प्रश्न: "क्या एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध प्लास्टिक प्रदूषण संकट को हल करने के लिये पर्याप्त है? भारत में टिकाऊ प्लास्टिक प्रबंधन के लिये वैकल्पिक रणनीतियों का मूल्यांकन कीजिये।" (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में प्लास्टिक प्रदूषण के मुद्दे पर संक्षिप्त जानकारी के साथ उत्तर दीजिये।
- चर्चा कीजिये कि क्यों केवल सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाना पर्याप्त नहीं है।
- संवहनीय प्लास्टिक प्रबंधन के लिये वैकल्पिक रणनीतियाँ बताइये।
- सतत् विकास लक्ष्यों के साथ उपयुक्त रूप से इसे जोड़ते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 4 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिसमें से केवल 25% का ही पुनर्चक्रण या संसाधित किया जाता है। सिंगल-यूज़ प्लास्टिक (SUP) इस समस्या में योगदान देता है, जो कुल प्लास्टिक अपशिष्ट का केवल एक अंश ही है।
- SUP (प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2021) पर प्रतिबंध के बावजूद, प्लास्टिक उत्पादन, पुनर्चक्रण और निपटान में प्रणालीगत समस्याएँ बनी हुई हैं, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण संकट से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
मुख्य भाग:
अकेले एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाना क्यों पर्याप्त नहीं है:
- समग्र प्लास्टिक अपशिष्ट पर सीमित प्रभाव: SUP भारत के कुल प्लास्टिक अपशिष्ट का एक छोटा-सा हिस्सा है।
- प्रदूषण में योगदान करने वाले बहुस्तरीय प्लास्टिक (MLP) और ई-कॉमर्स पैकेजिंग जैसे बड़े कारकों पर ध्यान नहीं दिया गया है।
- अप्रभावी प्रवर्तन: SUP (प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022) पर प्रतिबंध को नियामक और निगरानी अंतराल के साथ राज्यों में असंगत रूप से लागू किया गया है।
- पुनर्चक्रण चुनौतियाँ: पुनर्चक्रण एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। तकनीकी और बुनियादी अवसंरचना की कमी के कारण भारत में कुल एकत्रित प्लास्टिक अपशिष्ट का केवल 60% ही पुनर्चक्रित किया जाता है।
- इसके अलावा, अनौपचारिक क्षेत्र में यह पुनर्चक्रण प्रायः अकुशलतापूर्वक किया जाता है।
- EPR तंत्र में गड़बड़ी: विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) तंत्र के तहत धोखाधड़ी वाले प्रमाण-पत्र इसकी प्रभावकारिता को कमज़ोर करते हैं (सत्र 2022-23 में 3.7 मिलियन टन प्रमाण-पत्र तैयार किये गए, जिनमें से लगभग 6 लाख फर्ज़ी हैं)।
संवहनीय प्लास्टिक प्रबंधन के लिये वैकल्पिक रणनीतियाँ:
- चक्रीय अर्थव्यवस्था दृष्टिकोण
- पुनर्चक्रणीयता के लिये डिज़ाइन को बढ़ावा देना: उत्पादकों को ऐसे उत्पाद डिज़ाइन करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये जिनका पुनर्चक्रण करना आसान हो।
- सामग्री पुनर्प्राप्ति सुविधाएँ (MRF): शहरी क्षेत्रों में केंद्रीकृत अपशिष्ट पृथक्करण और प्रसंस्करण केंद्र (वर्तमान में कई नगर पालिकाओं में यह सुविधा उपलब्ध नहीं है) स्थापित किये जाने चाहिये।
- पुनर्नवीनीकृत प्लास्टिक को प्रोत्साहित करना: उपभोग चक्र को बंद करने के लिये पुनर्नवीनीकृत सामग्री का उपयोग करने वाले निर्माताओं को कर लाभ प्रदान किया जाना चाहिये।
- तकनीकी नवाचार
- उन्नत पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकियाँ: MLP और गैर-पुनर्चक्रणीय प्लास्टिक प्रबंधन के लिये पायरोलिसिस और गैसीकरण संयंत्रों (भारत में बड़े पैमाने पर ऐसी प्रौद्योगिकियों का अभाव है) में निवेश किया जाना चाहिये।
- IoT और AI समाधान: अपशिष्ट संग्रहण मार्गों को अनुकूलित करने के लिये IoT-सक्षम स्मार्ट डिब्बे तैनात किया जाना चाहिये। स्वचालित अपशिष्ट पृथक्करण के लिये AI का उपयोग किया जाना चाहिये।
- नीति और प्रवर्तन को सुदृढ़ बनाना
- ग्रेडेड EPR शुल्क: पुनर्चक्रण में जटिल प्लास्टिक के प्रयोग को हतोत्साहित करने के लिये उन पर उच्च शुल्क लगाया जाना चाहिये।
- अनिवार्य प्लास्टिक फुटप्रिंट ऑडिट: कंपनियों को वार्षिक प्लास्टिक प्रयोग और रीसाइक्लिंग दरों का खुलासा (संभावित भौतिक मूल्य हानि: FICCI के अनुसार वर्ष 2030 तक 133 बिलियन अमेरिकी डॉलर का अनुमान) करना आवश्यक है।
- संवहनीय विकल्पों को बढ़ावा देना
- जैव-निम्नीकरणीय प्लास्टिक: भारतीय पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल खाद योग्य प्लास्टिक (वर्तमान मानक अस्पष्ट हैं) विकसित किया जाना चाहिये।
- पर्यावरण अनुकूल सामग्री: खोई (गन्ने को पेरकर रस निकालने के बाद बचा ठोस अवशेष) आधारित और शैवाल-आधारित सामग्री (जैसे- शैवाल-मिश्रित EVA, जो कार्बन और जल प्रदूषकों को कम करने में भी सहायक है) का उपयोग बढ़ाया जाना चाहिये।
- जन-जागरूकता और क्षमता निर्माण
- शैक्षिक अभियान: कम उम्र से ही जागरूकता उत्पन्न करने के लिये अपशिष्ट प्रबंधन को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिये।
- सामुदायिक कार्यशालाएँ: संचित अपशिष्ट के कारण मच्छरों व अन्य रोग कारकों के प्रजनन जैसी चुनौतियों से निपटने के लिये नागरिकों को अपशिष्ट पृथक्करण और पुनर्चक्रण प्रथाओं का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये।
- स्टार्टअप को समर्थन प्रदान करना: नवीन अपशिष्ट प्रबंधन व्यवसायों (उदाहरण के लिये, त्यागराज कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग की पेटेंट प्राप्त प्लास्टिक-से-निर्माण-सामग्री प्रौद्योगिकी) को वित्तपोषित किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
सिंगल-यूज़ प्लास्टिक (SUP) पर प्रतिबंध लगाना आवश्यक है, लेकिन भारत को एक समग्र रणनीति की भी आवश्यकता है जिसमें चक्रीय अर्थव्यवस्था के सिद्धांत, उन्नत अपशिष्ट प्रबंधन और जन जागरूकता शामिल हो। यह दृष्टिकोण SDG के साथ संरेखित है: SDG 12 (ज़िम्मेदार उपभोग और उत्पादन), SDG 14 (जल में जीवन), SDG 15 (स्थल पर जीवन) और SDG 3 (अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण), संवहनीयता तथा स्वच्छ भविष्य को बढ़ावा देता है।