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प्रश्न :
प्रश्न: शासन में जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये सामाजिक अंकेक्षण तंत्र महत्त्वपूर्ण साधन के रूप में उभरे हैं। मनरेगा के विशेष संदर्भ में उनकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)
14 Jan, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- सामाजिक अंकेक्षण को परिभाषित करते हुए उत्तर दीजिये।
- शासन में जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये एक साधन के रूप में सामाजिक अंकेक्षण तंत्र के पक्ष में तर्क दीजिये।
- मनरेगा में सामाजिक अंकेक्षण की प्रभावशीलता पर प्रकाश डालिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
सामाजिक अंकेक्षण/अंकेक्षण सहभागितापूर्ण प्रक्रियाएँ हैं जहाँ उत्तरदायित्व और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये नागरिक, सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन का आलोचनात्मक मूल्यांकन करते हैं। वर्ष 2005 से मनरेगा अधिनियम की धारा 17 के तहत अनिवार्य, सामाजिक अंकेक्षण का उद्देश्य विसंगतियों को उजागर करके तथा सेवा वितरण में सुधार करके ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाना है।
मुख्य भाग:
शासन में उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने के लिये एक साधन के रूप में सामाजिक अंकेक्षण तंत्र:
- सार्वजनिक व्यय में पारदर्शिता: सामाजिक अंकेक्षण सरकारी योजनाओं, बजट और उनके कार्यान्वयन की विस्तृत संवीक्षा प्रदान करती है।
- वित्तीय रिकॉर्ड और कार्यान्वयन विवरण को जनता के लिये सुलभ बनाकर, ये भ्रष्टाचार, धन का दुरुपयोग या अकुशलता जैसी अनियमितताओं को उजागर करते हैं।
- नागरिकों का सशक्तीकरण: सामाजिक अंकेक्षण में सामुदायिक भागीदारी शामिल होती है, जहाँ नागरिक सीधे तौर पर सरकारी कार्यक्रमों के कार्यान्वयन का आकलन करते हैं।
- इससे लाभार्थियों में स्वामित्व की भावना बढ़ती है और उन्हें अपनी शिकायतें व्यक्त करने का अवसर मिलता है।
- भ्रष्टाचार में कमी: अंकेक्षण निष्कर्षों का सार्वजनिक प्रकटीकरण अधिकारियों और ठेकेदारों के बीच भ्रष्ट आचरण को प्रतिबंधित करता है।
- सहयोगियों/सहकर्मियों का दबाव और सामुदायिक निगरानी नैतिक मानकों का पालन सुनिश्चित करती है।
मनरेगा में सामाजिक अंकेक्षण की प्रभावशीलता
- मुख्य सफलताएँ:
- पारदर्शिता और भ्रष्टाचार विरोधी: सामाजिक अंकेक्षण ने फर्ज़ी मस्टर रोल, फर्ज़ी लाभार्थी, मज़दूरी में हेराफेरी और अवमानक परिसंपत्ति जैसी अनियमितताओं को उजागर किया है।
- उदाहरण के लिये, आंध्र प्रदेश में सामाजिक अंकेक्षण से बड़े पैमाने पर अनियमितताएँ उजागर हुई हैं जिससे धन की वसूली में मदद मिली है।
- सहभागी लोकतंत्र: सामाजिक अंकेक्षण स्थापित सत्ता संरचनाओं को चुनौती देने के लिये सीमांत समुदायों को सशक्त बनाती है।
- वे सामूहिक संवीक्षा के लिये एक सार्वजनिक मंच प्रदान करते हैं, जैसा कि मज़दूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) जैसे नागरिक समाज समूहों द्वारा शुरू की गई जनसुनवाई में देखा गया है।
- बेहतर कार्यान्वयन: केरल (100% अंकेक्षण कवरेज) और तेलंगाना (40.5% अंकेक्षण कवरेज) जैसे राज्यों ने प्रदर्शित किया है कि सामाजिक अंकेक्षण से पारदर्शिता में सुधार होता है, जनता का विश्वास बढ़ता है तथा गुणवत्तापूर्ण कार्यान्वयन सुनिश्चित होता है।
- उत्तरदायित्व का संस्थागतकरण: अंकेक्षण के लिये आवंटित मनरेगा व्यय के 0.5% के बराबर धनराशि के साथ, सामाजिक अंकेक्षण इकाइयाँ (SAU) कार्यान्वयन प्राधिकारियों से स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं, जिससे निष्पक्षता सुनिश्चित होती है।
- नियमित अंकेक्षण प्रशासनिक अधिकारियों को भी सतर्क रहने के लिये बाध्य करता है।
- पारदर्शिता और भ्रष्टाचार विरोधी: सामाजिक अंकेक्षण ने फर्ज़ी मस्टर रोल, फर्ज़ी लाभार्थी, मज़दूरी में हेराफेरी और अवमानक परिसंपत्ति जैसी अनियमितताओं को उजागर किया है।
- कार्यान्वयन में चुनौतियाँ:
- कम कवरेज: हाल के MIS आँकड़ों के अनुसार, केवल 6 राज्यों ने 50% से अधिक ग्राम पंचायतों में सामाजिक अंकेक्षण प्रक्रिया पूरी की है; पिछड़े राज्यों में मध्य प्रदेश (1.73%), राजस्थान (34.74%) व अन्य शामिल हैं।
- जागरूकता का अभाव: कई ग्रामीण समुदाय मनरेगा के तहत अपने अधिकारों के बारे में अनभिज्ञ हैं, जिससे उनकी भागीदारी सीमित हो जा रही है।
- राजनीतिक और प्रशासनिक प्रतिरोध: स्थानीय अभिजात वर्ग और राजनेता प्रायः सामाजिक अंकेक्षण को अपने प्रभाव के लिये खतरा मानते हैं, जैसा कि राजस्थान (वर्ष 2009) में देखा गया, जहाँ अंकेक्षण को पंचायत अधिकारियों के विरोध का सामना करना पड़ा।
- कमज़ोर कार्यवाही तंत्र: प्रशासनिक जड़ता और उत्तरदायित्व कार्यढाँचे की कमी के परिणामस्वरुप अंकेक्षण के बाद कोई सुधारात्मक कार्रवाई में नहीं हो पाती है।
- संसाधन की कमी: कई राज्य सामाजिक अंकेक्षण इकाइयों (SAU) को पर्याप्त धनराशि उपलब्ध नहीं कराते हैं, जिसके कारण प्रभावी अंकेक्षण करने के लिये प्रशिक्षण, स्टाफिंग और बुनियादी अवसंरचना की कमी हो जाती है।
- मुखबिरों का उत्पीड़न: सामाजिक अंकेक्षकों और मुखबिरों को निहित स्वार्थी तत्त्वों की ओर से धमकियों तथा उनके द्वारा उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।
आगे की राह
- संस्थागत तंत्र को मज़बूत करना: ग्रामीण विकास मंत्रालय की अनुशंसा के अनुसार, पर्याप्त धन और कार्मिकों के साथ सभी राज्यों में समर्पित सामाजिक अंकेक्षण इकाइयाँ (SAU) स्थापित की जानी चाहिये।
- क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण: अंकेक्षकों, अधिकारियों और ज़मीनी स्तर के कार्यकर्त्ताओं सहित सामाजिक अंकेक्षण कर्मियों के लिये नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित की जानी चाहिये।
- एकरूपता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये एक मानकीकृत सामाजिक अंकेक्षण पद्धति विकसित की जानी चाहिये।
- नागरिक समाज-राज्य सहयोग को बढ़ावा देना: समावेशिता और उत्तरदायित्व बढ़ाने के लिये अंकेक्षण प्रक्रियाओं में नागरिक समाज संगठनों (CSO) एवं ज़मीनी स्तर के गतिविधियों को शामिल किया जाना चाहिये।
- जनसुनवाई को संस्थागत तथा सभी मनरेगा अंकेक्षण के अंतर्गत इसे अनिवार्य बनाया जाना चाहिये।
- तकनीकी एकीकरण: सामाजिक अंकेक्षण के पूरक के रूप में कार्य आवंटन, मज़दूरी भुगतान और शिकायत निवारण की रियल टाइम ट्रैकिंग के लिये डिजिटल उपकरणों का प्रयोग किया जाना चाहिये।
- कार्यस्थलों का सत्यापन करने और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये जियो-टैगिंग एवं मोबाइल ऐप्लीकेशन का लाभ उठाए जाने की आवश्यकता है।
- सामाजिक अंकेक्षण का दायरा बढ़ाना: समग्र शासन जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और पेंशन जैसी अन्य कल्याणकारी योजनाओं की निगरानी हेतु सामाजिक अंकेक्षण का विस्तार किया जाना चाहिये।
- जागरूकता और सामुदायिक लामबंदी: ग्रामीण समुदायों को मनरेगा के तहत उनके अधिकारों और सामाजिक अंकेक्षण की भूमिका के बारे में शिक्षित करने के लिये जागरूकता अभियान चलाए जाने की आवश्यकता है।
- महिलाओं, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समूहों व अन्य सीमांत समुदायों की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
मनरेगा के तहत सामाजिक अंकेक्षण शासन के लिये नागरिक-संचालित दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो नीति और कार्यान्वयन के बीच उत्तरदायित्व सुनिश्चित करते हैं। चुनौतियों के बावजूद, भागीदारी, संस्थागत तंत्र और राजनीतिक इच्छाशक्ति को दृढ़ करके उनके प्रभाव को अधिकतम किया जा सकता है। ये अंकेक्षण पारदर्शिता को बढ़ावा देते हैं, विश्वास को बढ़ावा देते हैं और समावेशी विकास का समर्थन करते हैं, जिससे भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों को मज़बूती मिलती है।
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