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प्रश्न :
प्रश्न: भारत में बौद्ध कला के विकास में मथुरा शैली और गांधार शैली की विशेषताओं तथा योगदान पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
23 Dec, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृतिउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- मथुरा और गांधार कला के महत्त्व को संक्षेप में बताकर उत्तर दीजिये।
- बौद्ध कला के विकास में मथुरा शाखा के योगदान पर गहराई से विचार प्रस्तुत कीजिये।
- बौद्ध कला के विकास में गांधार शाखा के योगदान पर प्रकाश डालिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
ईसा युग की प्रारंभिक शताब्दियों के दौरान उभरने वाली मथुरा और गांधार कला शैलियाँ भारतीय कला में दो अलग-अलग किंतु परस्पर जुड़ी हुई परंपराओं का प्रतिनिधित्व करती हैं।
- जहाँ मथुरा शाखा का विकास स्वदेशी रूप से हुआ, वहीं गांधार शाखा में ग्रीक-रोमन प्रभाव सम्मिलित थे।
- दोनों शाखाों ने बुद्ध और बौद्ध कथाओं के चित्रण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, जिससे भारत में बौद्ध कला के विकास को आकार मिला।
मुख्य भाग:
मथुरा कला शाखा:
- काल और केंद्र: इसकी उत्पत्ति , मुख्यतः मथुरा (आधुनिक उत्तर प्रदेश) में पहली शताब्दी ई. में हुई।
- कुषाण साम्राज्य के तहत यह समृद्ध हुआ और गुप्त काल (4थी-6ठी शताब्दी ई.) के दौरान अपने चरम पर पहुँच गया। चित्तीदार लाल बलुआ पत्थर के उपयोग के लिये उल्लेखनीय है।
- बौद्ध कला में योगदान:
- बुद्ध का मानवीय चित्रण: प्रतीकात्मक चित्रण (जैसे- पदचिह्न, स्तूप) से मानवरूपी छवियों की ओर संक्रमण।
- बुद्ध को आध्यात्मिक गहनता वाले एक दृढ़, ऊर्जावान व्यक्तित्व के रूप में दर्शाया गया है।
- सामान्य सुविधाएँ:
- मुंडा हुआ सिर, मांसल धड़।
- दाहिना हाथ अभयमुद्रा (आश्वासन का संकेत) में।
- पद्मासन (कमल मुद्रा) में बैठे हुए चित्रण।
- उदाहरण: बोधि वृक्ष के नीचे बैठे बुद्ध, जिनके तलवों और हथेलियों पर धर्म चक्र और त्रिरत्न के प्रतीक अंकित हैं।
- विशिष्ट शैली: आंतरिक आध्यात्मिकता और चेहरे के भावों पर ज़ोर देने वाली स्वदेशी शिल्पकला।
- वृत्ताकार में उकेरी गई आकृतियाँ, सभी कोणों से दिखाई देती हैं।
- बुद्ध का मानवीय चित्रण: प्रतीकात्मक चित्रण (जैसे- पदचिह्न, स्तूप) से मानवरूपी छवियों की ओर संक्रमण।
गांधार कला शाखा:
- काल और केंद्र: पहली शताब्दी ईसा पूर्व से चौथी शताब्दी ईसवी तक विकसित हुआ।
- प्रमुख केंद्र: तक्षशिला, पेशावर, बामियान और बेग्राम (आधुनिक अफगानिस्तान और उत्तर-पश्चिम भारत)।
- बौद्ध कला में योगदान:
- ग्रीको-रोमन प्रभाव: यथार्थवाद और कायिक सटीकता का परिचय दिया।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- लहराते बाल, चेहरे की विशेषताएँ।
- हेलेनिस्टिक शैली में लिपटे वस्त्र।
- बुद्ध के सिर के चारों ओर का प्रभामंडल, ग्रीक परंपराओं से लिया गया है।
- बुद्ध का चित्रण: बुद्ध को शांत और ध्यानमग्न अवस्था में चित्रित किया गया है, जो प्रायः यूनानी देवता अपोलो जैसा दिखता है।
- जातक कथाओं और बुद्ध के जीवन की घटनाओं को दर्शाने वाले बौद्ध पैनलों में कहानी कहने की निपुणता।
- नीले-भूरे रंग के शिस्ट का प्रयोग, मूर्तियों को विशिष्ट फिनिश देता है।
- कलात्मक यथार्थवाद: शारीरिक सूक्ष्मता, स्थानिक गहनता और भावनात्मक अभिव्यक्तियों पर ज़ोर।
- उदाहरण: ग्रीक शैली के वस्त्र और अलंकरण के साथ खड़े बुद्ध और बैठे हुए बोधिसत्व।
निष्कर्ष:
मथुरा और गांधार शैलियों ने सामूहिक रूप से बौद्ध कला को समृद्ध किया, जिसमें स्वदेशी आध्यात्मिकता को विदेशी सौंदर्यबोध के साथ मिश्रित किया गया। मथुरा की आध्यात्मिक शक्ति और गांधार की यथार्थवादी उत्कृष्टता ने भारतीय बौद्ध कला के सार्वभौमिक आकर्षण की नींव रखी, जिससे एशिया व उसके बाहर इसकी विरासत सुनिश्चित हुई।
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