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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    एशियाई देशों में स्वाधीनता-आंदोलनों के विकास की रूपरेखा दीजिये।

    01 Dec, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा- 

    • एशिया के विभिन्न देशों यथा- अफगानिस्तान, ईरान, चीन, तुर्की और भारत में स्वाधीनता आंदोलनों के प्रयासों को बताएँ।

    प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद भारत सहित अन्य एशियाई उपनिवेशों को झटका लगा, किंतु प्रथम विश्वयुद्ध ने साम्राज्यवादी ताकतों को अवश्य कमज़ोर कर दिया। इसके साथ ही 1917 की क्रांति के बाद रूसी दृष्टिकोण में बदलाव भी उपनिवेशों के अनुकूल हुआ।

    रूसी क्रांति से पूर्व ईरान रूसी और ब्रिटिश प्रभाव क्षेत्रों में बँटा था, किंतु 1917 के बाद रूस ने अपने प्रभाव क्षेत्र का नियंत्रण छोड़ दिया। इसके बाद अंग्रेज़ों ने पूरे क्षेत्र को अपने अधीन लेने की कोशिश की, जिसके विरोध में वहाँ व्यापक विरोध हुआ। फलस्वरूप फौजों को ईरान छोड़ना पड़ा और 1925 में रज़ा खान ईरान का सम्राट बना।

    अफगानिस्तान में अंग्रेज़ों का बोलबाला था। 1919 में अफगानिस्तान के राजा की हत्या हो गई और उसका बेटा अमानुल्लाह शासक बना, जिसने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। लेकिन भारत की ब्रिटिश सरकार ने अफगानिस्तान के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया, परंतु कुछ समय बाद ही उसे अफगानिस्तान की स्वतंत्रता को मान्यता देनी पड़ी।

    तुर्की में मित्र राष्ट्रों की संधि पर हस्ताक्षर हेतु मुस्तफा कमल पाशा के नेतृत्व में एक राष्ट्रीय सरकार की स्थापना हुई, जिससे कि तुर्की के कुछ हिस्से को इटली और यूनान को सौंपा जा सके। यह सरकार एक संधि के द्वारा सोवियत संघ से राजनीतिक समर्थन और हथियार प्राप्त करने में सफल रही। यूनान ने संधि के बावज़ूद तुर्की पर हमला कर दिया। इस हमले को तुर्की की जनता ने नाकाम कर दिया। फलतः मित्रराष्ट्र पूर्व की संधि को रद्द करने पर मजबूर हुए और मित्रराष्ट्रों ने अपने सैनिकों को वापस बुला लिया जिससे तुर्की की पूर्ण स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त हुआ।

    इंडोनेशिया में डच शासन को उखाड़ फेंकने के लिये 1927 में नेशनल पार्टी का गठन किया गया और कोरिया में भी जापान के विरुद्ध संघर्ष मज़बूत हुए।

    चीन में स्वाधीनता आंदोलन के मुख्य स्तंभ डॉ. सन यात-सेन थे। 1911 की क्रांति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के साथ-साथ उन्होंने 1917 में कैंटन में एक सरकार की स्थापना की। इनके द्वारा शक्ति पार्टी कोमिनतांग ने चीन राष्ट्रीय आंदोलन को मज़बूत बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1921 में चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना हुई। दोनों पार्टियों ने मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता दिखाई। किंतु, 1925 में सन यात-सेन की मृत्यु के बाद दोनों पार्टियों के मध्य गृह-युद्ध आरंभ हो गया।

    किंतु, जापानी आक्रमण के कारण दोनों पार्टियाँ पुनः संगठित हुई और अंततः कम्युनिस्ट पार्टी अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने में सफल रही। जापान के आत्मसमर्पण और गृह-युद्ध से निपटने के बाद 1 अक्तूबर, 1949 को ‘नए साम्यवादी सलाहकार सम्मलेन’ के निर्णयों के माध्यम से लोक गणराज्य की घोषणा कर दी गई और मार्च 1950 तक चीन के लगभग सभी भागों में साम्यवादी सरकार की स्थापन हो गई।

    भारत में स्वाधीनता आंदोलन काफी लंबे समय तक चला। विभिन्न प्रशासनिक-सामाजिक सुधारों के नाम पर अंग्रजों ने भारत में औपनिवेशिक नियंत्रण को मज़बूत किया और भारत के संसाधनों का अधिकतम दोहन किया। भारत को स्वाधीन करने के लिये सन् 1885 में गठित कॉन्ग्रेस के सहयोग से विभिन्न नेताओं ने कई आन्दोलन चालए। महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए गए आंदोलनों में असहयोग, सविनय अवज्ञा और स्वतः स्फूर्त भारत छोड़ो आंदोलन के माध्यम से अंग्रेज़ भारत छोड़ने को मजबूर हुए और 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ।

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