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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    हाल ही में एक नए और महत्त्वाकांक्षी ज़िला मजिस्ट्रेट (डीएम) को एक ऐसे ज़िले में नियुक्त किया गया, जो गंभीर जल संकट और बार-बार होने वाली किसान आत्महत्याओं से त्रस्त था। अपने प्रारंभिक क्षेत्रीय निरीक्षण के दौरान, उन्होंने पाया कि उद्योगों द्वारा भूजल का बड़े पैमाने पर अवैध दोहन किया जा रहा था, जिसने ग्रामीण क्षेत्रों में संकट को और बढ़ा दिया। अनियमित भूजल दोहन पर प्रतिबंध लगाने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद, उद्योग संसाधनों का दोहन जारी रखते हैं, अक्सर जाँच से बचने के लिये स्थानीय अधिकारियों को रिश्वत देते हैं।

    एक दिन, एक औचक निरीक्षण के दौरान, डीएम ने जल निकासी कानूनों का उल्लंघन करने वाले एक प्रमुख औद्योगिक संयंत्र को सील कर दिया। इसके तुरंत बाद, उन्हें प्रभावशाली उद्योगपतियों से धमकियाँ मिलनी शुरू हो गईं और यहाँ तक कि वरिष्ठ नौकरशाहों से भी अप्रत्यक्ष दबाव का सामना करना पड़ा ताकि वे अपनी कार्रवाई को वापस ले लें। डीएम ने यह भी पाया कि अवैध गतिविधियाँ इन उद्योगों द्वारा नियोजित कई कम आय वाले श्रमिकों की आजीविका से जुड़ी हुई थीं, जिससे सामाजिक और नैतिक संघर्ष उत्पन्न हो रहा था। प्लांट बंद होने के खिलाफ बढ़ते सार्वजनिक विरोध के बीच, डीएम को एक कठिन निर्णय का सामना करना पड़ा—कानून को कायम रखते हुए दीर्घकालिक जल सुरक्षा सुनिश्चित करना या स्थानीय श्रमिकों और उनके परिवारों पर इसके तत्काल आर्थिक प्रभाव को प्राथमिकता देना।

    (क) डी.एम. के सामने आने वाली नैतिक दुविधाओं की पहचान कीजिये।

    (ख) इस स्थिति में डी.एम. के पास क्या विकल्प उपलब्ध हैं? 

    (ग) औचित्य के साथ सबसे उपयुक्त कार्यवाही का सुझाव दीजिये।

    13 Dec, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़

    उत्तर :

    परिचय: 

    पानी की कमी वाले ज़िले में एक नवनियुक्त ज़िला मजिस्ट्रेट (DM) को सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिबंध के बावजूद उद्योगों द्वारा बड़े पैमाने पर अवैध भूजल निष्कर्षण का पता चलने के बाद नैतिक और कानूनी दुविधा का सामना करना पड़ता है। एक प्रमुख उल्लंघनकर्त्ता को सील करने के बाद, DM को उद्योगपतियों की धमकियों और वरिष्ठ अधिकारियों से अपनी कार्रवाई को वापस लेने के लिये दबाव का सामना करना पड़ता है। स्थिति और अधिक जटिल हो जाती है क्योंकि अवैध गतिविधियाँ कम आय वाले श्रमिकों की आजीविका का भी समर्थन करती हैं, जिससे सार्वजनिक विरोध होता है। 

    मुख्य भाग: 

    (A) DM के सामने आने वाली नैतिक दुविधाएँ:

    • कानून को कायम रखना बनाम आर्थिक संकट का समाधान करना: अवैध जल निकासी पर रोक लगाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश को लागू करना बनाम इन कानूनों का उल्लंघन करने वाले उद्योगों में कार्यरत श्रमिकों की आजीविका पर विचार करना।
    • व्यावसायिक ईमानदारी बनाम राजनीतिक/नौकरशाही दबाव: प्रभावशाली उद्योगपतियों और वरिष्ठ अधिकारियों की धमकियों एवं दबाव के बावजूद निष्पक्षता बनाए रखना तथा कानून का पालन करना।
    • पर्यावरणीय स्थिरता बनाम तत्काल सामुदायिक मांगें: ज़िले के लिये दीर्घकालिक जल सुरक्षा सुनिश्चित करना बनाम औद्योगिक नौकरियों पर निर्भर प्रदर्शनकारी स्थानीय लोगों की अल्पकालिक मांगों को पूरा करना।
    • लोक कल्याण बनाम औद्योगिक जवाबदेही: कमज़ोर श्रमिकों के लिये सामाजिक स्थिरता और आर्थिक सहायता सुनिश्चित करना बनाम सार्वजनिक संसाधनों का शोषण करने वाले उद्योगों को दंडित करना।
    • व्यक्तिगत सुरक्षा बनाम सार्वजनिक उत्तरदायित्व: खतरों के बीच व्यक्तिगत सुरक्षा को प्राथमिकता देना बनाम सार्वजनिक हित की रक्षा के नैतिक कर्त्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध रहना।

    (B) DM के लिये उपलब्ध विकल्प:

    • कानूनों का सख्ती से पालन: अवैध उद्योगों को सील करना जारी रखा जा सकता है, भारी ज़ुर्माना लगाए जा सकते हैं और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू किये जा सकते हैं।
      • सकारात्मक पक्ष: कानून के शासन को सुदृढ़ करता है और भविष्य में उल्लंघन को रोकता है।
      • नकारात्मक पक्ष: इससे विरोध प्रदर्शन, नौकरी जा सकती है और राजनीतिक प्रतिक्रिया भी बढ़ सकती है।
    • विनियमन के तहत सशर्त पुनः परिचालन: उद्योगों का परिचालन पुनः शुरू करने की अनुमति केवल तभी दी जानी चाहिये जब वे जल-कुशल प्रौद्योगिकियाँ स्थापित करें, कानूनी परमिट प्राप्त करें तथा भूजल निष्कर्षण सीमाओं का पालन करें।
      • सकारात्मक पक्ष: पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक हितों के बीच संतुलन स्थापित करता है।
      • नकारात्मक पक्ष: उद्योग अनुपालन का विरोध कर सकते हैं या उपायों को अपनाने में विलंब कर सकते हैं।
    • हितधारकों को संवाद में शामिल करना: संधारणीय प्रथाओं पर ज़ोर देते हुए पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान खोजने के लिये उद्योगपतियों, श्रमिकों और स्थानीय नेताओं के बीच मध्यस्थता की जानी चाहिये।
      • सकारात्मक पक्ष: तनाव कम होता है और सहयोगात्मक शासन सुनिश्चित होता है।
      • नकारात्मक पक्ष: कानूनों के तत्काल प्रवर्तन को धीमा कर सकता है।
    • वैकल्पिक आजीविका प्रदान करना: विस्थापित श्रमिकों को सहायता प्रदान करने के लिये मनरेगा, कौशल विकास कार्यक्रमों और सामाजिक सुरक्षा पहलों जैसी राज्य तथा केंद्रीय योजनाओं के साथ सहयोग किया जाना चाहिये।
      • सकारात्मक पक्ष: श्रमिकों की शिकायतों का समाधान होता है और विरोध प्रदर्शन कम होते हैं।
      • नकारात्मक पक्ष: समय और प्रशासनिक प्रयास की आवश्यकता होती है।
    • संस्थागत और न्यायिक सहायता प्राप्त करना: राज्य प्राधिकारियों को स्थिति की रिपोर्ट की जानी चाहिये और भूजल कानूनों के सख्त कार्यान्वयन के लिये न्यायिक स्पष्टीकरण या सहायता प्राप्त की जानी चाहिये।
      • सकारात्मक पक्ष: यह DM को बाहरी दबावों से बचाता है और जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
      • नकारात्मक पक्ष: इससे समाधान में विलंब होगा तथा स्थानीय विरोधों का तत्काल समाधान नहीं हो सकेगा।
    • जन-जागरूकता अभियान:
      • जन समर्थन प्राप्त करने के लिये जल संकट और संधारणीय प्रथाओं के लाभों के बारे में जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिये।
      • सकारात्मक पक्ष: सामुदायिक समझ और सहयोग को प्रोत्साहित करता है।
      • नकारात्मक पक्ष: तनाव का तुरंत समाधान नहीं हो सकता।

    (C) औचित्य के साथ सबसे उपयुक्त कार्यवाही:

    चरण 1: कानून का दृढ़ता से पालन करना

    • अवैध संयंत्रों को बंद रखना चाहिये तथा उल्लंघनकर्त्ताओं के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही और दंड सहित प्रत्यक्ष कार्रवाई किया जाना चाहिये।
      • यह जवाबदेही का एक दृढ संदेश देता है और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश को बरकरार रखता है, जो दीर्घकालिक जल सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है।

    चरण 2: बहु-हितधारक संवाद आयोजित करना

    • उद्योगपतियों, स्थानीय नेताओं, श्रमिकों और पर्यावरण विशेषज्ञों को एक साथ लाकर संधारणीय संचालन के लिये रूपरेखा तैयार किया जाना चाहिये, जिसमें सख्त अनुपालन के तहत उद्योगों को सशर्त पुनः खोलना भी शामिल है।
      • हितधारकों के बीच विश्वास का निर्माण करता है तथा आर्थिक एवं पर्यावरणीय लक्ष्यों को संरेखित करता है।

    चरण 3: वैकल्पिक आजीविका कार्यक्रम लागू करना

    • प्रभावित श्रमिकों के लिये कौशल विकास कार्यक्रम, मनरेगा के तहत रोज़गार और वित्तीय सहायता योजनाएँ प्रदान करने के लिये राज्य एजेंसियों के साथ सहयोग किया जाना चाहिये।
      • इससे कमज़ोर परिवारों पर तत्काल आर्थिक प्रभाव कम होगा तथा सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन में कमी आएगी।

    चरण 4: विनियमन लागू करना और पारदर्शिता सुनिश्चित करना

    • उद्योगों को जल-बचत प्रौद्योगिकियों को अपनाने, भूजल उपयोग के लिये पारदर्शी निगरानी प्रणालियाँ स्थापित करने तथा स्व-रिपोर्टिंग तंत्र को प्रोत्साहित करने का निर्देश दिया जाना चाहिये।
      • दीर्घकालिक अनुपालन को बढ़ावा देता है और संधारणीय प्रथाओं को बढ़ावा देता है।

    चरण 5: उच्च अधिकारियों से सहायता लें

    • इस मुद्दे को राज्य और केंद्र स्तर तक ले जाना तथा प्रभावशाली हितधारकों के अनुचित दबाव को बेअसर करते हुए कानूनी एवं प्रशासनिक समर्थन सुनिश्चित करना।
      • DM की स्थिति को मज़बूत करता है और सुसंगत नीति प्रवर्तन सुनिश्चित करता है।

    चरण 6: जन-जागरूकता अभियान शुरू करना

    • जल संकट और संधारणीय संसाधन प्रबंधन के लाभों के बारे में समुदाय को शिक्षित किया जाना चाहिये।
      • कठिन निर्णयों के लिये जनता का समर्थन प्राप्त कर भविष्य में जल संरक्षण प्रयासों के लिये आम सहमति बनाना चाहिये।

    निष्कर्ष: 

    DM को आर्थिक और सामाजिक चिंताओं को दूर करने के लिये संतुलित एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए कानून को दृढ़ता से बनाए रखना चाहिये। भूजल नियमों का सख्त पालन, हितधारकों की भागीदारी, उद्योगों को सशर्त रूप से पुनः संचालन और वैकल्पिक आजीविका सहायता के साथ मिलकर तत्काल संकट का हल किया जा सकता है। यह दृष्टिकोण सामुदायिक शिकायतों को दूर करते हुए पर्यावरण संसाधनों की रक्षा करता है। यह न्याय और जवाबदेही में निहित नैतिक शासन का उदाहरण है।

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