प्रश्न: हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की बढ़ती समुद्री भागीदारी के रणनीतिक निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। यह भारत के क्षेत्रीय सुरक्षा उद्देश्यों और भू-राजनीतिक हितों के साथ कैसे संरेखित होती है? विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत के लिये हिंद महासागर क्षेत्र के महत्त्व को संक्षेप में बताते हुए उत्तर दीजिये।
- भारत की बढ़ती समुद्री भागीदारी के रणनीतिक निहितार्थों पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
- भारत के क्षेत्रीय सुरक्षा उद्देश्यों के साथ इसके संरेखण पर प्रकाश डालिये।
- भारत की समुद्री भागीदारी से संबंधित चिंताएँ बताइये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) अपने भू-आर्थिक महत्त्व, सुरक्षा गतिशीलता और सामरिक भौगोलिक स्थिति के कारण भारत की समुद्री रणनीति के लिये केंद्रीय है। मैरीटाइम इंडिया विज़न- 2030 और SAGAR (क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास) सिद्धांत जैसी पहल भारत की अपनी समुद्री उपस्थिति को सुदृढ़ करने की मंशा को दर्शाती हैं।
मुख्य भाग:
भारत की बढ़ती समुद्री भागीदारी के सामरिक निहितार्थ:
- व्यापार मार्गों और आर्थिक हितों को सुरक्षित करना: मात्रा की दृष्टि से हिंद महासागर भारत के 95% से अधिक व्यापार और मूल्य की दृष्टि से 70% व्यापार का प्रबंधन करता है।
- व्यापार के लिये विदेशी जहाज़ों पर भारत की निर्भरता उसे कमज़ोर बनाती है, जैसा कि लाल सागर संकट में देखा गया था, जहाँ वैश्विक शिपिंग व्यवधानों ने जोखिमों को रेखांकित किया था।
- बंदरगाह आधुनिकीकरण (जैसे- सागरमाला कार्यक्रम) सहित समुद्री बुनियादी अवसंरचना का विकास, व्यापार मार्गों पर भारत के नियंत्रण को बढ़ाता है।
- समुद्री सुरक्षा और निगरानी बढ़ाना: भारत की बढ़ती नौसैनिक क्षमताएँ एवं साझेदारियाँ समुद्री मार्गों की निगरानी में सुधार करती हैं, नौवहन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करती हैं और समुद्री डकैती, आतंकवाद तथा अवैध मत्स्यन जैसी चुनौतियों का समाधान करती हैं।
- सूचना संलयन केंद्र- हिंद महासागर क्षेत्र (IFC-IOR) जैसी पहल समुद्री क्षेत्र में रियल टाइम जागरूकता प्रदान करती है।
- नीली अर्थव्यवस्था और सतत् विकास को बढ़ावा देना: भारत तटीय शिपिंग, मत्स्यिकी और समुद्री पर्यटन सहित आर्थिक विविधीकरण के लिये अपने समुद्री बुनियादी अवसंरचना का लाभ उठा रहा है।
- हरित सागर पहल जैसे कार्यक्रम समुद्री विकास को पर्यावरणीय स्थिरता के साथ जोड़ते हैं तथा भारत की COP28 प्रतिबद्धताओं का समर्थन करते हैं।
- रोज़गार सृजन और घरेलू जहाज़ निर्माण: भारत का लक्ष्य आत्मनिर्भर भारत के तहत विदेशी जहाज़ों पर निर्भरता कम करना, विदेशी मुद्रा की बचत करना और स्थानीय जहाज़ निर्माण को बढ़ावा देना है।
- सागरमाला कार्यक्रम और कोचीन शिपयार्ड के स्वायत्त जहाज़ों जैसी पहल रोज़गार के अवसर उत्पन्न करती हैं जो समुद्री कार्यबल को बढ़ावा देती हैं।
भारत के क्षेत्रीय सुरक्षा उद्देश्यों के साथ संरेखण:
- समुद्री संप्रभुता सुनिश्चित करना: भारत का लक्ष्य अपने विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) की रक्षा करना तथा संसाधनों को अवैध दोहन से बचाना है।
- EEZ विक्रांत जैसे विमानवाहक पोतों सहित नौसैनिक परिसंपत्तियों का विस्तार भारत की समुद्री प्रतिरोध क्षमता को प्रबल करता है।
- चीन के समुद्री प्रभाव का मुकाबला करना चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति और वैश्विक जहाज़ निर्माण में इसकी प्रमुख स्थिति (46.6% बाज़ार हिस्सेदारी) भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत के सामरिक हितों को चुनौती देती है।
- सबंग बंदरगाह (इंडोनेशिया), सित्तवे बंदरगाह (म्याँमार) और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) में भारत का निवेश चीन के समुद्री रेशम मार्ग के प्रतिकार के रूप में कार्य करता है।
- नौसेना की उपस्थिति को मज़बूत करने और महत्त्वपूर्ण बुनियादी अवसंरचना के विकास से मलक्का जलडमरूमध्य तथा होर्मुज़ जलडमरूमध्य जैसे अवरोध बिंदुओं पर भारत का प्रभाव बढ़ेगा।
- भारत-प्रशांत साझेदारी को सुदृढ़ करना: भारत की समुद्री भागीदारी इसकी ‘एक्ट ईस्ट नीति’ और भारत-प्रशांत रणनीति के अनुरूप है, जिससे जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका व ASEAN देशों जैसे देशों के साथ साझेदारी बढ़ेगी।
- क्वाड पहल (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) का ध्यान स्वतंत्र, मुक्त और समावेशी हिंद-प्रशांत को बढ़ावा देने तथा आधिपत्यवादी खतरों का मुकाबला करने पर केंद्रित है।
- बंदरगाहों और शिपिंग केंद्रों में भारत के बुनियादी अवसंरचना के निवेश से क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ावा मिलेगा और इसकी अग्रणी भूमिका मज़बूत होगी।
भारत की समुद्री भागीदारी से संबंधित चिंताएँ:
- वित्तपोषण और बुनियादी अवसंरचना का अंतराल: प्रतिस्पर्द्धी वित्तपोषण का अभाव और बुनियादी अवसंरचना के रूप में जहाज़ का वर्गीकरण घरेलू जहाज़ निर्माण विकास को सीमित करता है।
- उच्च रसद लागत और अकुशल बंदरगाह संचालन समुद्री प्रतिस्पर्द्धात्मकता में बाधा डालते हैं।
- चीनी प्रभुत्व: हिंद महासागर क्षेत्र में चीन का आक्रामक समुद्री विस्तार और आर्थिक प्रभुत्व भारत के लिये रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाता है।
- कनेक्टिविटी संबंधी बाधाएँ: अपर्याप्त अंतर्देशीय कनेक्टिविटी और अपर्याप्त मल्टीमॉडल बुनियादी अवसंरचना के कारण बंदरगाह की दक्षता में बाधा आती है।
- भू-राजनीतिक तनाव: पश्चिम एशिया और मध्य पूर्व जैसे क्षेत्रों में संघर्ष भारत की समुद्री गतिविधियों में जटिलताएँ बढ़ती हैं।
आगे की राह
- सामरिक साझेदारी बढ़ाना: चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने और महत्त्वपूर्ण व्यापार मार्गों को सुरक्षित करने के लिये प्रमुख हिंद-प्रशांत देशों के साथ समुद्री गठबंधन को मज़बूत किये जाने की आवश्यकता है।
- मालदीव और मेडागास्कर जैसे द्वीपीय देशों के साथ सहयोग बढ़ाने से क्षेत्र में सामूहिक सुरक्षा एवं स्थिरता सुनिश्चित होगी।
- क्वाड के भीतर गहरे संबंधों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये तथा यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि रणनीतिक बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं, सुरक्षा साझेदारियों एवं बहुपक्षीय पहलों को प्राथमिकता दी जाए।
- समुद्री अवसंरचना और संपर्क का विस्तार: बंदरगाह अवसंरचना के विकास में तीव्रता, दक्षता, आधुनिक प्रौद्योगिकियों और अंतर्देशीय परिवहन के साथ निर्बाध संपर्क पर ध्यान केंद्रित किये जाने की आवश्यकता है।
- इसमें लॉजिस्टिक्स में सुधार और उच्च लागत को कम करने के लिये सागरमाला कार्यक्रम जैसी सुविधाओं को उन्नत करना शामिल है।
- घरेलू जहाज़ निर्माण और नवाचार को मज़बूत करना: प्रतिस्पर्द्धी वित्तपोषण, प्रौद्योगिकी अंगीकरण और अनुसंधान के माध्यम से क्षेत्र को प्रोत्साहित करके घरेलू जहाज़ निर्माण में नवाचार को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- इससे विदेशी जहाज़ों पर भारत की निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी, जिससे एक समुत्थानशील समुद्री उद्योग का निर्माण होगा।
- पर्यावरणीय स्थिरता पर ध्यान देना: शिपिंग उद्योग से कार्बन उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों को तीव्र करके भारत की संधारणीयता के प्रति प्रतिबद्धता के साथ समुद्री विकास को संरेखित किये जाने की आवश्यकता है।
- समुद्री सुरक्षा में सुधार: देश के समुद्री क्षेत्र की सुरक्षा के लिये निगरानी और मॉनीटरिंग क्षमताओं को बढ़ाया जाना चाहिये।
- क्षेत्रीय साझेदारों को रियल टाइम खुफिया जानकारी उपलब्ध कराने के लिये सूचना संलयन केंद्र - हिंद महासागर क्षेत्र (IFC-IOR) का विस्तार किया जाना चाहिये, जिससे सामूहिक समुद्री सुरक्षा में सुधार होगा।
निष्कर्ष:
हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की बढ़ती समुद्री भागीदारी इसकी क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक उद्देश्यों के साथ निकटता से जुड़ी हुई है। भारत का उद्देश्य समुद्री बुनियादी अवसंरचना को मज़बूत करके, नौसेना क्षमताओं को बढ़ाकर और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देकर, एक प्रमुख समुद्री शक्ति के रूप में अपनी भूमिका को महत्त्वपूर्ण बनाना है।