प्रश्न: "मृदा प्रदूषण का जल प्रदूषण और जैवविविधता हानि के साथ गहरा संबंध है।” चर्चा कीजिये कि भारत में मृदा प्रदूषण की समस्याओं से निपटने के लिये पर्यावरण संरक्षण हेतु एकीकृत दृष्टिकोण कैसे प्रभावी हो सकता है? (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- मृदा प्रदूषण, जल संदूषण और जैवविविधता ह्रास के बीच संबंध को बताते हुए उत्तर प्रस्तुत दीजिये।
- मृदा प्रदूषण, जल संदूषण और जैवविविधता ह्रास के बीच अंतर्संबंधों का समर्थन करने वाले प्रमुख तर्क दीजिये।
- मृदा प्रदूषण से निपटने के लिये एकीकृत दृष्टिकोण का सुझाव दीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
मृदा प्रदूषण, जल संदूषण और जैवविविधता का ह्रास आपस में संबद्ध हुई चुनौतियाँ हैं जो भारत की पर्यावरणीय एवं कृषि संधारणीयता को कमज़ोर कर रही हैं। अत्यधिक उर्वरक प्रयोग, शहरीकरण और निर्वाणीकरण पारिस्थितिकी तंत्र का क्षरण करते हैं, जल निकायों को प्रदूषित करती है तथा पश्चिमी घाट एवं हिमालय जैसे जैवविविधता हॉटस्पॉट को खतरे उत्पन्न करते हैं।
उदाहरण:
कृषि अपवाह ➡️ पोषक तत्त्व संदूषण (सुपोषण) ➡️ शैवाल प्रस्फुटन ➡️ अवरुद्ध सूर्यप्रकाश और बाधित प्रवाल-ज़ूजैन्थेले सहजीविता ➡️ प्रवाल विरंजन
मुख्य भाग:
मृदा प्रदूषण, जल संदूषण और जैवविविधता हानि के बीच अंतर्संबंध:
- मृदा प्रदूषण और जल संदूषण: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से पोषक तत्त्वों का रिसाव होता है, जिससे सतही और भूजल संसाधन संदूषित होते हैं।
- उदाहरण: पंजाब में नाइट्रोजन के अत्यधिक प्रयोग के कारण जलभृतों में नाइट्रेट का अत्यधिक संचय हो जाता है, जिससे जल पीने योग्य नहीं रह जाता है।
- भारी धातुओं वाले औद्योगिक अपशिष्ट का मृदा और जल में रिसाव होता है, जिससे संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होते हैं।
- मृदा प्रदूषण और जैवविविधता ह्रास: क्षीण मृदा के कारण उर्वरता कम हो जाती है, जिससे वनस्पति और वन्य जीव आवास प्रभावित होते हैं।
- उदाहरण: पूर्वोत्तर भारत में झूम खेती (कर्तन-दहन) से वन क्षेत्र नष्ट हो रहा है, जिससे हूलॉक गिब्बन जैसी मूल प्रजातियों को नुकसान पहुँच रहा है।
- स्थायी कार्बनिक प्रदूषक (जैसे: DDT) मृदा और जल में संचित हो जाते हैं, जिससे खाद्य शृंखला एवं पारिस्थितिकी तंत्र बाधित होते हैं (जैसे: DDT के कारण शिकारी पक्षियों के अंडे का सुभेद्य हो जाना)
- जल संदूषण और जैवविविधता ह्रास: संदूषित जल निकाय ऑक्सीज़न की कमी (यूट्रोफिकेशन/सुपोषण) और विषाक्त पदार्थों के जैवसंचय के माध्यम से जलीय जैवविविधता को नुकसान पहुँचाते हैं।
- उदाहरण: यमुना नदी औद्योगिक अपशिष्टों और कृषि अपवाह से ग्रस्त है, जिससे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट हो रहा है।
मृदा प्रदूषण से निपटने के लिये एकीकृत दृष्टिकोण
- संधारणीय कृषि पद्धतियाँ
- जैविक कृषि और जैवउर्वरक: सिंथेटिक रसायनों पर निर्भरता कम करने और मृदा स्वास्थ्य पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता है।
- उदाहरण: परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) जैविक कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देती है।
- एकीकृत पोषक तत्त्व प्रबंधन (INM): रासायनिक उर्वरकों को जैविक इनपुट और जैव उर्वरकों के साथ संतुलित किया जाना चाहिये।
- जैव उर्वरकों के लिये प्रोत्साहन और सुदृढ़ीकृत उर्वरकों को बढ़ावा देने के लिये पोषक तत्त्व-आधारित सब्सिडी (NBS) को संशोधित करने की आवश्यकता है।
- कृषि वानिकी और फसल चक्र: कृषि वानिकी और फसल चक्र के अंगीकरण से जैवविविधता में वृद्धि, मृदा संरचना में सुधार एवं मृदा अपरदन में कमी आती है।
- बेहतर मृदा संरक्षण और सामाजिक-आर्थिक लाभ के लिये पारंपरिक वाडी प्रणालियों (वृक्ष-आधारित कृषि) को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- मृदा स्वास्थ्य के लिये जल प्रबंधन
- सूक्ष्म सिंचाई तकनीक: जलभराव और लवणीकरण को रोकने के लिये ड्रिप एवं स्प्रिंकलर सिंचाई को बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है।
- उदाहरण: प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) का लक्ष्य सूक्ष्म सिंचाई है, लेकिन इसके विस्तार (वर्तमान में केवल 19% कवरेज) की आवश्यकता है।
- आर्द्रभूमि पुनर्भरण: कृषि एवं औद्योगिक अपवाह से प्रदूषकों को प्राकृतिक रूप से फिल्टर करने के लिये आर्द्रभूमि का उपयोग तथा डाउनस्ट्रीम जल निकायों और आसपास की मृदा के संरक्षण की आवश्यकता है।
- वनरोपण और जैवविविधता पुनर्स्थापन
- वनरोपण कार्यक्रम: मृदा उर्वरता और वन्य जीव आवास को पुनर्स्थापित करने के लिये क्षतिग्रस्त भूमि पर देशी वनस्पति लगाए जाने की आवश्यकता है।
- उदाहरण: राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम (NAP) को समुदाय-नेतृत्व वाली भूमि पुनर्स्थापन के लिये MGNREGA के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
- मैंग्रोव पुनर्स्थापन: तटीय मृदा को लवणता के अतिक्रमण से बचाना तथा जलीय जैवविविधता को समर्थन प्रदान किया जाना चाहिये।
- उदाहरण: तमिलनाडु के मैंग्रोव वनरोपण कार्यक्रम को देश भर में बढ़ाया जा सकता है।
- जलवायु-अनुकूल मृदा संरक्षण
- संरक्षण कृषि: शून्य जुताई, मल्चिंग और कवर फसल जैसी पद्धतियाँ मृदा अपरदन को कम करती हैं और मिट्टी में कार्बन अवशोषण को बढ़ाती हैं।
- उदाहरण: बोरलॉग इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया, हैप्पी सीडर जैसी प्रौद्योगिकियों के साथ पंजाब में शून्य-जुताई पद्धति को बढ़ावा देता है।
- समुत्थानशील रणनीतियाँ: बाढ़, सूखे और अनियमित वर्षा प्रति समुत्थानशक्ति बढ़ाने की दिशा में राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन अनुकूलन निधि (NAFCC) परियोजनाओं को मृदा स्वास्थ्य पहलों के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
- जैव उपचार और प्रदूषण नियंत्रण
- भारी धातुओं और औद्योगिक विषाक्त पदार्थों से दूषित मृदा के शोधन के लिये फाइटोएक्स्ट्रेक्शन जैसी जैव-उपचार तकनीकों का उपयोग करने की आवश्यकता है।
- उदाहरण: गुजरात के अंकलेश्वर में औद्योगिक रूप से प्रदूषित मृदा को शुद्ध करने के लिये जैव-उपचार का प्रयोग किया गया है।
- माइक्रोप्लास्टिक संदूषण नियंत्रण: कृषि प्लास्टिक के स्थान पर स्टार्च आधारित प्लास्टिक जैसे जैवनिम्नीकरणीय विकल्पों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये तथा अपशिष्ट निपटान को विनियमित किया जाना चाहिये।
- संधारणीय पैकेजिंग के लिये प्लास्टिक के स्थान पर जूट के बैग का प्रयोग किया जाना चाहिये।
- आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) ने मंज़ूरी दी है कि 100% खाद्यान्न और 20% चीनी को अनिवार्य रूप से विविध जूट की बोरियों में पैक किया जाएगा, जो सही दिशा में उठाया गया कदम है।
- एकीकृत नीति कार्यढाँचा
- एकीकृत पर्यावरण नीतियाँ: मृदा स्वास्थ्य कार्यक्रमों (जैसे- मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना) को जल प्रबंधन योजनाओं (जैसे- जल शक्ति अभियान) और जैवविविधता कार्यक्रमों के साथ संरेखित करने की आवश्यकता है।
- डिजिटल मृदा मानचित्रण: मृदा क्षरण की निगरानी करने तथा क्षेत्र-विशिष्ट हस्तक्षेप की सिफारिश करने के लिये ISRO के पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों का उपयोग करने की आवश्यकता है।
- समुदाय और प्रौद्योगिकी-संचालित समाधान
- सहभागी दृष्टिकोण: मृदा और जल संरक्षण में स्थानीय समुदायों को शामिल किया जाना चाहिये, विशेष रूप से राजस्थान तथा पूर्वोत्तर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में।
- प्रौद्योगिकी एकीकरण: मृदा अपरदन, जल संदूषण और वन आवरण में परिवर्तन की निगरानी के लिये AI एवं ड्रोन का उपयोग करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
मृदा प्रदूषण, जल संदूषण और जैवविविधता का ह्रास आपस में जुड़ी चुनौतियाँ हैं, जिनसे निपटने के लिये पर्यावरण संरक्षण की समन्वित एवं एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है। संधारणीय कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देकर, जल प्रबंधन में सुधार करके और जैवविविधता को पुनर्स्थापित करके, भारत अपने पारिस्थितिक संतुलन की रक्षा करते हुए मृदा संदूषण को दूर कर सकता है।