प्रश्न: हिमालयी नदियाँ पूरे वर्ष प्रवाहित होती हैं, जबकि प्रायद्वीपीय नदियाँ मौसमी बदलावों के प्रति संवेदनशील क्यों होती हैं? चर्चा कीजिये (150 शब्द)
13 Jan, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल
हल करने का दृष्टिकोण:
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हिमालय की नदियाँ जैसे: गंगा, यमुना और ब्रह्मपुत्र, बारहमासी प्रवाह बनाए रखती हैं, जबकि प्रायद्वीपीय नदियाँ जैसे: गोदावरी, कृष्णा और महानदी के निर्वहन में मौसमी परिवर्तन होते हैं। ये अंतर अलग-अलग भौगोलिक, जलवायु और जल विज्ञान संबंधी कारकों के कारण उत्पन्न होते हैं जो इनके प्रवाह को प्रभावित करते हैं।
भौगोलिक कारक: हिमालयी बनाम प्रायद्वीपीय नदियों का प्रवाह:
हिमालय की नदियाँ हिमनदों के पिघलने, बड़े जलग्रहण क्षेत्रों और अनुकूल जलवायु परिस्थितियों के कारण अपनी बारहमासी प्रकृति को बनाए रखती हैं, जबकि प्रायद्वीपीय नदियाँ मानसून पर निर्भरता, भू-गर्भीय बाधाओं और छोटे जलग्रहण क्षेत्रों के कारण मौसमी विविधताओं का सामना करती हैं। ये अंतर असमानताओं को कम करने और स्थायी जल उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये नदी को आपस में जोड़ने जैसे प्रभावी जल संसाधन प्रबंधन की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
वैकल्पिक रूप से, मुख्य भाग को सारणीबद्ध प्रारूप में प्रस्तुत किया जा सकता है:
पहलू |
हिमालयी नदियाँ |
प्रायद्वीपीय नदियाँ |
उत्पत्ति का स्रोत और जल आपूर्ति |
हिमालय के ग्लेशियरों और बर्फ से सिंचित क्षेत्रों से उत्पन्न होकर यह बारहमासी प्रवाह सुनिश्चित करती हैं। |
वर्षा आधारित, दक्षिण-पश्चिम मानसून पर अत्यधिक निर्भर, जिसके परिणामस्वरूप मौसमी जलापूर्ति होती है। |
उदाहरण: गंगोत्री ग्लेशियर से गंगा; चेमायुंगडुंग ग्लेशियर से ब्रह्मपुत्र। |
उदाहरण: त्र्यंबकेश्वर से गोदावरी; महाबलेश्वर से कृष्णा |
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ग्रीष्मकाल में पिघलते ग्लेशियर, कम वर्षा होने पर भी प्रवाह को बनाए रखती हैं। |
वैकल्पिक जल स्रोतों की कमी के कारण गैर-मानसून महीनों में जल सूख जाता है या प्रवाह कम हो जाता है। |
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जलवायु प्रभाव |
आर्द्र और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु सर्दियों में हिमपात तथा मानसूनी वर्षा सहित स्थिर वर्षण सुनिश्चित करती हैं। |
अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय जलवायु के कारण उच्च मानसूनी प्रवाह और शुष्क-मौसम के दौरान कम प्रवाह होता है। |
उदाहरण: गंगा की सहायक नदियाँ (जैसे, कोसी) तराई क्षेत्र से वर्षण प्राप्त करती हैं। |
उदाहरण: कावेरी और तुंगभद्रा में शुष्क मौसम के दौरान प्रवाह में महत्त्वपूर्ण कमी होती है। |
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जलग्रहण क्षेत्र और भूविज्ञान |
व्यापक सहायक नदी नेटवर्क के साथ विशाल जलग्रहण क्षेत्र, जो युवा एवं विवर्तनिक रूप से सक्रिय हिमालय द्वारा जल ग्रहण करती हैं। |
छोटे जलग्रहण क्षेत्र, जो कठोर क्रिस्टलीय चट्टानों वाले प्राचीन, स्थिर भूगर्भीय संरचनाओं से उत्पन्न होते हैं। |
उदाहरण: ब्रह्मपुत्र की दिबांग और लोहित जैसी विशाल सहायक नदियाँ हैं, जो प्रवाह को बनाए रखती हैं। |
कठिन भू-भाग और सीमित पारगम्यता के कारण मौसमी वर्षा का जल शीघ्र ही प्रवाहित हो जाता है। |
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मानवीय हस्तक्षेप |
बारहमासी प्रवाह सिंचाई और जलविद्युत परियोजनाओं को सहायता प्रदान करता है, जिससे प्रवाह विनियमन संभव होता है। |
शुष्क मौसम के दौरान मौसमी प्रवाह सिंचाई और पेयजल की उपयोगिता को सीमित कर देता है। |
उदाहरण: भागीरथी पर टिहरी बाँध; सिंचाई और नौपरिवहन के लिये गंगा पर फरक्का बैराज। |
उदाहरण: महानदी पर बने हीराकुंड बाँध को ग्रीष्मकाल के दौरान प्रायः जल-पुनर्भरण संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। |