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प्रश्न :
प्रश्न: "आर्थिक न्याय के बिना सामाजिक न्याय अधूरा है।" इस संदर्भ में विश्लेषण कीजिये कि भारत की सकारात्मक कार्रवाई नीतियों ने न्याय के दोनों आयामों को कैसे संबोधित किया है? (250 शब्द)
24 Dec, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्यायउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- सामाजिक न्याय और आर्थिक न्याय के बीच संबंधों पर प्रकाश डालते हुए उत्तर दीजिये।
- सामाजिक और आर्थिक न्याय दोनों को एक साथ सुनिश्चित हेतु प्रमुख नीतियों को बताइये।
- सामाजिक और आर्थिक न्याय दोनों को एक साथ सुनिश्चित करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
सामाजिक और आर्थिक न्याय समानता के गहरे रूप से परस्पर जुड़े आयाम हैं। सामाजिक न्याय सामाजिक संरचनाओं और प्रतिनिधित्व में समानता सुनिश्चित करता है, जबकि आर्थिक न्याय आजीविका के लिये संसाधनों एवं अवसरों तक समान पहुँच पर केंद्रित होता है।
- भारत में सकारात्मक कार्रवाई की नीतियों का उद्देश्य ऐतिहासिक भेदभाव को दूर करते हुए सीमांत वर्गों का आर्थिक उत्थान करते हुए इन आयामों के बीच के अंतर को समाप्त करना है।
सामाजिक और आर्थिक न्याय दोनों को एक साथ सुनिश्चित करने में आने वाली प्रमुख नीतियाँ:
- शिक्षा और रोज़गार में आरक्षण नीतियाँ: अनुच्छेद 15(4) और 16(4) राज्य को सार्वजनिक संस्थानों एवं रोज़गार में सामाजिक तथा शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण प्रदान करने का अधिकार देते हैं।
- सामाजिक न्याय: सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों और उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षण, निर्णय लेने वाली भूमिकाओं में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों व अन्य पिछड़े वर्गों के लिये प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है।
- आर्थिक न्याय: स्थायी सरकारी नौकरियों और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की सुलभता से इन समुदायों का आर्थिक उत्थान होता है।
- इसके अलावा, SC/ST विद्यार्थियों के लिये पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति के कार्यान्वयन से लाखों विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सहायता मिली है, जिससे उन्हें सीधे तौर पर बेहतर रोज़गार के अवसर प्राप्त हुए हैं।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA): अनुच्छेद 41 राज्य को राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों के भाग के रूप में कार्य करने के अधिकार को सुनिश्चित करने का निर्देश देता है।
- सामाजिक न्याय: सामाजिक रूप से सीमांत समूहों, विशेषकर दलितों, जनजातीय समुदायों और महिलाओं को समान रोज़गार के अवसर प्रदान करता है।
- आर्थिक न्याय: प्रतिवर्ष 100 दिन का वेतन रोज़गार की गारंटी देता है, जिससे वित्तीय स्थायित्व सुनिश्चित होता है।
- प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY): यह संविधान की प्रस्तावना और नीति-निदेशक तत्त्वों में उल्लिखित सामाजिक और आर्थिक समानता को बढ़ावा देती है। इसके अंतर्गत 54 करोड़ से अधिक खाते खोले गए हैं।
- सामाजिक न्याय: सीमांत वर्गों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में लाता है, जिससे वित्तीय अपवर्जन कम होता है।
- आर्थिक न्याय: बचत, ऋण सुलभता और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (JAM ट्रिनिटी) को सुगम बनाता है, आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है।
- स्टैंड-अप इंडिया योजना: ऐतिहासिक अपवर्जन को दूर करते हुए अनुच्छेद 16 के तहत अवसर की समानता को बढ़ावा देती है। वर्ष 2023 तक, इस योजना ने 40,000 करोड़ रुपए से अधिक ऋण स्वीकृत किये हैं।
- सामाजिक न्याय: इसका लक्ष्य महिलाओं और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उद्यमियों को सामाजिक गतिशीलता के अवसर प्रदान करना है।
- आर्थिक न्याय: व्यवसाय स्थापित करने के लिये 10 लाख से 1 करोड़ रुपए तक का ऋण प्रदान करता है, जिससे आर्थिक सशक्तीकरण सुनिश्चित होता है।
- अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006: अनुच्छेद 46 राज्य को अनुसूचित जातियों, जनजातियों और कमज़ोर वर्गों के हितों को बढ़ावा देने के लिये बाध्य करता है।
- सामाजिक न्याय: वन्य भूमि पर जनजातीय समुदायों के अधिकारों को मान्यता देता है, ऐतिहासिक रूप से सीमांत वर्ग के लोगों की समस्या का समाधान करता है।
- आर्थिक न्याय: वन संसाधनों के सतत् उपयोग और कृषि के लिये कृष्ट-भूमि की सुलभता को सक्षम करके आजीविका को सुरक्षित करता है।
- प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY): अनुच्छेद 21 के तहत पर्याप्त जीवन स्तर के अधिकार के हिस्से के रूप में जीवन स्तर को बढ़ावा देती है। PMAY के तहत 3 करोड़ से अधिक घरों का निर्माण किया गया है।
- सामाजिक न्याय: शहरी और ग्रामीण गरीबों को आवास उपलब्ध कराता है, बेघरों की संख्या कम करता है तथा उनके जीवन स्तर में सुधार कर उनका सम्मान सुनिश्चित करता है। महिलाओं के नाम पर घर पंजीकृत होने से महिला सशक्तिकरण में महत्त्वपूर्ण योगदान मिलता है।
- आर्थिक न्याय: संपत्ति के स्वामित्व को सुनिश्चित करता है, जो एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक परिसंपत्ति है जो वित्तीय सुरक्षा में सुधार करती है।
- आयुष्मान भारत– प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY): अनुच्छेद 21 और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये राज्य के नीति-निदेशक तत्त्वों के तहत स्वास्थ्य के अधिकार को बरकरार रखता है। AB PM-JAY के तहत 36 करोड़ से अधिक लाभार्थियों का सत्यापन किया गया है।
- सामाजिक न्याय: सामाजिक रूप से वंचित समूहों को स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच प्रदान करता है, जिससे असमानताएँ कम होती हैं।
- आर्थिक न्याय: इसका उद्देश्य माध्यमिक और तृतीयक देखभाल अस्पताल में भर्ती के लिये प्रति परिवार 5 लाख रुपए तक की वार्षिक स्वास्थ्य बीमा योजना प्रदान करना है।
सामाजिक और आर्थिक न्याय के बीच सेतु निर्माण में चुनौतियाँ:
- नीतिगत लाभों से सीमांत समुदायों का वंचित होना: कुछ समुदाय, जैसे विमुक्त जनजातियाँ (DNT) और खानाबदोश जनजातियाँ, प्रायः मान्यता के अभाव के कारण आरक्षण लाभों के दायरे से बाहर रह जाते हैं।
- सकारात्मक कार्रवाई योजनाओं में कार्यान्वयन अंतराल: कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार, अकुशलता और अनियमितता नीतियों के इच्छित प्रभाव को कमज़ोर कर देती है।
- उदाहरण के लिये, आयुष्मान भारत के CAG के प्रदर्शन लेखापरीक्षण से पता चला कि 7 लाख से अधिक लाभार्थी एक ही मोबाइल नंबर से जुड़े हुए थे।
- कलंक और सामाजिक भेदभाव: कानूनी सुरक्षा उपायों के बावजूद जाति, जनजाति और लिंग के आधार पर सामाजिक भेदभाव जारी है, जिससे न्याय की पूर्ण प्राप्ति सीमित हो जा रही है।
- वैश्विक लैंगिक अंतर सूचकांक- 2024 में भारत की रैंकिंग 146 देशों में से 129वें स्थान पर आ गई है, जो लैंगिक समानता प्राप्त करने में जारी चुनौतियों को दर्शाता है।
- लाभार्थियों में सीमित जागरूकता: कई इच्छुक लाभार्थी अपने अधिकारों या सरकारी योजनाओं के अस्तित्व से अनभिज्ञ हैं।
- इससे भागीदारी सीमित हो जाती है और सामाजिक-आर्थिक अपवर्जन कायम रहता है।
आगे की राह:
- वितरण तंत्र को सुदृढ़ करना: भ्रष्टाचार को कम करने और लाभार्थियों तक अविलंब धनराशि की सुलभता सुनिश्चित करने की दिशा में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाया जाना चाहिये।
- समावेशिता का विस्तार करना: विमुक्त और खानाबदोश जनजातियों जैसे सीमांत समूहों की पहचान कर उन्हें सकारात्मक कार्रवाई नीतियों में शामिल किया जाना चाहिये।
- जागरूकता और पहुँच बढ़ाना: सीमांत समूहों को उनके अधिकारों और योजनाओं की उपलब्धता के बारे में शिक्षित करने के लिये क्षेत्रीय भाषाओं में लक्षित अभियान चलाए जाने चाहिये।
- क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करना: सामाजिक और आर्थिक लाभों तक पहुँच में सुधार के लिये पिछड़े क्षेत्रों में बुनियादी अवसंरचना के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- आवास, स्वास्थ्य देखभाल और रोज़गार सृजन पर ध्यान केंद्रित करते हुए जनजाति बहुल क्षेत्रों को कवर करने के लिये आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम (ADP) को दोहराया जा सकता है।
- नीतियों की निगरानी और मूल्यांकन: सकारात्मक कार्रवाई नीतियों की प्रभावकारिता का मूल्यांकन करने और मध्यावधि सुधारों की सिफारिश करने के लिये स्वतंत्र निगरानी निकायों की स्थापना की जानी चाहिये।
- लाभार्थियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति की ठीक समय पर निगरानी सुनिश्चित करने के लिये SECC (सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना) को समय-समय पर अद्यतन किया जा सकता है।
निष्कर्ष:
यद्यपि भारत की सकारात्मक कार्रवाई नीतियों ने सामाजिक और आर्थिक विषमताओं को दूर करने में प्रगति की है, फिर भी क्षेत्रीय असमानताओं, समावेशिता की कमी व कार्यान्वयन अंतराल जैसी चुनौतियों से उनकी प्रभावशीलता बाधित होती है। डेटा-संचालित रणनीतियों, बेहतर शासन एवं लक्षित आउटरीच के साथ इन चुनौतियों का समाधान करके यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि सामाजिक और आर्थिक न्याय एक समतापूर्ण समाज के पूरक स्तंभों के रूप में विकसित हो।
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