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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न: "यदि उद्देश्य सद्गुणी न हो तो ज्ञान निरर्थक हो जाता है।" आज के समय में, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और डाटा एनालिटिक्स का उपयोग राष्ट्रों में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में हेरफेर करने के लिये किया जा रहा है। लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिये सूचना प्रौद्योगिकी के विनियमन में कौन-से नैतिक विचारों को ध्यान में रखा जाना चाहिये? (150 शब्द)

    16 Jan, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • प्रश्न के कथन का औचित्य सिद्ध करते हुए उत्तर दीजिये।
    • सोशल मीडिया और डेटा एनालिटिक्स के माध्यम से लोकतंत्र में हेरफेर के पक्ष में तर्क दीजिये।
    • सूचना प्रौद्योगिकी को विनियमित करने और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने के लिये नैतिक विचारों पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: 

    बयान में प्रौद्योगिकी के खतरों पर प्रकाश डाला गया है, जब इसे अच्छे उद्देश्यों से अलग कर दिया जाता है। आज की दुनिया में, डेटा एनालिटिक्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के दो पहलू हैं— यद्यपि इन प्रौद्योगिकियों ने संचार और निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाया है तो इनके दुरुपयोग ने गलत सूचना, ध्रुवीकरण एवं लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में हेरफेर को बढ़ावा दिया है। 

    मुख्य भाग: 

    सोशल मीडिया और डेटा एनालिटिक्स के माध्यम से लोकतंत्र में हेरफेर: 

    • गलत सूचना और फर्ज़ी समाचार का प्रसार: सोशल मीडिया एल्गोरिदम सटीकता की तुलना में सनसनीखेज़ कंटेंट को प्राथमिकता देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप फर्ज़ी समाचारों का व्यापक प्रसार होता है जो मतदाताओं को गलत सूचना देते हैं तथा जनता की राय को प्रभावित करते हैं।
      • उदाहरण: वर्ष 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान, फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्मों पर फर्ज़ी खबरों ने अवैध खबरों को बढ़ावा दिया, जिससे मतदाताओं की धारणा प्रभावित हुई।
    • सूक्ष्म-लक्ष्यीकरण और मनोवैज्ञानिक हेरफेर: मतदाताओं को उनकी व्यक्तिगत जानकारी के आधार पर डेटा विश्लेषण का प्रयोग करके सूक्ष्म रूप से लक्षित किया जा सकता है, जिससे उनके लिये अनुकूलित राजनीतिक संदेश दिया जा सकता है, जो उनके विचारों को ध्रुवीकृत करता है तथा भावनाओं प्रभावित करता है।
      • कैम्ब्रिज एनालिटिका घोटाले से पता चला कि किस प्रकार लक्षित दुष्प्रचार के लिये लाखों फेसबुक उपयोगकर्त्ताओं के व्यक्तिगत डेटा का उपयोग किया गया। 
    • समाज का ध्रुवीकरण: एल्गोरिदम "इको चैंबर" जैसी स्थिति बनाते हैं, जहाँ उपयोगकर्त्ताओं को केवल वही जानकारी दी जाती है जो उनके मौजूदा विश्वासों का समर्थन करती है, जिससे सामाजिक विभाजन बढ़ता है तथा भिन्न दृष्टिकोणों के प्रति सहिष्णुता कम हो जाती है।
      • यूट्यूब और ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्मों की आलोचना चरमपंथी या विभाजनकारी कंटेंट को बढ़ावा देने तथा भारत एवं अमेरिका जैसे देशों में राजनीतिक ध्रुवीकरण में योगदान देने के लिये की जाती रही है।
    • राजनीतिक विज्ञापन में पारदर्शिता का अभाव: सोशल मीडिया पर अनियमित राजनीतिक विज्ञापनों में धन के स्रोतों और मंशा के बारे में पारदर्शिता का अभाव होता है, जिससे गुप्त अभियानों को चुनावों को प्रभावित करने का मौका मिल जाता है।
      • भारत में वर्ष 2024 के चुनावों में, असत्यापित राजनीतिक विज्ञापनों और डीप फेक न्यूज़ ने हेरफेर व गलत सूचना के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी थीं।
    • निगरानी और गोपनीयता का हनन: सरकारें और निगम निगरानी के लिये डेटा एनालिटिक्स का दुरुपयोग करते हैं, जिससे मुक्त अभिव्यक्ति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है तथा लोकतांत्रिक संस्थाओं में विश्वास कम होता है।
      • चीन की व्यापक निगरानी प्रणाली लोकतांत्रिक स्वतंत्रता को कम करने के लिये प्रौद्योगिकी के उपयोग के खतरों को उजागर करती है।

    सूचना प्रौद्योगिकी को विनियमित करने और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिये नैतिक विचार: 

    • सत्यता और पारदर्शिता सुनिश्चित करना
      • गलत सूचना का मुकाबला करना: फर्ज़ी खबरों के प्रसार को रोकने के लिये एल्गोरिदम को तथ्यात्मक और विश्वसनीय जानकारी को प्राथमिकता देनी चाहिये।
        • चुनावों के दौरान झूठी सामग्री को चिह्नित करने जैसी तथ्य-जाँच पहलों ने गलत सूचनाओं को दूर करने में कुछ प्रगति की है।
      • एल्गोरिदम पारदर्शिता: छिपे हुए पूर्वाग्रहों और हेरफेर से बचने के लिये प्लेटफॉर्म को यह बताना चाहिये कि उनके एल्गोरिदम की प्रकार काम करते हैं, जिसमें वे कंटेंट को किस प्रकार रैंक करते हैं या दबाते हैं। 
      • राजनीतिक विज्ञापन का विनियमन: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि राजनीतिक विज्ञापन फंडिंग और गुप्त हेरफेर को रोकने की मंशा पारदर्शी हों।
    • गोपनीयता और डेटा सुरक्षा की रक्षा करना
      • सूचित सहमति: उपयोगकर्त्ताओं को इस बात की पूरी जानकारी होनी चाहिये कि उनका डेटा किस प्रकार एकत्रित, संसाधित और उपयोग किया जा रहा है तथा उन्हें इससे बाहर निकलने का विकल्प भी होना चाहिये।
        • यूरोप में सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन उपयोगकर्त्ताओं से उनके डेटा के संबंध में स्पष्ट और सूचित सहमति लेना अनिवार्य करता है।
      • डेटा शोषण को रोकना: नियमों में अनैतिक डेटा माइनिंग और राजनीतिक प्रचार के लिये माइक्रो-टार्गेटिंग पर रोक लगाई जानी चाहिये।
      • डेटा आधिपत्य: सरकारों को विदेशी संस्थाओं (जैसे भारत का व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023) द्वारा अनधिकृत पहुँच को रोकने के लिये डेटा स्थानीयकरण और सख्त गोपनीयता कानूनों को लागू करना चाहिये।
    • हानि से बचाव करते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करना
      • संतुलित विनियमन: सरकारों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा और हेट स्पीच व हिंसा भड़काने जैसी हानिकारक कंटेंट/अभिव्यक्तियों पर अंकुश लगाने के बीच संतुलन बनाना चाहिये।
      • निगरानी के साथ कंटेंट मॉडरेशन: सोशल प्लेटफॉर्म को निष्पक्षता सुनिश्चित करने और पूर्वाग्रह से बचने के लिये स्वतंत्र निकायों की देखरेख में पारदर्शी सामग्री मॉडरेशन नीतियाँ विकसित करनी चाहिये।
    • डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना
      • नागरिकों को सशक्त बनाना: सरकारों, नागरिक समाज और निगमों को फर्ज़ी समाचारों की पहचान करने, एल्गोरिदम को समझने तथा उनकी गोपनीयता की रक्षा करने के बारे में उपयोगकर्त्ताओं को शिक्षित करने के लिये मिलकर काम करना चाहिये।
        • यूनेस्को के ‘मीडिया और सूचना साक्षरता’ कार्यक्रम नागरिकों को डिजिटल युग में आलोचनात्मक सोच कौशल से लैस करते हैं।

    निष्कर्ष: 

    सूचना प्रौद्योगिकी ने संचार और शासन में क्रांति ला दी है, लेकिन इसके दुरुपयोग ने लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में कमज़ोरियों को उजागर किया है। लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने के लिये, IT विनियमन को पारदर्शिता, उत्तरदायित्व, डेटा गोपनीयता, वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समावेशिता जैसे नैतिक विचारों द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिये। सरकारों, निगमों और नागरिकों को एक परिवेश बनाने के लिये सहयोग करना चाहिये जो यह सुनिश्चित करता है कि प्रौद्योगिकी शोषण के लिये नहीं बल्कि सशक्तीकरण का एक साधन बनी रहे।

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