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प्रश्न :
प्रश्न1: "वन न केवल पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, बल्कि भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में भी योगदान करते हैं।" भारत वन स्थिति रिपोर्ट, 2023 के निष्कर्षों के संदर्भ में भारत में वनों के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
25 Dec, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरणउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR)- 2023 के अनुसार भारत में वन क्षेत्र पर प्रकाश डालते हुए उत्तर दीजिये।
- भारत के लिये वनों का महत्त्व बताइये। (पारिस्थितिक, आर्थिक और सांस्कृतिक)
- भारत में वन पारिस्थितिकी तंत्र से जुड़ी प्रमुख चुनौतियों पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारत में वन पारिस्थितिकी संतुलन सुनिश्चित करने और सामाजिक-आर्थिक प्रगति को गति देने में दोहरी भूमिका निभाते हैं। भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) 2023 के अनुसार, वन और वृक्ष आवरण भारत के भौगोलिक क्षेत्र का 25.17% है, जो सतत् विकास में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।
मुख्य भाग:
भारत के लिये वनों का महत्त्व
- पारिस्थितिक संतुलन
- कार्बन पृथक्करण: वन महत्त्वपूर्ण कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, भारत का वन कार्बन स्टॉक अनुमानित 7,285.5 मिलियन टन है, जो जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद करता है और भारत की पेरिस समझौते की प्रतिबद्धताओं का समर्थन करता है।
- जैवविविधता हॉटस्पॉट: वैश्विक वनस्पतियों के 7% और वैश्विक जीव-जंतुओं के 6.5% के साथ, भारत के वन विविध पारिस्थितिक तंत्रों का घर हैं।
- उदाहरण के लिये, अरुणाचल प्रदेश जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में नमदाफा फ्लाइंग स्क्विरल जैसी स्थानिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- जल विनियमन: वन जलग्रहण क्षेत्रों को बनाए रखते हैं, भूजल का पुनर्भरण करते हैं, तथा नदी के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं, जो कृषि और पेयजल सुरक्षा के लिये आवश्यक है।
- तटीय बफर के रूप में मैंग्रोव: 4,991.68 वर्ग किमी में फैले मैंग्रोव वन तटीय क्षेत्रों को चक्रवातों और क्षरण से बचाते हैं।
- सामाजिक-आर्थिक विकास
- आजीविका सृजन: जनजातीय समुदायों सहित 250 मिलियन से अधिक लोग जीविका के लिये वनों पर निर्भर हैं।
- वन धन विकास केंद्र और वन अधिकार अधिनियम जैसे कार्यक्रम उनकी आय बढ़ाते हैं तथा एकसमान लाभ सुनिश्चित करते हैं।
- आर्थिक योगदान: कागज़, काष्ठ और NTFP जैसे वन-आधारित उद्योग ग्रामीण और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
- मध्य प्रदेश में तेंदू-पत्ता संग्रहण जैसी पहल उनकी क्षमता को उजागर करती है।
- लक्षद्वीप (91.33%) और मिज़ोरम (85.34%) में वन आवरण का प्रतिशत सबसे अधिक है जो उनकी अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
- पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ: वन वायु शोधन, मृदा उर्वरता सुधार के साथ-साथ परागण सेवाओं में भी सहायता प्रदान करते हैं, जिनकी कीमत प्रतिवर्ष खरबों रुपए होती है।
- पारिस्थितिकी तंत्र और जैवविविधता की अर्थव्यवस्था (TEEB) पहल ने इन सेवाओं को महत्त्व देने के लिये वन प्रबंधन नीतियों को नया रूप दिया है।
- आजीविका सृजन: जनजातीय समुदायों सहित 250 मिलियन से अधिक लोग जीविका के लिये वनों पर निर्भर हैं।
- सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्त्व: स्वदेशी समुदायों द्वारा संरक्षित पवित्र उपवन, स्थानीय जैवविविधता की रक्षा करते हैं और संरक्षण नैतिकता को बढ़ावा देते हैं।
- जैवविविधता अधिनियम के अंतर्गत की गई पहलों से इन क्षेत्रों को अधिक मान्यता मिली है।
प्रमुख चुनौतियाँ:
- मैंग्रोव में गिरावट: ISFR-2023 में 7.43 वर्ग किमी की निवल कमी दर्ज की गई है, जो पुनर्भरण की तत्काल आवश्यकता का संकेत है।
- गुजरात में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई, जबकि आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में मामूली वृद्धि दर्ज की गई।
- निर्वनीकरण और वन क्षरण: कृषि भूमि का विस्तार, खनन और केन-बेतवा नदी जोड़ो जैसी बुनियादी अवसंरचना परियोजनाएँ वन पारिस्थितिकी तंत्र के लिये खतरा उत्पन्न करती हैं।
- ISFR-2023 में सघन वनों में कमी की रिपोर्ट दी गई है, जो एक चिंताजनक प्रवृत्ति को उजागर करती है।
- मानव-वन्यजीव संघर्ष: सिकुड़ते वन आवास मानव-पशु संघर्ष को बढ़ा रहे हैं, जिससे जन-धन की भारी हानि हो रही है।
- उदाहरण के लिये, मानव-पशु संघर्षों के कारण प्रतिवर्ष 500 से अधिक मनुष्य और 100 हाथियों की मृत्यु हो जाती है।
- जलवायु परिवर्तन के प्रभाव: वर्षा में परिवर्तन और बढ़ते तापमान के कारण वनाग्नि की घटनाओं में वृद्धि, कीटों का प्रकोप तथा जैवविविधता की हानि होती है।
- वर्ष 2024 में उत्तराखंड में हुई वनाग्नि की घटना जलवायु अनुकूल वन प्रबंधन की तात्कालिकता को रेखांकित करती है।
- आक्रामक प्रजातियाँ: लैंटाना कैमरा और सेन्ना स्पेक्टेबिलिस जैसी प्रजातियों का प्रसार विशेष रूप से पश्चिमी घाट एवं मुदुमलाई जैसे बाघ अभयारण्यों में स्थानीय जैवविविधता को बाधित करता है।
- एकल-फसलीय वृक्षारोपण: वनरोपण अभियान में प्रायः एकल-फसलीय वृक्षारोपण को प्राथमिकता दी जाती है, जिससे जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की समुत्थानशीलता कमज़ोर हो जाता है।
आगे की राह
- एकीकृत वन प्रबंधन: वन्यजीव गलियारों, कृषि और शहरी नियोजन को एकीकृत (तराई आर्क लैंडस्केप) करते हुए परिदृश्य-स्तरीय संरक्षण रणनीतियों को अपनाया जाना चाहिये।
- तकनीकी प्रगति: वन निगरानी, अग्नि प्रबंधन और वनरोपण ट्रैकिंग के लिये रिमोट सेंसिंग, ड्रोन एवं AI का उपयोग किया जाना चाहिये।
- समुदाय-केंद्रित दृष्टिकोण: संयुक्त वन प्रबंधन (JFM) कार्यक्रमों को त्वरित कर स्थायी वन-आधारित आजीविका के माध्यम से स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाया जाना चाहिये। (उदहारण: महाराष्ट्र में मेंधा लेखा पहल)
- क्षीण वनों का पुनरुद्धार: पारिस्थितिक पुनरुद्धार कार्यक्रमों का विस्तार किया जाना चाहिये, एकल-फसल वृक्षारोपण की अपेक्षा सहायक प्राकृतिक पुनरुद्धार पर बल दिया जाना चाहिये।
- काज़िरंगा-कार्बी आंगलोंग गलियारा जैसे वन्यजीव गलियारे के जीर्णोद्धार पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- नीतिगत एवं विधायी सुधार: वन संरक्षण अधिनियम की कमियों को दूर किया जाना चाहिये तथा उसका सख्ती से क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- वन्यजीव गलियारों और पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्रों के लिये व्यापक राष्ट्रीय नीतियाँ विकसित की जानी चाहिये।
निष्कर्ष:
पारिस्थितिकी संपदा के रूप में वन, एक समुत्थानशील और समावेशी भविष्य की कुंजी हैं। नवीन नीतियों, प्रौद्योगिकी और सामुदायिक भागीदारी के साथ प्रमुख चुनौतियों का समाधान करके, भारत अपने वन पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ कर सकता है एवं अपने जलवायु तथा विकास लक्ष्यों को पूरा कर सकता है।
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