प्रश्न: चुनावी शुचिता की रक्षा और संवर्द्धन में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के संदर्भ में जानकारी देकर उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- चुनावी अखंडता सुनिश्चित करने और चुनावी कदाचार को रोकने में RPA, 1951 के प्रमुख प्रावधानों पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
- यह भी सुझाइये कि इसे और किस प्रकार बढ़ाया जा सकता है।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RPA) भारत के लोकतांत्रिक संरचना की आधारशिला है, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करता है। यह चुनाव से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों का पूरक है, चुनावी कदाचार को दूर करने और चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता को बनाए रखने के लिये एक सुदृढ़ कानूनी तंत्र प्रदान करता है।
मुख्य भाग:
चुनावी अखंडता सुनिश्चित करने में जन प्रतिनिधि कानून, 1951 के प्रमुख प्रावधान:
- चुनाव संचालन का विनियमन: चुनाव और उप-चुनावों के संचालन के लिये एक रूपरेखा प्रदान करता है, जिससे चुनावी प्रक्रिया का सुचारु संचालन सुनिश्चित होता है।
- यह विधेयक चुनाव आयोग को चुनावों का पर्यवेक्षण, निर्देशन और नियंत्रण करने का अधिकार देता है।
- प्रशासनिक कार्यप्रणाली: मतदाता सूची तैयार करने, मतदान एवं मतगणना के लिये प्रक्रियाएँ और तंत्र स्थापित करती है।
- अधिकारियों को मानकीकृत प्रक्रियाओं का पालन करने का आदेश दिया जाता है, जिससे मनमानी कम होगी।
- राजनीतिक दलों का पंजीकरण: पंजीकरण के लिये मानदंड निर्दिष्ट कर यह सुनिश्चित किया जाता है कि केवल वैध दल ही भाग लें।
- इससे पार्टी गतिविधियों की जाँच संभव हो सकेगी तथा चुनावी प्रक्रिया का दुरुपयोग रोका जा सकेगा।
- उम्मीदवारों के लिये योग्यताएँ और अयोग्यताएँ: चुनाव लड़ने के लिये योग्यताएँ निर्दिष्ट करती हैं, जैसे न्यूनतम आयु और निर्वाचन क्षेत्र की आवश्यकताएँ।
- कुछ अपराधों में दोषी पाए गए उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित करके राजनीति के अपराधीकरण को रोकता है।
- भ्रष्ट आचरण के विरुद्ध प्रावधान: इसमें रिश्वतखोरी, अनुचित प्रभाव, छद्मवेश धारण और सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग सहित भ्रष्ट आचरण को परिभाषित किया गया है।
- इस तरह की गतिविधियों में शामिल उम्मीदवारों और दलों को दंडित करना तथा उन पर रोक लगाना शामिल है।
- चुनावी विवादों का समाधान: चुनाव से संबंधित विवादों को नामित अदालतों के माध्यम से निपटाने के लिये कानूनी उपाय प्रदान करता है।
- गैर-कानूनी उम्मीदवारों को सत्ता के पदों पर आसीन होने से रोकता है।
चुनावी कदाचार रोकना:
जनप्रतिनिधि कानून, 1951 चुनावी कदाचारों को नियंत्रित करने और रोकने में अहम भूमिका निभाता है:
- अयोग्यता प्रावधान: यह सुनिश्चित करता है कि गंभीर अपराधों के लिये दोषी ठहराए गए व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोका जाए, जोकि लिली थॉमस बनाम भारत संघ मामले, 2013 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुरूप है।
- व्यय सीमा को अनिवार्य बनाकर वित्तीय संसाधनों के दुरुपयोग से सुरक्षा प्रदान की जाती है।
- पारदर्शिता उपाय: उम्मीदवारों को नामांकन के समय अपनी संपत्ति, देनदारियों और आपराधिक रिकॉर्ड का खुलासा करना अनिवार्य है।
- सूचना को छिपाने से रोकता है, जवाबदेही को बढ़ावा देता है।
- चुनावी अपराध: मतदाताओं को डराना-धमकाना, छद्मवेश धारण करना और मतदान केंद्र पर कब्ज़ा करना जैसे कार्यों को अपराध माना जाता है।
- अधिकारियों को अपराधियों के विरुद्ध त्वरित कार्रवाई करने का अधिकार देता है।
- व्यय की निगरानी: चुनावी व्यय की सीमा सभी उम्मीदवारों के लिये समान अवसर सुनिश्चित करती है।
- चुनावों में धन के अनुचित प्रभाव को कम करता है।
चुनावी शुचिता को और भी सुदृढ़ करने के लिये अधिनियम में सुधार किया जा सकता है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण: डिजिटल मतदाता सूची और ऑनलाइन निगरानी प्रणालियों के माध्यम से पारदर्शिता बढ़ाना।
- चुनाव सुधार: चुनाव सुधारों पर दिनेश गोस्वामी समिति जैसी समितियों की सिफारिशों को लागू करना।
- जन जागरूकता: मतदाता जागरूकता बढ़ाने के लिये चुनावी प्रक्रिया में नागरिकों को उनके अधिकारों और ज़िम्मेदारियों के बारे में शिक्षित करना।
निष्कर्ष
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 चुनावों के संचालन को विनियमित करके, कदाचारों पर अंकुश लगाकर और जवाबदेही बढ़ाकर चुनावी अखंडता सुनिश्चित करने के लिये एक सुदृढ़ विधिक फ्रेमवर्क के रूप में कार्य करता है। इसके कार्यान्वयन को सुदृढ़ करना और उभरती चुनौतियों का समाधान करना भारत के लोकतांत्रिक लोकाचार को बनाए रखता है।