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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न: डी-डॉलरीकरण की अवधारणा पर चर्चा कीजिये और भारत के लिये इससे उत्पन्न अवसरों तथा चुनौतियों पर गहन विचार कीजिये। (150 शब्द)

    31 Dec, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • डी-डॉलराइज़ेशन/वि-डॉलरीकरण के संदर्भ में जानकारी देकर उत्तर दीजिये।
    • वि-डॉलरीकरण के चालकों को बताइये।
    • भारत के लिये वि-डॉलरीकरण के अवसरों पर प्रकाश डालिये।
    • भारत के लिये वि-डॉलरीकरण की चुनौतियों पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    वि-डॉलरीकरण से तात्पर्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वित्तीय लेन-देन के लिये अमेरिकी डॉलर पर वैश्विक निर्भरता को कम करने की प्रक्रिया से है।

    • अमेरिकी डॉलर वैश्विक भंडार का 59% हिस्सा है और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं खनिज तेल जैसी वस्तुओं पर इसका प्रभुत्व है, इसलिये वि-डॉलरीकरण पर विशेष रूप से भारत सहित BRICS देशों के बीच चर्चाओं में तेज़ी आई है।

    मुख्य भाग:

    वि-डॉलरीकरण के चालक:

    • भू-राजनीतिक प्रतिबंध और आर्थिक दबाव: अमेरिका ने डॉलर का उपयोग प्रतिबंध लगाने के लिये एक उपकरण के रूप में किया है (उदाहरण के लिये, रूस और ईरान पर), जिससे SWIFT जैसी वैश्विक वित्तीय प्रणालियों तक पहुँच सीमित हो गई है।
    • बहुध्रुवीयता की ओर बदलाव: चीन, रूस और भारत जैसी क्षेत्रीय शक्तियों का उदय डॉलर पर निर्भरता कम करने और अधिक संतुलित वैश्विक आर्थिक प्रणाली स्थापित करने के प्रयासों को बढ़ावा दे रहा है।
    • विदेशी मुद्रा भंडार का विविधीकरण: विश्व भर के केंद्रीय बैंक आर्थिक जोखिमों से बचाव के लिये सोने और चीनी युआन जैसी अन्य मुद्राओं के पक्ष में डॉलर की होल्डिंग कम कर रहे हैं।
    • डिजिटल और क्षेत्रीय मुद्रा नवाचार: केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्राओं (CBDC) का उदय देशों को डॉलर पर निर्भर हुए बिना अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करने का अवसर प्रदान करता है।

    भारत के लिये वि-डॉलरीकरण के अवसर:

    • व्यापार में संवर्द्धित संप्रभुता: रुपया-बिजकीकरण को बढ़ावा देने से भारत को डॉलर से उत्पन्न कमज़ोरियों, जैसे विनिमय दर में अस्थिरता और प्रतिबंधों जैसे भू-राजनीतिक जोखिमों से बचाया जा सकता है।
      • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा वर्ष 2022 में रुपया आधारित व्यापार निपटान की अनुमति देने का निर्णय जैसी पहल इस प्रयास को रेखांकित करती है।
    • रुपए को मज़बूत बनाना: डॉलर पर निर्भरता कम करने से वैश्विक व्यापार मुद्रा के रूप में रुपए की भूमिका बढ़ सकती है, जिससे इसके अंतर्राष्ट्रीयकरण में मदद मिलेगी।
      • रुपए की अधिक स्वीकार्यता से निवेशकों का विश्वास बढ़ सकता है और भारत की विदेशी मुद्रा भंडार पर निर्भरता कम हो सकती है।
    • लागत बचत और आर्थिक स्थिरता: घरेलू मुद्राओं में व्यापार करके, भारत लेन-देन लागत को कम कर सकता है और खनिज तेल जैसी वस्तुओं में डॉलर की कीमत में उतार-चढ़ाव से जुड़े जोखिमों को कम कर सकता है।
    • रणनीतिक गठबंधन: वैकल्पिक व्यापार तंत्र विकसित करने के लिये BRICS देशों और अन्य वैश्विक भागीदारों के साथ सहयोग करने से बहुध्रुवीय आर्थिक व्यवस्था को आयाम देने में भारत का वैश्विक प्रभाव बढ़ सकता है।

    वि-डॉलरीकरण में भारत के लिये चुनौतियाँ:

    • वैश्विक डॉलर प्रभुत्व: डॉलर अपनी तरलता, स्थिरता और व्यापक स्वीकृति के कारण पसंदीदा वैश्विक रिज़र्व एवं लेन-देन मुद्रा बना हुआ है।
      • डॉलर पर निर्भरता कम करने से सहयोगी देशों के अलग होने का खतरा है और डॉलर-प्रधान व्यापार पर असर पड़ सकता है, विशेष रूप से तेल एवं सोने जैसी वस्तुओं के मामले में।
    • भू-राजनीतिक दबाव: अमेरिकी प्रतिबंध और टैरिफ विकल्प तलाशने वाले देशों को निशाना बना सकते हैं, जैसा कि पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प की BRICS देशों के खिलाफ धमकियों से उजागर होता है।
      • BRICS जैसे गैर-डॉलर व्यापार ब्लॉक के साथ जुड़ने से अमेरिका और अन्य पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं के साथ भारत के रणनीतिक संबंधों को खतरा हो सकता है।
    • रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिये अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना: RBI के प्रयासों के बावजूद, रुपए में डॉलर जैसी वैश्विक स्वीकृति और विश्वास का अभाव है।
      • सीमित वित्तीय साधन और वैश्विक रुपया-मूल्यवर्गित व्यापार केंद्रों की कमी इसके अंगीकरण में बाधा उत्पन्न करती है।
    • चीनी युआन का उदय: वैश्विक व्यापार में इसकी बढ़ती भूमिका के बावजूद, युआन (चीनी मुद्रा) का उपयोग करने में भारत की अनिच्छा, चीन के साथ भू-राजनीतिक तनाव को उजागर करती है।
    • आर्थिक स्थिरता संबंधी चिंताएँ: तीव्रता से डॉलर पर निर्भरता समाप्त करने से बाज़ार अस्थिर हो सकते हैं, व्यापार बाधित हो सकता है तथा भारत के विदेशी मुद्रा भंडार एवं ऋण दायित्वों पर असर पड़ सकता है।

    भारत के लिये आगे की राह:

    • रुपया व्यापार समझौतों को बढ़ावा देना: रुपया बिजकीकरण का विस्तार करने के लिये विशेष रूप से दक्षिण एशिया, अफ्रीका और खाड़ी क्षेत्र के व्यापारिक साझेदारों के साथ द्विपक्षीय समझौते की आवश्यकता है।
    • घरेलू मुद्रा अवसंरचना को मज़बूत करना: रुपए की तरलता बढ़ाने के लिये रुपया-आधारित वित्तीय साधन और वैश्विक व्यापार केंद्र विकसित किये जाने की आवश्यकता है।
      • निर्बाध अंतर्राष्ट्रीय रुपया लेन-देन का समर्थन करने के लिये नियामक फ्रेमवर्क में सुधार किया जाना चाहिये।
    • विदेशी मुद्रा भंडार में विविधता: स्वर्ण भंडार बढ़ाये जाने और डॉलर जोखिम को कम करने के लिये मुद्राओं की व्यापक टोकरी में निवेश की आवश्यकता है।
    • बहुपक्षीय सहयोग में संलग्न होना: भारत के हितों की रक्षा करते हुए साझा मुद्रा जैसे विकल्पों को आयाम देने के लिये BRICS के भीतर कार्य करना चाहिये।
      • डॉलर-संरेखित अर्थव्यवस्थाओं के साथ रणनीतिक संबंध बनाए रखने के साथ गैर-डॉलर व्यापार ब्लॉक में भागीदारी को संतुलित किया जाना चाहिये।
    • क्रमिक परिवर्तन रणनीति: वि-डॉलरीकरण के लिये चरणबद्ध दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जिससे व्यापार और आर्थिक स्थिरता में न्यूनतम व्यवधान सुनिश्चित हो।
      • वि-डॉलरीकरण प्रयासों को पूरक बनाने के लिये केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (CBDC) जैसी डिजिटल मुद्रा पहल को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    वि-डॉलरीकरण भारत को व्यापार संप्रभुता बढ़ाने, भू-राजनीतिक जोखिमों के प्रति संवेदनशीलता कम करने और रुपए की वैश्विक स्थिति को मज़बूत करने का मार्ग प्रदान करता है। बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देकर, घरेलू मुद्रा अवसंरचना को सुदृढ़ करके तथा क्रमिक परिवर्तनों को आगे बढ़ाकर, भारत वि-डॉलरीकरण के अवसरों का लाभ उठा सकता है और साथ ही इसके जोखिमों को कम कर सकता है।

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