प्रश्न :
प्रश्न. परंपरा बोझ नहीं, बल्कि प्रगति का आधार है।
11 Jan, 2025
निबंध लेखन निबंध
उत्तर :
अपने निबंध को समृद्ध करने के लिये उद्धरण:
- महात्मा गांधी- "किसी राष्ट्र की संस्कृति उसके लोगों के हृदय और आत्मा में निवास करती है।"
- कन्फ्यूशियस - "यदि आप भविष्य को परिभाषित करना चाहते हैं तो अतीत का अध्ययन करें।"
सैद्धांतिक और दार्शनिक आयाम:
- निरंतरता और परिवर्तन: परंपराएँ पहचान और निरंतरता की भावना प्रदान करती हैं, साथ ही समय के साथ प्रगति और अनुकूलन के लिये संभावनाएँ भी प्रदान करती हैं।
- रूढ़िवाद का दर्शन: परंपरा को महत्त्व देने के बर्क के तर्क अंतर-पीढ़ीगत ज्ञान के महत्त्व में उनके विश्वास पर आधारित हैं, जिसे वे स्वाभाविक रूप से आधारित एवं समय के साथ आगे बढ़ता हुआ मानते हैं।
- सांस्कृतिक समुत्थानशीलन: परंपराएँ समाज को परिवर्तन के साथ अपने मूल मूल्यों को संरक्षित करके समुत्थानशील करने में मदद करती हैं। उदाहरण के लिये काइज़ेन/Kaizen (निरंतर सुधार) की जापानी अवधारणा पारंपरिक अनुशासन को नवाचार के साथ संतुलित करती है।
नीति और ऐतिहासिक उदाहरण:
- भारत की पंचायती राज प्रणाली: पारंपरिक ग्राम परिषदों पर आधारित एक आधुनिक शासन कार्यढाँचा, जो सांस्कृतिक नींव पर निर्मित प्रगति का उदाहरण है।
- सांस्कृतिक पुनर्जागरण आंदोलन: भारत में बंगाल पुनर्जागरण ने पारंपरिक मूल्यों को आधुनिक बौद्धिक गतिविधियों के साथ सामंजस्य स्थापित किया, जिससे सामाजिक-सांस्कृतिक प्रगति को बढ़ावा मिला।
समकालीन उदाहरण:
- योग और आयुर्वेद: भारत की प्राचीन प्रथाओं ने आधुनिक स्वास्थ्य उद्योगों में वैश्विक प्रासंगिकता प्राप्त की है।
- स्वदेशी ज्ञान प्रणालियाँ: पर्यावरण संरक्षण के प्रयास तेज़ी से स्वदेशी समुदायों की पारंपरिक प्रथाओं पर निर्भर होते जा रहे हैं, जैसे कि अमेजन वन्य जनजातियों की सतत् कृषि।
- त्यौहार और अर्थव्यवस्था: दिवाली और क्रिसमस जैसे पारंपरिक त्यौहार सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित करते हुए आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं।