प्रश्न: प्रायद्वीपीय भारत की प्राकृतिक संरचना उसके जल निकासी पैटर्न, जलवायु और आर्थिक गतिविधियों को कैसे प्रभावित करती है? विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- प्रायद्वीपीय भारत की प्राकृतिक संरचना के संक्षिप्त विवरण के साथ उत्तर दीजिये।
- जल निकासी पैटर्न पर भौतिक भूगोल का प्रभाव बताइये।
- जलवायु पर भौतिक भूगोल के प्रभाव की विवेचना कीजिये।
- आर्थिक गतिविधियों पर प्रभाव को बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
प्रायद्वीपीय भारत की भौतिक संरचना, जिसमें पश्चिमी और पूर्वी घाट, दक्कन का पठार एवं तटीय मैदान जैसी विशिष्ट भू-वैज्ञानिक विशेषताएँ शामिल हैं, इसकी जल निकासी प्रणालियों, जलवायु एवं आर्थिक गतिविधियों पर गहरा प्रभाव डालती हैं।
मुख्य भाग:
जल निकासी पैटर्न पर प्राकृतिक भूगोल का प्रभाव:
- नदियों की प्रकृति: गोदावरी, कृष्णा और कावेरी जैसी प्रायद्वीपीय नदियाँ अधिकांशतः मौसमी हैं, जो मानसून की बारिश पर निर्भर करती हैं, क्योंकि कठोर चट्टानी भू-भाग भूजल पुनर्भरण को सीमित करता है।
- उदाहरण: महानदी और गोदावरी में गैर-मानसून महीनों के दौरान अल्प जल-प्रवाह होता है।
- प्रवाह दिशा: नदियाँ दक्कन पठार के पश्चिम-पूर्वी ढलान से प्रभावित होती हैं, जिसके कारण पूर्व की ओर बंगाल की खाड़ी में जल निकासी होती है।
- उदाहरण: कृष्णा और गोदावरी पूर्व की ओर बहती हैं, जबकि नर्मदा और तापी जैसे अपवाद संरचनात्मक दोषों के कारण पश्चिम की ओर बहती हैं।
जलवायु पर भौतिक भूगोल का प्रभाव:
प्रायद्वीपीय भारत की भौतिक संरचना, विशेषकर इसके पठार, पर्वतीय क्षेत्र और तटीय मैदान, क्षेत्रीय जलवायु परिस्थितियों को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं।
- मानसून गतिशीलता: पश्चिमी घाट एक पर्वतीय अवरोधक के रूप में कार्य करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पवनाभिमुख हिस्से में भारी वर्षा होती है (जैसे- केरल, कोंकण) और प्रतिपवन हिस्से में वृष्टि छाया होती है (जैसे- कर्नाटक, तेलंगाना)।
- तापमान पैटर्न: अपने उत्तुंग भू-भाग के कारण विशाल दक्कन का पठार, उच्च दैनिक तापमान विविधताओं के साथ महाद्वीपीय जलवायु परिस्थितियों का कारक है।
- तटीय मैदानों में समुद्री जलवायु और मध्यम तापमान का अनुभव होता है।
- चक्रवाती गतिविधि: पूर्वी तटीय मैदान बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न होने वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के प्रति संवेदनशील हैं, जो आंध्र प्रदेश और ओडिशा जैसे क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं (जैसे- चक्रवात फैनी)।
आर्थिक गतिविधियों पर प्रभाव:
प्रायद्वीपीय भारत की विविध प्राकृतिक संरचना कृषि से लेकर खनन एवं उद्योग तक विविध प्रकार की आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देती है।
- कृषि
- नदी डेल्टा (जैसे: कृष्णा-गोदावरी) गहन कृषि, विशेषकर चावल की खेती को बढ़ावा देते हैं।
- सीमित सिंचाई के कारण दक्कन के पठार कदन्न, दलहन और तिलहन जैसी फसलों की उपज हो पाती है।
- खनिज संसाधन और उद्योग
- कोयला, लौह अयस्क और मैंगनीज़ से समृद्ध छोटानागपुर पठार झारखंड व ओडिशा में इस्पात उत्पादन जैसे उद्योगों को समर्थन देता है।
- पश्चिमी घाट एल्युमिनियम उद्योगों के लिये बॉक्साइट और लेटराइट प्रदान करते हैं।
- पर्यटन
- कर्नाटक में हम्पी और महाराष्ट्र में महाबलेश्वर जैसे प्राकृतिक दृश्य पर्यटकों को आकर्षित करते हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है।
- जलविद्युत क्षमता
- कृष्णा, गोदावरी और कावेरी जैसी नदियों का उपयोग जलविद्युत परियोजनाओं के लिये किया जाता है। (कर्नाटक में शरावती जलविद्युत परियोजना)।
- बंदरगाह और मात्स्यिकी: पश्चिमी व पूर्वी तटीय मैदान पत्तन-पोत अर्थव्यवस्थाओं (जैसे- मुंबई, विशाखापत्तनम) और सागरीय मत्स्यन उद्योगों का समर्थन करते हैं।
निष्कर्ष:
प्रायद्वीपीय भारत की भौगोलिक संरचना इसकी जल निकासी व्यवस्था, जलवायु परिस्थितियों और आर्थिक अवसरों को जटिल रूप से आयाम देती है, जिससे क्षेत्रीय विविधता एवं क्षमता को बढ़ावा मिलता है। असमान वर्षा, जल की कमी तथा संसाधनों के संधारणीय उपयोग जैसी चुनौतियों का समाधान करके इस अद्वितीय भौगोलिक क्षेत्र की आर्थिक एवं पर्यावरणीय संभावनाओं को और बढ़ाया जा सकता है।