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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न: यूरोपीय संघ की उभरती व्यापार और प्रौद्योगिकी नीतियों का भारत के सामरिक हितों पर प्रभाव का आकलन कीजिये तथा साथ ही सहयोग एवं संभावित संघर्ष के क्षेत्रों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    10 Dec, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • यूरोपीय संघ के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिये। 
    • यूरोपीय संघ की उभरती व्यापार और प्रौद्योगिकी नीतियों का भारत के सामरिक हितों पर पड़ने वाले प्रभाव का गहन अध्ययन प्रस्तुत कीजिये।  
    • सहयोग और संघर्ष के संभावित क्षेत्रों पर प्रकाश डालिये। 
    • उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय: 

    यूरोपीय संघ (EU), एक प्रमुख आर्थिक ब्लॉक और प्रौद्योगिकी एवं व्यापार में एक वैश्विक अभिकर्त्ता के रूप में, वैश्विक भूराजनीति तथा अर्थशास्त्र को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है। इसकी विकसित व्यापार और प्रौद्योगिकी नीतियों का भारत के लिये दूरगामी प्रभाव है, जो द्विपक्षीय व्यापार, डिजिटल बुनियादी अवसंरचना, डेटा शासन तथा स्संधरणीयता जैसे क्षेत्रों को प्रभावित करता है।

    मुख्य भाग:

    यूरोपीय संघ की विकासशील व्यापार और प्रौद्योगिकी नीतियों का भारत के सामरिक हितों पर प्रभाव: 

    • द्विपक्षीय व्यापार और आर्थिक संबंध:
      • अवसर: यूरोपीय संघ भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। व्यापार बाधाओं को कम करने और बाज़ार पहुँच बढ़ाने जैसे नीतिगत बदलावों से फार्मास्यूटिकल्स, IT और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों को बढ़ावा मिल सकता है।
      • चुनौतियाँ: पर्यावरण, श्रम और उत्पाद गुणवत्ता पर यूरोपीय संघ के कड़े मानकों के कारण भारतीय निर्यातकों के लिये अनुपालन लागत बढ़ सकती है।
    • प्रौद्योगिकी और डिजिटल संप्रभुता:
      • अवसर: भारत का IT क्षेत्र AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और 5G जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में सहयोग से लाभान्वित होगा।
        • प्रौद्योगिकी साझेदारी को बढ़ावा देने वाली यूरोपीय संघ की नीतियाँ भारत के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ कर सकती हैं।
      • चुनौतियाँ: यूरोपीय संघ के सख्त डेटा संरक्षण नियम (GDPR) और डिजिटल संप्रभुता नीतियाँ सीमा पार डेटा प्रवाह व स्थानीयकरण में भारत के हितों के साथ संघर्षरत हो सकती हैं।
        • प्रौद्योगिकी अंतरण पर प्रतिबंध भारत के स्वदेशीकरण प्रयासों में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं।
    • हरित परिवर्तन और स्थिरता:
      • अवसर: भारत स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं के लिये हरित प्रौद्योगिकी और नवीकरणीय ऊर्जा पर यूरोपीय संघ के फोकस का लाभ उठा सकता है।
      • चुनौतियाँ: यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा कर भारत के इस्पात और सीमेंट जैसे कार्बन-गहन उद्योगों को प्रभावित कर सकता है।
        • जलवायु वित्तपोषण प्रतिबद्धताओं पर मतभेद से टकराव उत्पन्न हो सकता है।

    सहयोग के संभावित क्षेत्र

    • डिजिटल अवसंरचना विकास: सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखलाओं सहित सुरक्षित और अंतर-संचालनीय डिजिटल पारिस्थितिकी प्रणालियों में साझेदारी।
    • हरित हाइड्रोजन और नवीकरणीय ऊर्जा: हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी का सह-विकास, भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता और यूरोपीय संघ की तकनीकी विशेषज्ञता का लाभ उठाना।
    • स्वास्थ्य देखभाल और औषधि सहयोग: किफायती स्वास्थ्य देखभाल समाधान के लिये भारत के जेनेरिक दवा उत्पादन और यूरोपीय संघ की अनुसंधान क्षमता का लाभ उठाना।
    • अंतरिक्ष सहयोग: उपग्रह विकास, अंतरिक्ष अन्वेषण तथा आपदा प्रबंधन एवं कृषि में अनुप्रयोगों पर सहयोग करना।

    संघर्ष के संभावित क्षेत्र

    • कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM): इसे एक व्यापार बाधा के रूप में देखा जाता है, जो भारत के इस्पात और सीमेंट जैसे कार्बन-गहन निर्यातों को प्रभावित करता है।
    • डेटा और डिजिटल संप्रभुता: यूरोपीय संघ के सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (GDPR) बनाम भारत की डेटा स्थानीयकरण नीतियों के कारण सीमा पार डेटा प्रवाह पर टकराव हो सकता है।
    • भू-राजनीतिक मतभेद: जबकि भारत नियंत्रण चाहता है, यूरोपीय संघ चीन के साथ महत्त्वपूर्ण आर्थिक संबंध बनाए रखता है, जिससे हिंद-प्रशांत रणनीतियों में संभावित असंगतता उत्पन्न हो सकती है।
    • प्रौद्योगिकी पहुँच और बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR): उच्च-स्तरीय प्रौद्योगिकी अंतरण पर यूरोपीय संघ के प्रतिबंध और कठोर IPR मानदंड, आत्मनिर्भर भारत के तहत स्वदेशी विकास के लिये भारत के प्रयासों के साथ असंगतता उत्पन्न कर सकते हैं।

    निष्कर्ष

    यूरोपीय संघ की उभरती व्यापार और प्रौद्योगिकी नीतियाँ भारत के रणनीतिक हितों के लिये अवसर एवं चुनौतियाँ दोनों प्रस्तुत करती हैं। प्रौद्योगिकी, जलवायु परिवर्तन और सागरीय सुरक्षा जैसे आपसी हितों के क्षेत्रों का लाभ उठाकर, व्यापार व डेटा नीतियों में मतभेदों को दूर करते हुए, भारत यूरोपीय संघ के साथ अपनी साझेदारी को सुदृढ़ कर सकता है।

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