प्रश्न: भारतीय अर्थव्यवस्था में अनौपचारिक क्षेत्र की दोहरी भूमिका पर चर्चा कीजिये। इसे औपचारिक क्षेत्र में बदलने की प्रक्रिया में उत्पन्न चुनौतियों और रोज़गार सृजन क्षमता बनाए रखने के उपायों का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में अनौपचारिक क्षेत्र के संदर्भ में जानकारी प्रस्तुत करते हुए उत्तर दीजिये।
- अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक बनाने में आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
- औपचारिकीकरण के दौरान रोज़गार की संभावना को संरक्षित करने के उपाय सुझाइये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
|
परिचय:
अनौपचारिक क्षेत्र भारत के कार्यबल का 90% से अधिक हिस्सा है तथा सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 50% का योगदान देता है, जो एक महत्त्वपूर्ण रोज़गार सृजनकर्त्ता एवं एक असुरक्षित क्षेत्र के रूप में दोहरी भूमिका निभाता है। इस क्षेत्र को इसके रोज़गार क्षमता को कम किये बिना औपचारिक बनाना नीति-निर्माताओं के लिये एक बड़ी चुनौती है।
मुख्य भाग:
अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक बनाने में चुनौतियाँ:
- संरचनात्मक चुनौतियाँ
- दस्तावेज़ीकरण का अभाव: कई अनौपचारिक व्यवसायों और श्रमिकों के पास उचित दस्तावेज़ीकरण का अभाव होता है, जिससे औपचारिक प्रणालियों में एकीकरण कठिन हो जाता है।
- ई-श्रम पोर्टल के अनुसार, 94% से अधिक श्रमिक की आय प्रतिमाह 10,000 रुपए से भी कम है, और कई के पास उचित पहचान या रोज़गार इतिहास के रिकॉर्ड का अभाव है, जिससे औपचारिक पंजीकरण कठिन हो जाता है।
- निम्न साक्षरता स्तर: वर्ष 2021 के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय जनसंख्या का केवल 77.7% ही साक्षर है तथा अनौपचारिक श्रमिकों, विशेषकर महिलाओं के बीच यह दर कम है।
- श्रमिकों के बीच सीमित वित्तीय और डिजिटल साक्षरता, EPFO या ई-श्रम पोर्टल जैसे औपचारिक तंत्रों की उनकी समझ में बाधा डालती है।
- उद्यमों का विखंडन: अनौपचारिक उद्यम प्रायः छोटे, परिवार द्वारा संचालित और बिखरे हुए होते हैं, जिससे विनियमन एवं औपचारिकीकरण के प्रयास कठिन हो जाते हैं।
- आर्थिक बाधाएँ
- अनुपालन की लागत: GST फ्रेमवर्क के तहत किसी व्यवसाय को पंजीकृत करने के लिये कर दाखिल करने और अनुपालन के लिये अग्रिम लागत की आवश्यकता होती है, जो निर्वाह स्तर की आय अर्जित करने वाले कई छोटे विक्रेताओं या कारीगरों के लिये वहन करने योग्य नहीं है।
- ऋण तक पहुँच संबंधी समस्याएँ: देश के 64 मिलियन MSME में से केवल 14% के पास ऋण तक पहुँच है, क्योंकि उनके पास संपार्श्विक या औपचारिक दस्तावेज़ का अभाव है।
- सामाजिक चुनौतियाँ
- लैंगिक असमानताएँ: अनौपचारिक श्रमिकों में महिलाएँ 52.81% हैं (ई-श्रम पोर्टल) लेकिन समान कार्य के लिये उन्हें पुरुषों की तुलना में 30-50% कम वेतन मिलता है।
- बच्चों की देखभाल या मातृत्व अवकाश की कमी के कारण वे और भी अधिक वंचित हो जाती हैं।
- सांस्कृतिक प्रतिरोध: ग्रामीण श्रमिक प्रायः औपचारिकीकरण को संदेह की दृष्टि से देखते हैं, उन्हें नौकरशाही बाधाओं या स्वायत्तता के नुकसान का भय रहता है।
- नीतिगत एवं प्रशासनिक मुद्दे
- सुदृढ़ आँकड़ों का अभाव: अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर व्यापक आँकड़ों का अभाव (यद्यपि ई-श्रम के माध्यम से प्रगति हुई है, लेकिन अभी भी पिछड़ा हुआ है) साक्ष्य-आधारित नीति-निर्माण में बाधा डालता है।
- अप्रभावी शिकायत निवारण: अनौपचारिक श्रमिकों के पास प्रायः विवादों (अक्तूबर 2024 में सैमसंग इंडिया के कर्मचारी हड़ताल पर थे) को सुलझाने या सामाजिक सुरक्षा लाभ प्राप्त करने के लिये तंत्र तक पहुँच नहीं होती है।
औपचारिकता निभाते हुए रोज़गार की संभावनाओं का संरक्षण:
- क्रमिक एवं प्रोत्साहन-आधारित औपचारिकीकरण: औपचारिक संरचनाओं में परिवर्तन करने वाले व्यवसायों के लिये कर प्रोत्साहन और रियायती अनुपालन लागत की पेशकश की जानी चाहिये।
- EPFO और डिजिटल भुगतान प्रणालियों जैसी औपचारिक व्यवस्थाओं में विश्वास दृढ़ करने हेतु श्रमिकों के लिये वित्तीय साक्षरता और जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिये।
- लचीले श्रम विनियमन: स्तरीय अनुपालन प्रणालियों को अपनाने की आवश्यकता है, जहाँ छोटे व्यवसायों के लिये मानदंडों में ढील दी गई है और धीरे-धीरे पूर्ण अनुपालन की ओर संक्रमण किया गया है।
- आर्थिक गतिविधि को बाधित किये बिना भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये ई-श्रम जैसे पोर्टलों पर पंजीकरण प्रक्रियाओं को सरल बनाया जाना चाहिये।
- सभी के लिये सामाजिक सुरक्षा: PM-स्वनिधि व प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन जैसी योजनाओं और सामाजिक सुरक्षा संहिता के प्रभावी कार्यान्वयन के माध्यम से अनौपचारिक श्रमिकों के लिये सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा कवरेज का विस्तार करने की आवश्यकता है।
- राज्यों और नियोक्ताओं के बीच पेंशन, बीमा तथा स्वास्थ्य देखभाल जैसे लाभों की पोर्टेबिलिटी सुनिश्चित की जानी चाहिये।
- लिंग-संवेदनशील उपाय: अनुच्छेद 39(d) के तहत समान कार्य के लिये समान वेतन लागू करने के साथ ही महिला श्रमिकों के लिये मातृत्व लाभ प्रदान करने की आवश्यकता है।
- वित्तीय स्वतंत्रता को बढ़ावा देने और कौशल विकास के अवसरों का सृजन करने के लिये महिला-केंद्रित स्वयं सहायता समूहों (SHG) को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: श्रमिकों के रोज़गार इतिहास तथा सामाजिक सुरक्षा योगदान को ट्रैक करने, पंजीकृत करने एवं प्रबंधित करने के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करने की आवश्यकता है।
- अनौपचारिक श्रमिकों को औपचारिक वित्तीय नेटवर्क में एकीकृत करने के लिये डिजिटल भुगतान प्रणालियों और मोबाइल बैंकिंग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
सतत् आर्थिक विकास के लिये अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक बनाना अपरिहार्य है। हालाँकि कम साक्षरता, लैंगिक असमानता एवं आर्थिक बाधाओं जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, डेटा-संचालित नीति-निर्माण और प्रोत्साहन-आधारित औपचारिकता इन मुद्दों को हल कर सकती है। एक संतुलित, समावेशी दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करेगा कि औपचारिकता अर्थव्यवस्था और इसके सबसे भेद्य योगदानकर्त्ताओं दोनों को सशक्त करे।