नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 16 जनवरी से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न: "अधि-नैतिकता की प्रकृति के संदर्भ में आध्यात्मिक विश्लेषण किस प्रकार व्यावहारिक शासन निर्णयों को प्रभावित करता है?" इस संदर्भ में, नीति-निर्माण और कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    26 Dec, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • मेटा-एथिक्स या अधि-नैतिकता को संक्षेप में बताते हुए उत्तर दीजिये। 
    • शासन पर अधि-नैतिकता प्रश्नों का प्रभाव बताइये।
    • नीति कार्यान्वयन में चुनौतियों पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
    • नीतिगत चुनौतियों से निपटने के लिये अधि-नैतिक अंतर्दृष्टि के साथ उपाय सुझाइये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय:

    अधि-नैतिकता नैतिकता की आधारभूत प्रकृति का विवेचनात्मक अध्ययन है, जिसमें यह अन्वेषण किया जाता है कि ‘सही’ या ‘गलत’ क्या है और क्या नैतिक सत्य सार्वभौमिक या व्यक्तिपरक हैं। यह दार्शनिक अध्ययन व्यावहारिक शासन को प्रभावित करता है, क्योंकि नीतिगत निर्णयों के लिये प्रायः नैतिक सिद्धांतों एवं व्यावहारिक आवश्यकताओं के बीच संतुलन की आवश्यकता होती है।

    मुख्य भाग:

    शासन पर अधि-नैतिक प्रश्नों का प्रभाव:

    • नैतिक वस्तुवाद बनाम सापेक्षवाद:
      • नैतिक वस्तुवाद: सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांतों का पक्षधर है जो विभिन्न संस्कृतियों और संदर्भों में लागू होते हैं।
        • उदाहरण: मानवाकारों की सार्वभौमिक घोषणा भौगोलिक स्थिति या संस्कृति के बावजूद सम्मान, शिक्षा और स्वतंत्रता के अधिकारों पर बल देती है।
      • नैतिक सापेक्षवाद: नैतिकता में सापेक्षवाद का मानना ​​है कि नैतिकता परिस्थिति-विशिष्ट होती है और रीति-रिवाज़ों, सांस्कृतिक मानदंडों और अन्य परिस्थितियों से प्रभावित होती है।
        • उदाहरण: भारत में समान नागरिक संहिता पर बहस सार्वभौमिक अधिकारों और सांस्कृतिक विविधता के बीच संघर्ष को उजागर करती है।
    • नैतिक संज्ञानवाद बनाम गैर-संज्ञानवाद:
      • संज्ञानात्मकवाद: संज्ञानात्मकवादियों का तर्क है कि नैतिक कथनों को अनुभवजन्य या तर्कसंगत रूप से मान्य किया जा सकता है, जो डेटा-संचालित नीतियों को प्रभावित करते हैं।
        • उदाहरण: असमानताओं को दूर करने के लिये गरीबी सूचकांक या साक्षरता दर के आधार पर नीति-निर्माण।
      • गैर-संज्ञानवाद: नैतिकता को व्यक्तिपरक, भावनाओं से प्रेरित, कल्याण-संचालित कार्यक्रमों को प्रभावित करने वाला मानते हैं।
        • उदाहरण: मनरेगा जैसी कल्याणकारी योजनाएँ प्रायः सीमांत वर्गों के प्रति सहानुभूति से प्रभावित होती हैं।

    नीति कार्यान्वयन में चुनौतियाँ:

    • नैतिक सिद्धांतों और व्यावहारिक आवश्यकताओं के बीच संघर्ष: उपयोगितावादी नैतिकता (अधिकतम संख्या के लिये अधिकतम भलाई) को कर्त्तव्यवादी नैतिकता (व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा) के साथ संतुलित करना।
      • उदाहरण: पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) नीतियों को विकास परियोजनाओं और पारिस्थितिक संरक्षण के बीच तनाव का सामना करना पड़ता है।
    • संसाधन आवंटन में नैतिक दुविधाएँ: दुर्लभ संसाधनों के कारण प्रायः प्राथमिकता निर्धारण आवश्यक हो जाता है, जिससे निष्पक्षता और समानता के संबंध में नैतिक दुविधाएँ उत्पन्न होती हैं।
      • उदाहरण: कोविड-19 टीकाकरण नीतियों के तहत प्रारंभ में कमज़ोर आबादी को प्राथमिकता दी गई, जिससे अभिगम असमानता की चिंताएँ बढ़ गईं।
    • बहुसांस्कृतिक समाजों में सापेक्षवाद: नीतियों में विविध सांस्कृतिक और नैतिक मान्यताओं को समायोजित करना आवश्यक होता है, जिसके कारण प्रायः संघर्ष उत्पन्न होते हैं।
      • उदाहरण: गोमांस जैसे आहार संबंधी प्रतिबंधों को विभिन्न सांस्कृतिक प्रथाओं और नैतिक विचारों के कारण प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है।
    • नैतिक सत्यों में अस्पष्टता: नैतिक सत्यों पर आम सहमति के अभाव के परिणामस्वरूप नीतिगत पक्षाघात या विवादास्पद कार्यान्वयन होता है।
      • उदाहरण: इच्छामृत्यु को वैध बनाने से व्यक्तिगत स्वायत्तता बनाम जीवन की पवित्रता के सामाजिक नैतिक मानदंडों पर बहस होती है।
    • सार्वजनिक धारणा और राजनीतिक जोखिम: अधि-नैतिक विचार प्रायः लोकलुभावन भावनाओं या राजनीतिक उद्देश्यों के साथ असंगत होते हैं।
      • उदाहरण: सामाजिक रूप से रूढ़िवादी क्षेत्रों में LGBTQIA+ अधिकारों पर नीतियों को समानता के नैतिक तर्कों के बावजूद प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है।

    अधि-नैतिक अंतर्दृष्टि के साथ नीतिगत चुनौतियों का समाधान:

    • सिद्धांत-आधारित दृष्टिकोण: रॉल्सियन सिद्धांत जैसे न्याय-आधारित सिद्धांत शासन में निष्पक्षता और समावेशिता सुनिश्चित कर सकते हैं।
    • हितधारक समावेशिता: नीति-निर्माण में संघर्षों को हल करने के लिये विविध सांस्कृतिक, सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोणों को शामिल किया जा सकता है।
    • नौकरशाहों के लिये नैतिक प्रशिक्षण: मिशन कर्मयोगी के माध्यम से नीति-निर्माताओं और प्रशासकों को नैतिक बारीकियों के प्रति संवेदनशील बनाने से दुविधाओं को प्रभावी ढंग से सुलझाने में मदद मिल सकती है।
    • अनुकूलनीय एवं प्रासंगिक शासन: नीतियों को बदलते संदर्भों और चुनौतियों के अनुरूप नैतिक संरचना को संशोधित किया जाना चाहिये। 
    • डेटा और प्रौद्योगिकी का उपयोग: डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि नैतिक अस्पष्टताओं का समाधान कर सकती है तथा नीति-निर्माण में तर्कसंगतता सुनिश्चित कर सकती है। 

    निष्कर्ष: 

    अधि-नैतिक प्रश्न शासन में नैतिकता को समझने के लिये आधारभूत संरचना प्रदान करते हैं। ये नीति-निर्माताओं द्वारा न्याय, समानता और कल्याण की अवधारणा को प्रभावित करते हैं, नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन को आयाम देते हैं। समावेशिता, हितधारक जुड़ाव और नैतिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देकर, सरकारें स्थायी एवं नैतिक रूप से सुदृढ़ शासन जो तत्काल आवश्यकताओं तथा दीर्घकालिक सामाजिक प्रगति दोनों के साथ संरेखित हो, को सुनिश्चित कर सकती हैं।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2