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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न: "प्रवासी कूटनीति भारत की सॉफ्ट पावर रणनीति के एक विशिष्ट घटक के रूप में उभरी है।" भारत की प्रवासी सहभागिता पहलों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये। (150 शब्द)

    14 Jan, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • भारत के प्रवासी समुदाय के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए उत्तर दीजिये। 
    • भारत की सॉफ्ट पावर रणनीति के प्रमुख घटक प्रवासी कूटनीति के पक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिये। 
    • प्रवासी कूटनीति के उपयोग में चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
    • प्रवासी कूटनीति को बढ़ाने के लिये आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय: 

    भारत का प्रवासी समुदाय, जिसमें 146 देशों में फैले 31 मिलियन से अधिक लोग शामिल हैं विश्व के सबसे बड़े प्रवासी समुदायों में से एक है। धन-प्रेषण (वर्ष 2021 में 89 बिलियन डॉलर, जो वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक है) से लेकर भारत के संदर्भ में वैश्विक धारणाओं को प्रभावित करने तक, प्रवासी कूटनीति भारत की सॉफ्ट पावर रणनीति का आधार बन गई है।

    मुख्य भाग: 

    भारत की सॉफ्ट पावर रणनीति के एक घटक के रूप में प्रवासी कूटनीति: 

    • सांस्कृतिक कूटनीति
      • सांस्कृतिक राजदूत: भारतीय प्रवासी भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, योग, आयुर्वेद और दिवाली व होली जैसे त्योहारों को विश्व स्तर पर बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
        • उदाहरण के लिये, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन प्रवासी भारतीयों के समर्थन (आंशिक रूप से) के कारण सफल हुआ है।
      • भारतीय पहचान का संरक्षण: भारत को जानो कार्यक्रम (KIP) और प्रवासी भारतीय दिवस (PBD) जैसी पहल दूसरी व तीसरी पीढ़ी के प्रवासी युवाओं के बीच भारत की संस्कृति से जुड़ाव को बढ़ावा देती हैं तथा उन्हें सांस्कृतिक राजदूतों के रूप में स्थापित करती हैं।
      • भाषा और परंपराओं को बढ़ावा देना: विदेशों में भारतीय भाषाओं (हिंदी, तमिल, आदि) को संरक्षित करने के प्रयास सांस्कृतिक संबंधों को मज़बूत करते हैं, जैसा कि सिंगापुर और मॉरीशस में तमिल भाषी आबादी में देखा गया है।
    • आर्थिक कूटनीति
      • विप्रेषण: भारत को वर्ष 2021 में 89 बिलियन डॉलर का विप्रेषण प्राप्त हुआ, जो विश्व स्तर पर सबसे अधिक है, जिसने ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। खाड़ी प्रवासी समुदाय विप्रेषण प्रवाह का एक प्रमुख स्रोत हैं।
      • निवेश और उद्यमिता: मेक इन इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसी योजनाओं के तहत NRI निवेश को घरेलू (FDI नहीं) मानने जैसी नीतियों ने भारत के इनोवेशन ईको-सिस्टम में निवेश को बढ़ावा दिया है। 
        • भारतीय प्रवासी उद्यमियों ने फ्लिपकार्ट जैसे स्टार्ट-अप के विकास में योगदान दिया है।
      • परोपकार: प्रवासी भारतीयों के भारत विकास फाउंडेशन (IDF-OI) जैसी पहल, स्वच्छ भारत और स्वच्छ गंगा जैसी सामाजिक विकास परियोजनाओं में प्रवासी योगदान को प्रोत्साहित करती है।
    • राजनीतिक समर्थन
      • भारत के हितों की पैरवी करना: प्रवासी भारतीयों ने भारत के हितों की पैरवी करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जैसे कि: अमेरिका-भारत असैन्य परमाणु समझौता (वर्ष 2008) और भारत द्वारा न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में (वर्ष 2017) पुनः निर्वाचित करना।
      • वैश्विक राजनीति में प्रभाव: विवेक रामास्वामी (अमेरिकी उद्यमी और राजनीतिज्ञ), लियो वराडकर (फाइन गेल (Fine Gael) पार्टी से संबंधित एक पूर्व आयरिश राजनेता) और एंटोनियो कोस्टा (पुर्तगाल के पूर्व प्रधानमंत्री) जैसे भारतीय मूल के प्रमुख नेता भारत एवं उनके मेज़बान देशों के बीच समन्वयक के रूप में कार्य करते हैं, जिससे राजनयिक संबंध प्रगाढ़ होते हैं।
      • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता के लिये समर्थन: प्रवासी समूहों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिये पैरवी की है, जिससे वैश्विक धारणा प्रभावित हुई है।
    • सकारात्मक वैश्विक छवि का निर्माण
      • "ब्रांड इंडिया": प्रवासी सदस्य अनौपचारिक राजदूत के रूप में कार्य करते हैं तथा अपने मेज़बान देशों में भारत के लोकतंत्र, बहुलवाद और समावेशिता के मूल्यों को बढ़ावा देते हैं।
        • विविध क्षेत्रों में भारतीय मूल के पेशेवरों की सफलता (जैसे- सुंदर पिचाई, सत्य नडेला) वैश्विक प्रतिभा के स्रोत के रूप में भारत की छवि को बढ़ाती है।
      • सॉफ्ट पावर इवेंट्स: हाउडी मोदी (ह्यूस्टन, 2019) और वेम्बली इवेंट (लंदन, 2015) जैसे प्रवासी-केंद्रित कार्यक्रम प्रवासी भारतीयों के बीच गर्व की भावना बढ़ाते हैं एवं विश्व स्तर पर भारत की सॉफ्ट पावर को बढ़ावा देते हैं।
      • प्रवासी श्रमिकों का कल्याण: भारतीय समुदाय कल्याण कोष (ICWF) और रेस्क्यू मिशन (जैसे- दक्षिण सूडान में संकट मोचन ऑपरेशन) जैसे कार्यक्रम संकट/आपदा के दौरान अपने प्रवासी समुदाय की सुरक्षा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।

    प्रवासी कूटनीति के प्रयोग में चुनौतियाँ

    • असमान ध्यान: भारत के प्रवासी जुड़ाव में प्रायः अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों के धनी प्रवासियों को प्राथमिकता दी जाती है, जबकि खाड़ी देशों के निम्न आय वर्ग को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है, जो प्रवासी समुदाय का एक बहुत बड़ा हिस्सा हैं।
    • सुरक्षा चिंताएँ: प्रवासी समुदाय के कुछ वर्गों ने अलगाववादी आंदोलनों का समर्थन किया है, जैसे कि कनाडा और ब्रिटेन में खालिस्तान आंदोलन, जिससे कूटनीतिक चुनौतियाँ बढ़ गई हैं।
    • सीमित राजनीतिक समर्थन: यद्यपि प्रवासी भारतीयों ने भारत के हितों के लिये पैरवी की है, फिर भी भारत प्रवासी भारतीयों की चिंताओं, जैसे अमेरिका में H-1B वीज़ा सुधार या खाड़ी श्रमिकों के अधिकारों के मुद्दे पर समर्थन करने में कम प्रभावी रहा है।

    प्रवासी कूटनीति को बढ़ाने की दिशा में आगे की राह 

    • समावेशी सहभागिता: विकसित देशों के धनी प्रवासियों के साथ-साथ खाड़ी देशों के निम्न आय वाले प्रवासी समूहों पर ध्यान केंद्रित किये जाने की आवश्यकता है।
    • कल्याण तंत्र को मज़बूत करना: संकट के दौरान प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा के लिये भारतीय समुदाय कल्याण कोष (ICWF) के लिये वित्तपोषण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • नीतिगत सुधार: प्रवासी भारतीयों की सहभागिता में सुधार के लिये उनके दोहरी नागरिकता और मताधिकार की मांग पर पुनर्विचार किये जाने की आवश्यकता है।
    • प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: ओवरसीज़ रिक्रूटमेंट में पारदर्शिता सुनिश्चित करने और श्रमिकों को शोषण से बचाने के लिये ई-माइग्रेट जैसे प्लेटफॉर्मों का प्रयोग किया जाना चाहिये।
    • प्रवासी नेतृत्व वाले समर्थन: प्रवासी समूहों को भारत की वैश्विक आकांक्षाओं, जैसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता और बहुपक्षीय व्यापार वार्ता को आगे बढ़ाने में रणनीतिक साझेदार के रूप में कार्य करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष

    प्रवासी कूटनीति भारत की सॉफ्ट पावर का एक प्रमुख घटक है, जो इसके वैश्विक प्रवासी समुदाय के आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक योगदान से लाभान्वित होती है। प्रवासी कूटनीति में भारत की सफलताओं के बावजूद, असमान फोकस और सुरक्षा चिंताओं जैसी चुनौतियाँ इसकी पूरी क्षमता को सीमित कर देती हैं। इन कमियों को दूर करने से भारत का वैश्विक प्रभाव बढ़ सकता है तथा रणनीतिक संपदा के रूप में प्रवासी समुदाय को सुदृढ़ किया जा सकता है।

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