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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न 21वीं सदी में विदेश नीति के एक महत्त्वपूर्ण साधन के रूप में आर्थिक राजकौशल किस प्रकार विकसित हुई है? भारत के सामरिक हितों के परिप्रेक्ष्य में इसका विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)

    07 Jan, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • आर्थिक राजकौशल को परिभाषित करते हुए उत्तर दीजिये।
    • 21वीं सदी में आर्थिक राजकौशल का विकास बताइये।
    • भारत की आर्थिक राजकौशल के उपयोग पर प्रकाश डालिये।
    • भारत की आर्थिक स्थिति के लिये चुनौतियाँ और अवसर बताइये।
    • उचित निष्कर्ष निकालें।

    परिचय:

    आर्थिक राजकौशल से तात्पर्य सामरिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये विदेश नीति के साधन के रूप में आर्थिक साधनों– जैसे व्यापार, निवेश, प्रतिबंध और विकास सहायता के उपयोग से है।

    21वीं सदी में, वैश्वीकरण और आर्थिक अंतरनिर्भरता के कारण भू-राजनीति में परिवर्तन हो रहा है तथा राष्ट्र प्रभाव प्रदर्शित करने, संसाधनों को सुरक्षित करने और रणनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये तीव्रता से आर्थिक राजकौशल की ओर रुख कर रहे हैं।

    मुख्य भाग:

    21वीं सदी में आर्थिक राजकौशल का विकास:

    • कठोर शक्ति से आर्थिक साधनों की ओर बदलाव: राष्ट्र प्रभाव स्थापित करने के लिये मृदु, कम टकराव वाले राजनयिक साधन के रूप में आर्थिक साधनों का उपयोग तीव्रता से कर रहे हैं।
    • उदाहरण: चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) का उद्देश्य बुनियादी अवसंरचना में निवेश के माध्यम से अपनी भू-राजनीतिक अभिगम का विस्तार करना है।
    • वैश्विक मूल्य शृंखलाओं की भूमिका: वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में अर्थव्यवस्थाओं के एकीकरण ने आर्थिक निर्भरता को लाभ उठाने का एक शक्तिशाली साधन बना दिया है।
    • उदाहरण: अमेरिका-चीन व्यापार बैर इस बात पर प्रकाश डालता है कि आर्थिक अंतर-निर्भरता को किस प्रकार हथियार बनाया जा सकता है।
    • प्रतिस्पर्धा में भू-अर्थशास्त्र: भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में आर्थिक राजकौशल केंद्रीय हो गई है, जिसमें प्रतिबंध, प्रौद्योगिकी प्रतिबंध और निवेश शक्ति समीकरणों को आयाम देते हैं।
    • उदाहरण: वर्ष 2022 में यूक्रेन संघर्ष के बाद रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों ने उसकी अर्थव्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय स्थिति को बहुत प्रभावित किया।
    • रणनीतिक गठबंधन और व्यापार समझौते: आर्थिक साझेदारी और क्षेत्रीय व्यापार समझौते रणनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण साधन बन गए हैं।
    • उदाहरण: क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) के गठन ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आर्थिक शक्ति को प्रबल किया है।

    भारत द्वारा आर्थिक राजकौशल का प्रयोग:

    • व्यापार कूटनीति: भारत ने रणनीतिक साझेदारों के साथ संबंधों को सुदृढ़ करने के लिये व्यापार समझौतों और तरज़ीही बाज़ार अभिगम का लाभ उठाया है।
      • उदाहरण: भारत-यूएई व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता (CEPA) पश्चिम एशिया में भारत की उपस्थिति को बढ़ाता है।
    • विकास सहायता एवं सहायता: भारत विकासशील देशों, विशेषकर दक्षिण एशिया और अफ्रीका में सद्भावना तथा प्रभाव बनाने के लिये विकास साझेदारी का उपयोग करता है।
      • उदाहरण: अफ्रीकी देशों को भारत की ऋण सहायता और अफगानिस्तान में संसद भवन जैसी परियोजनाएँ आर्थिक कूटनीति का प्रतीक हैं।
    • ऊर्जा कूटनीति: ऊर्जा सुरक्षा भारत की आर्थिक नीति की आधारशिला है, जिसमें संसाधनों को सुरक्षित करने और ऊर्जा साझेदारी में विविधता लाने के प्रयास शामिल हैं।
      • उदाहरण: भारत द्वारा शुरू किया गया अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन इसे नवीकरणीय ऊर्जा कूटनीति में वैश्विक अग्रणी के रूप में स्थापित करता है।
    • बुनियादी अवसंरचना और कनेक्टिविटी परियोजनाएँ: भारत IMEC कॉरिडोर जैसी पहलों के माध्यम से चीन की BRI का मुकाबला कर रहा है।
      • उदाहरण: चाबहार बंदरगाह पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए मध्य एशिया तक भारत की कनेक्टिविटी को बढ़ाता है।
    • प्रौद्योगिकी और रणनीतिक निवेश: भारत प्रमुख देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करने और उभरते क्षेत्रों में अपने हितों को बढ़ावा देने के लिये प्रौद्योगिकी साझेदारी का उपयोग करता है।
      • उदाहरण: समुत्थानशील सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला बनाने के लिये क्वाड की पहल में भारत की भागीदारी आर्थिक साधनों के रणनीतिक उपयोग को दर्शाती है।
    • परक्रामण के विरुद्ध आर्थिक रक्षा: भारत ने इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मास्यूटिकल्स जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में चीन जैसे विशिष्ट देशों पर निर्भरता कम करने पर ध्यान केंद्रित किया है।
      • उदाहरण: "आत्मनिर्भर भारत" पहल और उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं का उद्देश्य घरेलू क्षमताओं को बढ़ाना है।

    भारत की आर्थिक नीति के लिये चुनौतियाँ और अवसर:

    • चुनौतियाँ:
      • भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: भारत को चीन की आर्थिक विस्तारवाद से चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, विशेष रूप से बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) जैसी पहलों के माध्यम से, जो भारत के सामरिक हितों के साथ सीधे प्रतिस्पर्द्धा करती हैं।
        • उदाहरण: दक्षिण एशिया में, विशेषकर श्रीलंका और नेपाल में, भारी निवेश के माध्यम से चीन का प्रभाव।
      • व्यापार असंतुलन: चीन, ASEAN जैसे प्रमुख साझेदारों के साथ भारत का व्यापार घाटा इसकी आर्थिक क्षमता को कमज़ोर करता है।
      • आर्थिक निर्भरता: तेल और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के लिये आयात पर अत्यधिक निर्भरता, आर्थिक दबाव का मुकाबला करने की भारत की क्षमता को सीमित करती है।
      • क्षमता संबंधी बाधाएँ: बड़े पैमाने पर बुनियादी अवसंरचना या सहायता परियोजनाओं के लिये सीमित वित्तीय संसाधन आर्थिक रूप से शक्तिशाली देशों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने की भारत की क्षमता में बाधा डालते हैं।
      • वैश्विक संरक्षणवाद: वैश्विक व्यापार में बढ़ती संरक्षणवादी प्रवृत्तियाँ भारत के निर्यात-संचालित विकास और वैश्विक व्यापार एकीकरण के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं।
    • अवसर:
      • सामरिक क्षेत्रीय भूमिका: भारत की भौगोलिक स्थिति उसे हिंद-प्रशांत संपर्क और व्यापार मार्गों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने में सक्षम बनाती है।
        • उदाहरण: अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) जैसी पहल रणनीतिक दृढ़ता को बढ़ाती है।
      • प्रौद्योगिकी और सेवाओं में मज़बूती: भारत के IT और फार्मास्युटिकल क्षेत्र आर्थिक वार्ताओं एवं साझेदारियों में महत्त्वपूर्ण लाभ प्रदान करते हैं।
        • उदाहरण: कोविड-19 विश्वमारी के दौरान "विश्व की फार्मेसी" के रूप में भारत की वैश्विक भूमिका।
      • वैश्विक दक्षिण में प्रभाव का विस्तार: अफ्रीका, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में भारत की विकास सहायता एवं बुनियादी अवसंरचना परियोजनाएँ इसके प्रभाव को मज़बूत करने में मदद करती हैं।
        • उदाहरण: G20 पहलों में भारत की सक्रिय भूमिका और ग्लोबल साउथ मुद्दों का समर्थन।

    निष्कर्ष:

    21वीं सदी में भारत के सामरिक हितों को आगे बढ़ाने के लिये आर्थिक नीति एक शक्तिशाली साधन के रूप में उभरी है। व्यापार, निवेश, सहायता और कनेक्टिविटी को अपनी विदेश नीति के लक्ष्यों के साथ एकीकृत करके, भारत स्वयं को एक प्रमुख भू-आर्थिक भागिदार के रूप में स्थापित कर रहा है। हालाँकि, अपनी क्षमता को अधिकतम करने के लिये, भारत को घरेलू बाधाओं को दूर करने, संस्थागत क्षमताओं को प्रबल करने और समुत्थानशील साझेदारी के निर्माण करने की आवश्यकता है।

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