का उपचार किया जाए।
    • बेरोज़गारी संकट को रोकना: कारखाना मालिकों को चेतावनी जारी की जानी चाहिये, तथा उन्हें इस शर्त पर परिचालन जारी रखने की अनुमति दी जानी चाहिये कि वे संदूषण को नियंत्रित करने के लिये तत्काल कदम उठाएं।
      • मनरेगा जैसे सरकारी वित्तपोषित कार्यक्रमों के माध्यम से या पर्यावरण शोधन प्रयासों (जैसे: नदी पुनरुद्धार परियोजनाओं) में प्रभावित श्रमिकों को नियोजित करके अस्थायी वैकल्पिक रोज़गार के अवसरों का सृजन किया जाना चाहिये।

    दीर्घकालिक उपाय:

    • स्थायी संदूषण नियंत्रण अवसंरचना को अनिवार्य बनाना: सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि फैक्ट्री में पूर्ण पैमाने पर, अत्याधुनिक अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र (ETP) स्थापित हो जिसमें शून्य तरल निर्वहन (ZLD) तकनीक हो। अनुपालन के लिये समयसीमा 6-12 महीने निर्धारित की जा सकती है।
      • निरंतर अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये कारखाने का समय-समय पर पर्यावरण ऑडिट कराए जाने की आवश्यकता है।
    • एक संधारणीय औद्योगिक मॉडल विकसित करना: कारखाने के पर्यावरणीय प्रभाव को न्यूनतम करने के लिये स्वच्छ उत्पादन तकनीकों और पर्यावरण अनुकूल रंगों के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • पर्यावरण पुनर्स्थापन: दूषित नदी और भूजल को साफ करने के लिये एक स्थायी नदी प्रबंधन और पुनर्स्थापन कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिये।
      • इसमें नदी के किनारों से गाद निकालना, जैव-उपचार और वनरोपण शामिल हो सकता है।
      • मृदा स्वास्थ्य को पुनर्जीवित करने के लिये प्रभावित क्षेत्रों में संवहनीय कृषि पद्धतियों (जैसे: फसल विविधीकरण, जैविक कृषि) को लागू किया जाना चाहिये।
    • कमज़ोर समूहों के लिये वैकल्पिक आजीविका: कारखाना संचालन में कमी के कारण आय खोने के जोखिम वाले किसानों और श्रमिकों के लिये, कृषि प्रसंस्करण, मात्स्यिकी या नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में वैकल्पिक आजीविका के लिये तैयार करने हेतु कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित किया जाना चाहिये।
      • अतिरिक्त रोज़गार सृजन के लिये स्वच्छ, संधारणीय इनपुट पर निर्भर सहायक उद्योगों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • जन जागरूकता और सामुदायिक सहभागिता: स्थानीय समुदायों और उद्योगों को सतत् विकास एवं पर्यावरण संरक्षण के महत्त्व के बारे में शिक्षित करने के लिये जागरूकता अभियान शुरू किया जाना चाहिये।
      • जल संरक्षण और संदूषण निगरानी प्रयासों में सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    इस संकट को हल करने के लिये एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो पर्यावरण अनुपालन सुनिश्चित करता है, सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करता है और आर्थिक व्यवधान को कम करता है। जल-संदूषण नियंत्रण और स्वास्थ्य सेवा सहायता जैसे तात्कालिक उपायों को दीर्घकालिक समाधानों द्वारा पूरक होना चाहिये, जिसमें संधारणीय औद्योगिक प्रथाएँ एवं आजीविका विविधीकरण शामिल हैं। उत्तरदायित्व और सामुदायिक सहभागिता को प्राथमिकता देकर, इस मुद्दे को समावेशी एवं सतत् विकास के अवसर में बदला जा सकता है।

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