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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न: भारत द्वारा वर्ष 2030 तक भूमि क्षरण तटस्थता प्राप्त करने के लिये निर्धारित महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों की दिशा में प्रयासों की समीक्षा कीजिये। इन लक्ष्यों को हासिल करने में आने वाली प्रमुख चुनौतियों और संभावित अवसरों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    01 Jan, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भूमि क्षरण तटस्थता और भारत के लक्ष्यों को परिभाषित करते हुए उत्तर दीजिये।
    • LDN लक्ष्य प्राप्त करने में आने वाली चुनौतियों पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
    • LDN लक्ष्य प्राप्त करने में अवसरों की विवेचना कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भूमि क्षरण तटस्थता से तात्पर्य ऐसी स्थिति से है, जहाँ भूमि संसाधनों की मात्रा और गुणवत्ता स्थिर रहती है या संधारणीय प्रथाओं के माध्यम से बढ़ती है। भारत, जहाँ कुल भौगोलिक क्षेत्र का 29.32% हिस्सा भूमि क्षरण से ग्रस्त है, भूमि क्षरण की समस्या से निपटने और इसके पुनर्भरण के लिये हस्तक्षेप को प्राथमिकता दे रहा है।

    • मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCCD) के हस्ताक्षरकर्त्ता के रूप में भारत ने वर्ष 2030 तक भूमि क्षरण तटस्थता प्राप्ति के लक्ष्य की प्रतिबद्धता जताई है।

    मुख्य भाग:

    LDN लक्ष्य प्राप्त करने में चुनौतियाँ:

    • बढ़ता भूमि क्षरण: भारत को राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में गंभीर मरुस्थलीकरण एवं भूमि क्षरण का सामना करना पड़ रहा है।
      • भारत में लगभग 68% फसल क्षेत्र सूखे की चपेट में है, जिससे मृदा की उर्वरता और कृषि उत्पादन पर असर पड़ता है।
      • रेत के अतिक्रमण के कारण थार रेगिस्तान का विस्तार कृषि भूमि और ग्रामीण आजीविका को प्रभावित करता है।
    • असंवहनीय कृषि पद्धतियाँ: उर्वरकों, कीटनाशकों और सिंचाई के अत्यधिक उपयोग से मृदा की उर्वरता कम हो गई है तथा लवणता बढ़ गई है।
      • हरियाणा में भूजल की स्थिति गंभीर स्तर पर पहुँच गई है, जहाँ 143 में से 88 ब्लॉक को अतिदोहित श्रेणी में रखा गया है जहाँ अत्यधिक सिंचाई के कारण लवणता बढ़ रही है।
    • तीव्र शहरीकरण और औद्योगीकरण: बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं, रियल एस्टेट और खनन के लिये अतिक्रमण के कारण उपजाऊ भूमि का नुकसान हुआ है।
      • अनुमान है कि शहरीकरण के कारण वर्ष 2000 से 2030 के दौरान प्रति वर्ष 1.6 से 3.3 मिलियन हेक्टेयर प्रमुख कृषि भूमि का नुकसान होगा।
    • जलवायु परिवर्तन: अनियमित वर्षा पैटर्न, बढ़ता तापमान एवं निरंतर अनावृष्टि से भूमि क्षरण की स्थिति और भी खराब हो रही है।
      • बुंदेलखंड क्षेत्र में भयंकर सूखा पड़ा है, जिसके कारण मृदा अपरदन, मरुस्थलीकरण और संकटपूर्ण पलायन हुआ है।
    • जागरूकता और भागीदारी का अभाव: किसानों और ग्रामीण समुदायों में प्रायः संधारणीय भूमि प्रथाओं के बारे में जागरूकता की कमी होती है या उन्हें अपनाने से तत्काल आर्थिक नुकसान का डर रहता है।
      • पारंपरिक फसल पद्धतियों से कृषि वानिकी या जैविक कृषि की ओर संक्रमण में अनिच्छा प्रगति को सीमित करती है।

    LDN लक्ष्य प्राप्त करने के अवसर

    • बड़े पैमाने पर वनरोपण और पुनर्वनरोपण: ग्रीन इंडिया मिशन और कैम्पा फंड वन क्षेत्र को बढ़ाने में सहायता करते हैं, जिसका मुख्य फोकस बंजर भूमि पर है।
      • उदाहरण: अरावली ग्रीन वॉल परियोजना का उद्देश्य बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान के माध्यम से मरुस्थलीकरण को कम करना है।
    • टिकाऊ कृषि पद्धतियाँ: परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) जैसी योजनाएँ रासायनिक कृषि आदान को कम करने को प्रोत्साहित करती हैं।
      • आंध्र प्रदेश के शून्य बजट प्राकृतिक कृषि मॉडल ने भूमि क्षरण को कम किया और मृदा स्वास्थ्य में सुधार किया, जो एक अनुकरणीय मॉडल है।
    • कृषि वानिकी: कृष्ट भूमि पर वृक्ष लगाने से अपरदन रुकता है, जैव विविधता बढ़ती है तथा मृदा संरचना की पुनः पूर्ति होती है।
      • कर्नाटक के बाँस मिशन ने बंजर कृषि भूमि के पुनः भरण करने के लिये कृषि वानिकी को सफलतापूर्वक एकीकृत किया है।
    • एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम (IWMP) जैसे एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम वर्षा जल संचयन, चेक डैम और मृदा पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
      • महाराष्ट्र के जलयुक्त शिवार अभियान ने मृदा नमी प्रतिधारण और जल उपलब्धता को बढ़ाकर भूमि क्षरण को कम किया।
    • सटीक हस्तक्षेप के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना और स्थानीय समुदायों को शामिल करना: उन्नत प्रौद्योगिकियाँ क्षरित भूमि की पहचान करती हैं, मरुस्थलीकरण की निगरानी करती हैं तथा पुनर्स्थापन प्रभावों का आकलन करती हैं।
      • मोबाइल ऐप के माध्यम से स्वयं सहायता समूहों, किसान समूहों और ग्राम स्तरीय समितियों को शामिल करके सहभागी भूमि पुनरुद्धार सुनिश्चित किया जा सकता है।

    निष्कर्ष:

    वर्ष 2030 तक भूमि क्षरण तटस्थता प्राप्त करना भारत के लिये एक पारिस्थितिक आवश्यकता और सामाजिक-आर्थिक अनिवार्यता दोनों है। समग्र और समावेशी दृष्टिकोणों को प्राथमिकता देकर, भारत आर्थिक विकास के साथ पर्यावरणीय पुनर्स्थापन को संतुलित करते हुए एक दीर्घकालिक भविष्य सुनिश्चित कर सकता है। यह मिशन न केवल प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा करता है बल्कि ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाता है, कृषि उत्पादकता बढ़ाता है और भारत को मरुस्थलीकरण से निपटने में वैश्विक अग्रणी के रूप में स्थापित करता है।

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