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प्रश्न :
युवा आईएएस अधिकारी आशुतोष बाढ़ प्रभावित ज़िले में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के पद पर कार्यरत हैं। हाल ही में आई बाढ़ के दौरान उनकी टीम ने लोगों को निकालने और राहत पहुँचाने के लिये अथक प्रयास किया। हालाँकि, एक पत्रकार ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें आरोप लगाया गया कि राहत शिविरों का प्रबंधन अपर्याप्त है, जिसमें अपर्याप्त स्वच्छता और चिकित्सा सुविधाएँ शामिल थीं। इस लेख ने सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियाँ बटोरीं, जिसके कारण आशुतोष के प्रशासन की सार्वजनिक आलोचना हुई।
03 Jan, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़
आशुतोष मानते हैं कि कुछ आरोप अतिशयोक्तिपूर्ण हैं, लेकिन उनका यह भी मानना है कि धन की कमी के कारण बचाव प्रयासों में वास्तविक कमियाँ हैं। उनके वरिष्ठ ने इस मुद्दे पर एक रिपोर्ट मांगी है, जबकि राज्य सरकार ने उन्हें जनता के असंतोष को और अधिक बढ़ने से रोकने के लिये कथानक को नियंत्रित करने पर ध्यान देने को कहा है। इस बीच, उन्हें चल रहे राहत प्रयासों का समन्वय जारी रखने की भी आवश्यकता है।
आशुतोष अपनी प्रतिष्ठा को बचाने और राहत कार्यों में वास्तविक चुनौतियों का सामना करने के बीच उलझे हुए हैं। इस दुविधा में वह जवाबदेही, पारदर्शिता और प्रभावी प्रशासन के बीच संतुलन किस प्रकार बना पाएंगे।
(क) इस स्थिति में कौन-कौन से हितधारक शामिल हैं?
(ख) इस मामले में शामिल नैतिक मुद्दों का अभिनिर्धारण कीजिये।
(ग) आशुतोष तत्काल संकट और स्थिति से उजागर प्रणालीगत मुद्दों, दोनों को हल करने के लिये क्या कदम उठा सकते हैं?उत्तर :
परिचय:
यह मामला बाढ़ प्रभावित ज़िले में राहत कार्यों का प्रबंधन करने वाले एक युवा ज़िला मजिस्ट्रेट आशुतोष के इर्द-गिर्द घूमता है। अपनी टीम के प्रयासों के बावजूद, राहत शिविरों में खराब स्थितियों को उजागर करने वाली एक पत्रकार की रिपोर्ट ने सार्वजनिक आलोचना को जन्म दिया है, जिससे संसाधनों की कमी के कारण होने वाली कमियों का पता चलता है। आशुतोष को वास्तविक परिचालन चुनौतियों का समाधान करने, जनता की धारणा को प्रबंधित करने तथा उत्तरदायित्व, पारदर्शिता एवं प्रभावी प्रशासन के अपने नैतिक कर्त्तव्यों को पूरा करने के बीच दुविधा का सामना करना पड़ता है।
मुख्य भाग:
(क) इस स्थिति में शामिल हितधारक:हितधारक
भूमिका/रुचि
आशुतोष (ज़िला मजिस्ट्रेट)
संसाधनों की कमी और सार्वजनिक आलोचना के बीच पारदर्शिता, जवाबदेही एवं प्रभावी राहत कार्यों में संतुलन बनाए रखना।
बाढ़ प्रभावित लोग
उचित स्वच्छता, चिकित्सा देखभाल और पुनर्वास सहित समय पर तथा पर्याप्त राहत की मांग करना।
ज़िला प्रशासन टीम
राहत प्रयासों में सहायता करना, संसाधनों का आवंटन सुनिश्चित करना तथा परिचालन दक्षता बनाए रखना।
राज्य सरकार
उचित प्रशासन सुनिश्चित करना, सार्वजनिक धारणा का प्रबंधन करना तथा ज़िले को अतिरिक्त सहायता प्रदान करना।
पत्रकार
राहत प्रबंधन में समस्याओं पर प्रकाश डालना तथा प्रशासन को जवाबदेह बनाना।
मीडिया और सोशल मीडिया उपयोगकर्त्ता
स्थिति को बढ़ाना, जनमत को आयाम देना तथा संभावित रूप से सरकारी कार्रवाई को प्रभावित करना।
गैर-सरकारी संगठन और नागरिक समाज संगठन
राहत प्रयासों में सहायता करना तथा प्रशासन की प्रभावशीलता के लिये निगरानीकर्त्ता के रूप में कार्य करना।
स्वास्थ्य रक्षक सुविधाएँ प्रदान करने वाले
राहत शिविरों में चिकित्सा आवश्यकताओं को पूरा करना तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करना।
सार्वजनिक आलोचक
बेहतर प्रदर्शन और पारदर्शिता के लिये प्रशासन पर दबाव डालना।
आशुतोष के वरिष्ठ अधिकारी
जिसने स्थिति का आकलन करने तथा आगामी कार्रवाई के लिये मार्गदर्शन हेतु विस्तृत रिपोर्ट मांगा है।
(ख) इस मामले में शामिल नैतिक मुद्दों का अभिनिर्धारण:
- जवाबदेही बनाम सार्वजनिक धारणा: राहत कार्यों में कमियों को स्वीकार करने की आवश्यकता और सार्वजनिक आलोचना को प्रबंधित करने तथा प्रशासन की प्रतिष्ठा की रक्षा करने के दबाव के बीच संतुलन बनाना।
- पारदर्शिता बनाम क्षति नियंत्रण: यह निर्णय लेना कि राहत उपायों में कमियों को खुले तौर पर स्वीकार किया जाए या विश्वास और जनता का मनोबल बनाए रखने के लिये स्थिति को नियंत्रित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
- संसाधन की कमी बनाम सार्वजनिक अपेक्षाएँ: सीमित संसाधनों के बावजूद प्रभावित नागरिकों की उच्च अपेक्षाओं का प्रबंधन करते हुए पर्याप्त राहत प्रदान करने का प्रयास करना।
- तत्काल कार्रवाई बनाम दीर्घकालिक योजना: तत्काल संकट से निपटने के लिये तत्काल राहत उपायों को प्राथमिकता देना बनाम भविष्य में बेहतर आपदा तैयारी के लिये प्रणालीगत मुद्दों को हल करने के लिये कदम उठाना।
- व्यक्तिगत ईमानदारी बनाम संगठनात्मक दबाव: प्रतिष्ठा प्रबंधन को प्राथमिकता देने के लिये वरिष्ठों के निर्देशों का पालन करते हुए ईमानदारी और सार्वजनिक सेवा के व्यक्तिगत मूल्यों को कायम रखना।
- राहत प्रयास बनाम मीडिया आलोचना: मीडिया के आरोपों और सार्वजनिक जाँच से विचलित होने के बावजूद चल रहे राहत कार्यों एवं स्थितियों में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना।
- व्यक्तिगत दोष बनाम प्रणालीगत जवाबदेही: आपदा प्रबंधन में खामियों के लिये व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी स्वीकार करना बनाम व्यापक प्रणालीगत मुद्दों को उजागर करना।
(ग) आशुतोष तात्कालिक संकट और स्थिति से उजागर प्रणालीगत मुद्दों, दोनों को हल करने के लिये क्या कदम उठा सकते हैं?
तत्काल संकट से निपटने के लिये कदम:
- राहत कार्य बढ़ाना:
- राहत शिविरों में स्वच्छता और चिकित्सा देखभाल जैसी विशिष्ट कमियों को दूर करने के लिये अतिरिक्त कर्मचारियों एवं स्वयंसेवकों की तैनाती की जा सकती है।
- संसाधन अंतराल को प्रभावी ढंग से कम करने के लिये स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों, नागरिक समाज समूहों और चिकित्सा टीमों के साथ सहयोग किया जाना चाहिये।
- त्वरित एवं कुशल स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिये मोबाइल चिकित्सा इकाइयाँ स्थापित की जानी चाहिये।
- संचार माध्यमों को मज़बूत करना:
- राहत उपायों के संदर्भ में जनता के साथ पारदर्शी और वास्तविक समय पर संवाद के लिये एक समर्पित टीम नियुक्त की जानी चाहिये।
- सटीक जानकारी प्रसारित करने, गलत सूचनाओं का मुकाबला करने और अद्यतन जानकारी प्रदान करने के लिये स्थानीय रेडियो एवं सोशल मीडिया का उपयोग किया जाना चाहिये।
- शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना:
- प्रभावित आबादी से शिकायतें और सुझाव प्राप्त करने के लिये एक हेल्पडेस्क या हेल्पलाइन स्थापित की जानी चाहिये।
- जनता का विश्वास बहाल करने के लिये शिकायतों का शीघ्र समाधान किया जाना चाहिये।
- संसाधनों का रणनीतिक आवंटन करना:
- सबसे तत्काल आवश्यकताओं (जैसे- गंभीर रूप से प्रभावित क्षेत्र या महिलाएँ, बच्चे और बुजुर्ग जैसे कमज़ोर समूह) के आधार पर राहत कार्यों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- यदि आवश्यक हो तो अतिरिक्त संसाधनों का अनुरोध करने के लिये राज्य स्तरीय आपदा प्रतिक्रिया टीमों के साथ समन्वय किया जाना चाहिये।
- मीडिया को शामिल करना:
- सामने आई चुनौतियों को स्वीकार करने, उठाए जा रहे कदमों की रूपरेखा बताने तथा सुधार के लिये प्रशासन के प्रयासों पर ज़ोर देने के लिये एक प्रेस ब्रीफिंग आयोजित की जानी चाहिये।
- पारदर्शिता के माध्यम से विश्वास को पुनः स्थापित करने के लिये पत्रकारों को उन्नत शिविरों का दौरा करने के लिये आमंत्रित किया जाना चाहिये।
प्रणालीगत मुद्दों के समाधान हेतु कदम:
- संकट के बाद ऑडिट आयोजित करना:
- वर्तमान आपदा प्रबंधन प्रयासों में संसाधनों की कमी, संभार-तंत्र में विलंब और समन्वय विफलताओं सहित कमियों का मूल्यांकन करने के लिये एक कार्यबल का गठन किया जाना चाहिये।
- राज्य सरकार के लिये एक व्यापक रिपोर्ट तैयार करने हेतु निष्कर्षों का दस्तावेज़ीकरण करना।
- आपदा-रोधी बुनियादी अवसंरचना का निर्माण:
- बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में उच्च आश्रय स्थल, बेहतर जल निकासी व्यवस्था और समुचित स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं जैसे दीर्घकालिक समाधानों में निवेश का प्रस्ताव किया जाना चाहिये।
- समुदाय-आधारित आपदा तैयारी कार्यक्रमों का संचालन किया जाना चाहिये।
- प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देना:
- अधिकारियों और अग्रिम पंक्ति कार्यकर्त्ताओं के लिये नियमित आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण का आयोजन किया जाना चाहिये।
- सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि राहत शिविर कर्मियों को स्वच्छता, स्वास्थ्य प्रबंधन और रसद समन्वय में प्रशिक्षित किया गया है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी को दृढ़ बनाना:
- भविष्य के संकटों के लिये संसाधनों और विशेषज्ञता का एक विश्वसनीय नेटवर्क बनाने के लिये स्थानीय व्यवसायों, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं एवं गैर-सरकारी संगठनों के साथ साझेदारी विकसित की जानी चाहिये।
- आपातकालीन आपूर्ति शृंखलाओं के लिये पूर्व-व्यवस्थित समझौते स्थापित किया जाना चाहिये।
- निगरानी और पूर्व चेतावनी प्रणाली में सुधार:
- समय पर निकासी और बेहतर तैयारी सुनिश्चित करने के लिये बाढ़ पूर्वानुमान एवं पूर्व चेतावनी प्रणालियों को उन्नत करने की सिफारिश की जानी चाहिये।
- भेद्यता आकलन के लिये भू-स्थानिक मानचित्रण जैसी प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिये।
- नीतिगत सुधारों को सुनिश्चित करना:
- आपदा प्रबंधन नीतियों में संशोधन की सिफारिश किया जाना चाहिये ताकि उन्हें अधिक समावेशी बनाया जा सके, विशेष रूप से कमज़ोर आबादी की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए।
- आपदा-प्रवण ज़िलों के लिये धन आवंटन बढ़ाने पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।
- सामुदायिक सहभागिता और जागरूकता:
- आपदा मोचन के लिये तैयारी और प्रतिक्रिया तंत्र के बारे में नागरिकों को शिक्षित करने के लिये जागरूकता अभियान शुरू की जानी चाहिये।
- स्थानीय आपदा कार्रवाई योजना विकसित करने में सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
आशुतोष को संकट से उजागर हुई व्यवस्थागत कमियों को दूर करते हुए जनता का भरोसा फिर से बनाने के लिये जवाबदेही और पारदर्शिता के साथ तत्काल राहत प्रयासों को संतुलित करना चाहिये। प्रभावी संचार, रणनीतिक संसाधन आवंटन और हितधारकों के साथ सहयोग को प्राथमिकता देकर, वह मौजूदा चुनौतियों का प्रबंधन कर सकते हैं। साथ ही, आपदा प्रबंधन में दीर्घकालिक सुधारों की शुरुआत करने से ज़िले की समुत्थानशक्ति सुदृढ़ होगी जिससे भविष्य में बेहतर तैयारी और आपदा मोचन संभव हो सकेगा।
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