प्रश्न: गुप्त शासकों के संरक्षण ने भारतीय कला और संस्कृति के 'स्वर्ण युग' को कैसे परिभाषित किया? साहित्य, कला और वास्तुकला के संदर्भ में विशिष्ट उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- गुप्त काल के महत्त्व को संक्षेप में बताते हुए उत्तर दीजिये।
- गुप्त शासकों के निम्नलिखित योगदान पर प्रकाश डालिये:
- साहित्य
- कला
- वास्तुकला
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
गुप्त काल (चौथी-छठी शताब्दी ई.) को साहित्य, कला और वास्तुकला में हुई प्रगति के कारण भारतीय कला एवं संस्कृति के "स्वर्ण युग" के रूप में मनाया जाता है।
गुप्त साम्राज्य के शासकों ने अपने संरक्षण के माध्यम से एक जीवंत सांस्कृतिक वातावरण को बढ़ावा दिया, जिसने धार्मिक और दार्शनिक परंपराओं को कलात्मक अभिव्यक्तियों के साथ सामंजस्य स्थापित किया।
मुख्य भाग:
साहित्य में योगदान:
गुप्त शासकों ने संस्कृत को बौद्धिक और सांस्कृतिक संवाद की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया, जिससे एक विशिष्ट साहित्यिक पुनर्जागरण को बढ़ावा मिला।
- शास्त्रीय संस्कृत साहित्य:
- सबसे प्रसिद्ध कवि-नाटककार कालिदास ने अभिज्ञानशाकुंतलम जैसी उत्कृष्ट कृतियों की रचना की, जिसे इसके काव्यात्मक सौंदर्य के लिये वैश्विक उत्कृष्ट कृति माना जाता है तथा मेघदूत, काव्यात्मक लालित्य का उदाहरण है।
- शूद्रक की मृच्छकटिक में सामाजिक और राजनीतिक सक्रियता को हास्य और मार्मिकता के साथ चित्रित किया गया है।
- विशाखदत्त ने मुद्राराक्षस की रचना की, जिसमें राजकौशल और कूटनीति पर प्रकाश डाला गया।
- धार्मिक एवं दार्शनिक ग्रंथ:
- हिंदू धार्मिक परंपराओं के लिये महत्त्वपूर्ण पुराणों का संकलन इस अवधि के दौरान किया गया, जिसमें विष्णु पुराण और भागवत पुराण जैसे ग्रंथ शामिल हैं।
- याज्ञवल्क्य और नारद जैसी स्मृतियों ने विधिक एवं सामाजिक मानदंडों को संहिताबद्ध किया।
- व्याकरणिक और कोशिकीय योगदान:
- अमरसिंह का अमरकोश एक स्थायी शब्दकोश बना हुआ है। बौद्ध विद्वान चंद्रगोमी के चंद्रव्याकरणम ने व्याकरण संबंधी अध्ययन को समृद्ध किया।
- महाकाव्य शोधन:
- इस युग के दौरान रामायण और महाभारत को अंतिम रूप प्रदान किया गया, जिसने भारत के सांस्कृतिक आधार का कार्य किया।
कला में योगदान:
- चित्रकारी:
- अजंता गुफाओं (महाराष्ट्र) और बाघ गुफाओं (मध्य प्रदेश) में जातक कथाओं के दृश्यों को चित्रित करने वाले भित्तिचित्र परिप्रेक्ष्य, छायांकन एवं भावनात्मक गहन महारत को उजागर करते हैं। अजंता की गुफा-16 में “मरती हुई राजकुमारी” का दृश्य उस समय की कथात्मक और कलात्मक प्रतिभा का उदाहरण है।
- ये कलाकृतियाँ दक्षिण-पूर्व एशियाई बौद्ध कला के लिये आदर्श बनीं।
- मूर्ति:
- सारनाथ में बुद्ध की आसीन प्रतिमा, अपनी शांत अभिव्यक्ति के साथ, देवत्व और आध्यात्मिकता से समृद्ध गुप्त काल के आदर्शों का उदाहरण प्रस्तुत करती है।
- उदयगिरि पहाड़ियों पर स्थित वराह पैनल में भगवान विष्णु के वराह अवतार द्वारा पृथ्वी की रक्षा का वर्णन किया गया है, जिसमें पौराणिक कथाओं को कलात्मक परिष्कार के साथ मिश्रित किया गया है।
- इस काल के दौरान धातुकर्म अपने चरमोत्कर्ष पर थी, जिसका उदाहरण सुल्तानगंज (बिहार) की काँस्य बुद्ध प्रतिमा है, जो साढ़े सात फुट की उत्कृष्ट कृति है। इसमें जटिल शिल्प और तकनीकी कौशल का प्रदर्शन किया गया है।
- मथुरा और प्रयागराज से प्राप्त पैनल और मूर्तियों में परिष्कृत शिल्प कौशल के संकेत मिलते हैं, जिनमें प्रायः अलौकिक प्राणियों, देवताओं और पौराणिक विषयों को दर्शाया गया है।
वास्तुकला में योगदान
- मंदिर वास्तुकला:
- गुप्त शासकों ने पहले की काष्ठ संरचनाओं से हटकर पत्थर के मंदिर निर्माण कराया।
- दशावतार मंदिर (देवगढ़) अपने शिखर (टॉवर) के साथ प्रारंभिक नागर वास्तुकला को प्रदर्शित करता है, जो सांसारिक-दिव्य अक्ष का प्रतिनिधित्व करता है।
- अन्य महत्त्वपूर्ण उदाहरणों में कंकाली देवी मंदिर (तिगवा) और पार्वती मंदिर (नचना कुठारा) शामिल हैं, जिनमें स्तंभयुक्त बरामदे एवं प्रदक्षिणा पथ जैसे नवाचार प्रस्तुत किये गए।
- गुप्त मंदिरों में गर्भगृह का विशेष महत्त्व था, जो दैवीय उपस्थिति का प्रतीक था।
- गुफा मंदिर:
- उदयगिरि पहाड़ियों (मध्य प्रदेश) में, गुप्तों ने हिंदू गुफा मंदिरों का निर्माण किया, जो उनकी वैष्णव प्रतिमा के लिये उल्लेखनीय थे।
- अजंता और एलोरा की बौद्ध चैत्य एवं विहार गुफाएँ विस्तृत नक्काशी तथा चित्रकला से सुसज्जित थीं।
- स्तूप:
- धामेक स्तूप (सारनाथ) और रत्नागिरी स्तूप (ओडिशा) जैसे स्तूप, मुख्यतः हिंदू निष्ठा के बावजूद, बौद्ध धर्म को प्राप्त गुप्तकालीन संरक्षण के प्रतीक हैं।
निष्कर्ष:
गुप्त शासकों के संरक्षण ने भारतीय कला और संस्कृति में पुनर्जागरण को उत्प्रेरित किया, जिसकी विशेषता लालित्य, आध्यात्मिकता और बौद्धिक विकास थी। गुप्त विरासत ने न केवल भारत की सांस्कृतिक पहचान को परिभाषित किया, बल्कि दक्षिण पूर्व एशिया को भी प्रभावित किया, जिसने इस युग को भारतीय सभ्यता के वास्तविक "स्वर्ण युग" के रूप में स्थापित किया।