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प्रश्न :
आप एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी में वरिष्ठ अधिकारी हैं। एक दिन, आपकी टीम की एक जूनियर सहकर्मी, जो अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण के लिये प्रसिद्ध है, परेशान तथा चिंतित स्थिति में आपसे सलाह लेने आती है। वह आपको बताती है कि उसका छोटा भाई, जो इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में है, को एक गंभीर बीमारी का पता चला है। उसे जानलेवा बीमारी का पता चला है, जिसके लिये तत्काल उपचार की आवश्यकता है, जिसकी लागत 8 लाख रुपए है। अपने परिवार में एकमात्र कमाने वाली है, जिस कारण वह इस भारी चिकित्सा खर्च का प्रबंध करने में कठिनाई का सामना कर रही है, क्योंकि उसका सीमित वेतन केवल घर के दैनिक खर्चों को पूरा करने के लिये ही पर्याप्त हो पाता है।
आप उसकी स्थिति से सहानुभूति रखते हैं, लेकिन व्यक्तिगत रूप से वित्तीय सहायता प्रदान करने में असमर्थ हैं। एक महीने बाद, आप देखते हैं कि उसकी मनोदशा में सुधार हुआ है और जब आप इसके बारे में पूछते हैं, तो वह बताती है कि विभाग के प्रमुख द्वारा आपातकालीन कर्मचारी कल्याण के तहत विवेकाधीन निधियों से किये गए अग्रिम भुगतान के चलते उसके भाई का उपचार अब जारी है। वह यह भी बताती है कि उसने मासिक किश्तों में राशि चुकाने का वादा किया है, जिसकी शुरुआत उसने पहले ही कर दी है।
हालाँकि जब आप कंपनी के दिशा-निर्देशों की समीक्षा करते हैं, तो आपको पता चलता है कि विवेकाधीन निधि का उपयोग केवल आधिकारिक उद्देश्यों के लिये किया जा सकता है और इसे व्यक्तिगत मामलों में उपयोग करने की अनुमति नहीं है। विभाग प्रमुख की कार्रवाई, हालाँकि नेक इरादे से की गई थी, लेकिन इससे मानक प्रक्रियाओं का उल्लंघन हुआ है, जिससे मामले के उजागर होने पर कानूनी और अनुशासनात्मक कार्रवाई का जोखिम उत्पन्न हो सकता है।
(क) इस मामले में नैतिक मुद्दे क्या हैं?
20 Dec, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़
(ख) स्थिति से अवगत एक वरिष्ठ अधिकारी के रूप में आप क्या कार्रवाई करेंगे?
(ग) विवेकाधीन निधियों के दुरुपयोग को रोकने के लिये व्यापक संगठनात्मक उपाय सुझाइये।उत्तर :
परिचय:
सार्वजनिक क्षेत्र की किसी कंपनी में एक जूनियर कर्मचारी अपने भाई की जानलेवा बीमारी के कारण वित्तीय संकट का सामना कर रही है, जिसके लिये तत्काल उपचार की आवश्यकता है। उसे सहायता देने के लिये प्रमुख संगठनात्मक दिशा-निर्देशों को दरकिनार करते हुए विभाग द्वारा विवेकाधीन निधि का उपयोग किया जाता है, जिसका पुनर्भुगतान किश्तों में किया जाता है। जबकि यह कार्रवाई दयालुतापूर्ण है और समय पर सहायता सुनिश्चित करती है, यह नियमों का उल्लंघन करती है, जिससे कानूनी एवं अनुशासनात्मक परिणामों का जोखिम उत्पन्न होता है।
- वरिष्ठ अधिकारी को, जिसे इस बारे में पता चला है, सहानुभूति और उत्तरदायित्व के बीच संतुलन बनाना चाहिये तथा प्रक्रियागत उल्लंघन पर कार्रवाई करनी चाहिये।
मुख्य भाग:
(क) नैतिक मुद्दे
- करुणा बनाम नियम पालन: किसी कर्मचारी की अत्यंत आवश्यकता में सहायता करना नैतिक एवं मानवीय मूल्यों के अनुरूप है।
- आधिकारिक दिशा-निर्देशों की अनदेखी करने से संगठनात्मक अखंडता कमज़ोर होती है और जिसके दुष्परिणाम हो सकते हैं।
- उद्देश्य बनाम परिणाम: विभागाध्यक्ष ने संकटग्रस्त कर्मचारी की सहायता करने के वास्तविक उद्देश्य से कार्य किया।
- धन के दुरुपयोग से संगठन और संबंधित व्यक्तियों पर कानूनी तथा अनुशासनात्मक परिणाम हो सकते हैं।
- व्यक्तिगत कल्याण बनाम संगठनात्मक अखंडता: चिकित्सा आपातकाल से निपटने से कर्मचारी के परिवार को तत्काल राहत सुनिश्चित हुई।
- प्रोटोकॉल का उल्लंघन करने से फंड प्रबंधन में विश्वास और उत्तरदायित्व समाप्त हो सकती है।
- अल्पकालिक राहत बनाम दीर्घकालिक परिणाम: तत्काल चिकित्सा उपचार से कर्मचारी के भाई की जान बच गई।
- प्रक्रियाओं से विचलन से विभिन्न उद्देश्यों के लिये समान अनुरोधों को प्रोत्साहन मिल सकता है, जिससे विवेकाधीन निधियों के दुरुपयोग की संभावना बढ़ सकती है।
- सहानुभूति बनाम मिसाल: संकट के समय कर्मचारियों को समर्थन देने से सद्भावना और मनोबल बढ़ता है।
- यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो ऐसी कार्रवाइयाँ दिशा-निर्देशों से विचलन को सामान्य बना सकती हैं।
(ख) कार्यवाही का तरीका:
चरण 1: स्थिति की तत्काल स्वीकृति
- नैतिक दुविधा का अभिनिर्धारण: कार्रवाई की मानवीय प्रकृति को स्वीकार किया जाना चाहिये लेकिन स्थापित नियमों से विचलन को भी स्वीकार करना आवश्यक है। यह सहानुभूति और पेशेवर ईमानदारी को बनाए रखने की आवश्यकता को संतुलित करता है।
- परिस्थितियों का आकलन: निधि उपयोग प्रक्रिया, विभाग प्रमुख की भूमिका और कनिष्ठ सहकर्मी द्वारा शुरू की गई पुनर्भुगतान प्रणाली सहित सभी प्रासंगिक तथ्य एकत्र करना आवश्यक है।
चरण 2: हितधारकों के साथ जुड़ना
- विभाग प्रमुख से चर्चा करना: उनकी निर्णय लेने की प्रक्रिया को समझने के लिये विभाग प्रमुख से निजी तौर पर मिलना आवश्यक है।
- मानवीय उद्देश्य की सराहना करते हुए प्रक्रियागत उल्लंघन को उजागर किया जाना चाहिये।
- कनिष्ठ सहकर्मी को आश्वासन: कनिष्ठ सहकर्मी को निजी तौर पर आश्वस्त किया जाना चाहिये कि उसकी गोपनीयता और गरिमा का सम्मान किया जाएगा।
चरण 3: स्थिति से निपटना
- एक संतुलित कार्य योजना की सिफारिश: वर्तमान पुनर्भुगतान व्यवस्था को बनाए रखने का प्रस्ताव किया जाना चाहिये तथा यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि निधि पूरी तरह से पुनः संचित हो जाए।
- उच्च प्रबंधन या आचार समिति से अनुरोध किया जाना चाहिये कि वे सभी कर्मचारियों को निधि उपयोग प्रोटोकॉल के बारे में स्पष्टीकरण जारी करें तथा इस मामले (अनाम) को एक सीख के रूप में संदर्भित करें।
- आचार समिति को इसमें शामिल सभी हितधारकों (विभागीय प्रमुखों और स्टाफ सदस्यों सहित) को ध्यान में रखना चाहिये तथा नैतिक मानकों के लिये एक बेंचमार्क स्थापित करना चाहिये।
- उच्च प्रबंधन या आचार समिति से अनुरोध किया जाना चाहिये कि वे सभी कर्मचारियों को निधि उपयोग प्रोटोकॉल के बारे में स्पष्टीकरण जारी करें तथा इस मामले (अनाम) को एक सीख के रूप में संदर्भित करें।
- अधिगम को प्रोत्साहित किया जाए, दंड को नहीं: भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिये विभाग प्रमुख को दंडात्मक उपायों को छोड़कर जागरूकता बढ़ाने और प्रशिक्षण देने हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- इस घटना को संगठन के लिये संकट प्रबंधन फ्रेम वर्क को बढ़ाने के अवसर के रूप में देखा जाना चाहिये।
दृष्टिकोण का औचित्य:
- नियमों को करुणा के साथ संतुलित करना: कार्य योजना, इसके पीछे के वास्तविक उद्देश्य की उपेक्षा किये बिना नैतिक उल्लंघन पर कार्रवाई करती है।
- व्यावहारिक प्रबंधन: अनावश्यक वृद्धि से बचा जाता है जो मनोबल को नुकसान पहुँचा सकता है, साथ ही भविष्य की घटनाओं के लिये सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करता है।
- तंत्र को सुदृढ़ बनाना: संस्थागत सुधारों का सुझाव देने से समस्या के मूल कारण का समाधान होता है और भविष्य में इसी प्रकार की समस्याओं को रोका जा सकता है।
(ग) विवेकाधीन निधियों के दुरुपयोग को रोकने के लिये व्यापक संगठनात्मक उपाय:
- आपातकालीन कर्मचारी कल्याण निधि की स्थापना: कर्मचारियों की तत्काल व्यक्तिगत आपात स्थितियों से निपटने के लिये एक समर्पित निधि बनाए जाने की आवश्यकता है।
- सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि यह निधि सख्त पात्रता मानदंडों के तहत संचालित हो, जिसमें निर्दिष्ट समिति से अनुमोदन भी शामिल हो।
- मनमाने उपयोग को रोकने के लिये इसके दायरे (जैसे- जीवन-धमकाने वाली चिकित्सा समस्याएँ, दुर्घटना राहत) को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिये।
- सुदृढ़ शासन और निगरानी: निधि उपयोग के लिये बहु-स्तरीय अनुमोदन प्रक्रिया लागू किया जाना चाहिये, जिसमें कम-से-कम दो वरिष्ठ अधिकारी और आचार समिति शामिल हो।
- नीतियों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये विवेकाधीन निधि के उपयोग का नियमित आंतरिक ऑडिट आयोजित किया जाना चाहिये।
- विवेकाधीन और कल्याणकारी निधियों के उपयोग का सारांश प्रस्तुत करते हुए एक वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित किया जाना चाहिये।
- स्पष्ट एवं अद्यतन नीति फ्रेमवर्क: विवेकाधीन निधि उपयोग के लिये सटीक सीमाएँ निर्धारित की जानी चाहिये, जिसमें अनुमत उद्देश्यों की सूची भी शामिल हो।
- विषम परिस्थितियों, जैसे कि कर्मचारी संबंधी आपातस्थितियों से निपटने के लिये दिशा-निर्देश प्रस्तुत किया जाना चाहिये, जिसके लिये वरिष्ठ प्रबंधन से पूर्व अनुमोदन आवश्यक हो।
- डिजिटल निगरानी और निधि प्रबंधन उपकरण: विवेकाधीन निधि आवंटन और व्यय पर नज़र रखने के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग किया जाना चाहिये।
- धन के अनुरोध और अनुमोदन के लिये स्वचालित प्रणालियाँ लागू की जानी चाहिये तथा यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि प्रत्येक लेनदेन को औचित्य के साथ दर्ज किया जाए।
- संकट प्रबंधन समितियाँ: कर्मचारी संकट से संबंधित अनुरोधों के प्रबंधन के लिये, यह सुनिश्चित करते हुए कि निर्णय निष्पक्ष, सुसंगत और अच्छी तरह से प्रलेखित हों, एक ज़िम्मेदार समिति का गठन किया जाना चाहिये।
- नीति अनुपालन के साथ करुणा का संतुलन बनाए रखने के लिये मानव संसाधन, वित्त और नैतिकता विभागों के सदस्यों को शामिल किया जाना चाहिये।
- जवाबदेही की संस्कृति को बढ़ावा देना: इस विचार को सुदृढ़ किया जाना चाहिये कि विवेकाधीन निधियाँ सार्वजनिक संसाधन हैं जिनका विवेकपूर्ण उपयोग आवश्यक है।
- उन कर्मचारियों और प्रबंधकों को पुरस्कृत किया जाना चाहिये जो चुनौतियों का नवीनतापूर्वक समाधान करते हुए नियमों का पालन करते हैं।
- असाधारण मामलों के लिये लचीलापन: दुर्लभ एवं अपरिहार्य परिस्थितियों में निधि उपयोग को अनुमोदन देने के लिये एक सुपरिभाषित प्रक्रिया लागू की जानी चाहिये।
- अनुमोदन के बाद निगरानी बनाए रखने के लिये बोर्ड या आचार समिति को रिपोर्ट करने के लिये धाराएँ शामिल की जानी चाहिये।
- कर्मचारी जागरूकता को बढ़ावा देना: अनधिकृत निधि अनुरोधों को कम करने के लिये उपलब्ध कल्याणकारी योजनाओं, निधियों और सहायता तंत्रों के बारे में कर्मचारियों को नियमित रूप से जानकारी दी जानी चाहिये।
- कानूनी और नैतिक दोनों पहलुओं पर बल देते हुए, निधि के दुरुपयोग के परिणामों के बारे में बताया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
स्थिति में करुणा और नियम पालन के बीच संतुलन बनाने के लिये व्यावहारिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। विभाग प्रमुख के मानवीय उद्देश्य को पहचानते हुए, संगठनात्मक नीतियों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये कदम उठाए जाने चाहिये। आपातकालीन कल्याण निधि जैसे प्रणालीगत सुधारों को शुरू करने और निगरानी को दृश करने से भविष्य में ऐसी नैतिक दुविधाओं को रोका जा सकेगा। यह दृष्टिकोण संगठनात्मक अखंडता की रक्षा करता है और एक सहायक कार्य वातावरण को बढ़ावा देता है।
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