प्रश्न: भारतीय लघु चित्रकला के दरबारी कला से वैश्विक कलात्मक माध्यम में परिवर्तन पर चर्चा कीजिये और यह कैसे विभिन्न ऐतिहासिक अवधियों में सामाजिक-राजनीतिक आख्यानों को प्रतिबिंबित करती हैं, विचार कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारतीय लघु चित्रकला के संदर्भ में जानकारी देकर उत्तर दीजिये।
- ऐतिहासिक काल में लघु चित्रकला के परिवर्तन पर गहन अध्ययन प्रस्तुत कीजिये।
- तर्क दीजिये कि वे सामाजिक-राजनीतिक आख्यानों को किस प्रकार प्रतिबिंबित करते हैं।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भारतीय लघु चित्रकला, जो अपने जटिल विवरण और जीवंत रंगों के लिये जानी जाती है, अब दरबार-केंद्रित कला रूपों से विकसित होकर वैश्विक मान्यता प्राप्त कर चुकी है।
- पाल वंश के तहत 7वीं शताब्दी में विकसित हुई इन चित्रकलाओं ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक आख्यानों को प्रतिबिंबित किया है तथा सदियों से इनमें शैलीगत और विषयगत रूप से बदलाव आते रहे हैं।
मुख्य भाग:
ऐतिहासिक काल में लघु चित्रकला का रूपांतरण:
प्रारंभिक आधार:
- बौद्ध और जैन प्रभाव (7वीं-16वीं शताब्दी)
- पाल शाखा (बंगाल): बौद्ध ग्रंथों पर केंद्रित, ताड़ के पत्तों पर वक्र रेखाओं और मद्धम रंगों से चित्रित।
- उदाहरण: बौद्ध धर्म से प्रभावित विषयवस्तु, मामकि (बुद्ध का स्त्री अवतार) जैसे देवताओं का चित्रण।
- पश्चिमी भारतीय जैन शैली: गुजरात व राजस्थान में विकसित हुई, जिसमें कल्पसूत्र जैसी जैन पांडुलिपियों को चित्रित करने के लिये मोटी रेखाओं और चमकीले रंगों का प्रयोग किया गया।
- विषयों में धार्मिक भक्ति और सामाजिक मानदंडों पर ज़ोर दिया गया।
- मुगल काल (16वीं-18वीं शताब्दी)
- फारसी और भारतीय शैलियों का एकीकरण: मुगल सम्राटों के संरक्षण में, इस युग ने एक माध्यम के रूप में कागज़ और परिप्रेक्ष्य एवं छायाँकन जैसी यूरोपीय तकनीकों को पेश किया।
- विषय-वस्तु: दरबारी जीवन, शिकार के दृश्य और प्राकृतिक तत्त्व।
- उदाहरण: शाहजहाँ के राज्याभिषेक का लघुचित्र पादशाहनामा, जो शाही अधिकार और सांस्कृतिक भव्यता को दर्शाता है।
- प्रमुख विकास: जहाँगीर के अधीन कलात्मक परिष्कार, भारतीय रूपांकनों के साथ फारसी परिशुद्धता का सम्मिश्रण।
- प्रकृति और कूटनीति प्रमुख विषय थे, जैसा कि जहाँगीर और फारस के अब्बास प्रथम के मध्य देखा गया।
- मुगलोत्तर काल: क्षेत्रीय अनुकूलन
- राजस्थानी लघुचित्र (17वीं-18वीं शताब्दी): किशनगढ़, मेवाड़ और मारवाड़ जैसे अलग-अलग स्कूल विकसित हुए।
- विषय-वस्तु पौराणिक महाकाव्यों (जैसे- रामायण, महाभारत ) और कृष्ण-राधा के चित्रण के इर्द-गिर्द घूमती थी।
- पहाड़ी शैली: हिमाचल प्रदेश और जम्मू में विकसित हुई, जिसमें मुगल प्रभावों के साथ वैष्णव विषयों का संयोजन था।
- उदाहरण: कांगड़ा शैली के वन में राम और सीता गीतात्मक प्रकृतिवाद पर ज़ोर देते हैं।
- दक्कनी लघुचित्र: इस्लामी रूपांकनों और स्थानीय प्रभावों का अनूठा मिश्रण।
- विषयवस्तु कुरानिक रोशनी से लेकर रूमानी चित्रण तक थी, जैसा कि राग ककुभा में देखा गया है।
- आधुनिक पुनरुद्धार और वैश्विक मान्यता: लघु कला संग्रहालयों में संरक्षित है तथा राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में इसका सीमित प्रचलन है।
- वैश्विक प्रदर्शनियों, कला संग्राहकों और डिजिटल मीडिया ने भारतीय लघु चित्रकला को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर लाकर उनके कालातीत आकर्षण पर ज़ोर दिया है।
सामाजिक-राजनीतिक आख्यानों का प्रतिबिंब:
- धार्मिक आदर्शों का चित्रण: पाल और जैन शैलियों में आध्यात्मिक आख्यान तथा मध्यकालीन भारत में बौद्ध एवं जैन धर्म का प्रभाव प्रतिबिंबित होता था।
- दरबारी जीवन का दस्तावेज़ीकरण: मुगल लघुचित्रों में शाही घटनाओं, राजनीतिक कूटनीति और सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता का वर्णन किया गया है।
- उदाहरण के लिये, अकबर और जहाँगीर के चित्रों में प्रशासनिक परिष्कार एवं महानगरीय लोकाचार को दर्शाया गया है।
- क्षेत्रीय पहचान और स्थानीय आख्यान: राजस्थानी और पहाड़ी चित्रकलाओं ने रियासतों की सामाजिक-राजनीतिक स्वतंत्रता पर प्रकाश डाला।
- उदाहरण: किशनगढ़ चित्रकला ने राधा-कृष्ण विषयों के माध्यम से राजपूत मूल्यों को दर्शाया।
- सांस्कृतिक समन्वय: दक्कनी लघुचित्रों में इस्लामी, यूरोपीय और भारतीय शैलियों का एकीकरण किया गया, जो दक्कन सल्तनत की महानगरीय प्रकृति को प्रतिबिंबित करता है।
- उदाहरण: गोलकोंडा शासकों के चित्र क्षेत्रीय शक्ति का प्रतीक थे।
निष्कर्ष:
भारतीय लघु चित्रकला ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक और सांस्कृतिक विकास को दर्शाया है, जबकि बाह्य प्रभावों तथा स्थानीय बारीकियों को अपनाया है। धार्मिक पांडुलिपियों से लेकर शाही भव्यता के चित्रण तक वे भारत के दृश्य इतिहास के रूप में काम करते हैं। आज उनकी वैश्विक प्रशंसा इस जटिल कला रूप की कालातीत अपील को रेखांकित करती है, जो परंपरा और आधुनिकता के मिश्रण की विशेषता है।