प्रश्न: भारत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने में हस्तशिल्प और पारंपरिक कारीगर समुदायों की महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत पर प्रकाश डालते हुए उत्तर दीजिये।
- सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में हस्तशिल्प और कारीगर समुदायों की भूमिका पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
- प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत इसकी विविध हस्तशिल्प और कारीगर परंपराओं में गहराई से निहित है, जो देश के ऐतिहासिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक सार का प्रतिनिधित्व करती है। ये शिल्प न केवल भारत की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हैं बल्कि इसके संरक्षण एवं वैश्विक मान्यता के माध्यम के रूप में भी कार्य करते हैं।
मुख्य भाग:
सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में हस्तशिल्प और कारीगर समुदायों की भूमिका:
- पारंपरिक ज्ञान और तकनीकों की सुरक्षा
- हस्तशिल्प में पारंपरिक कौशल का समावेश होता है जो पीढ़ियों से चला आ रहा है, जैसे- बनारसी रेशमी साड़ियों की जटिल बुनाई या ओडिशा में पट्टचित्र चित्रकला की कारीगरी।
- कश्मीरी पश्मीना कारीगर और कच्छ कढ़ाई श्रमिक जैसे समुदाय अपने शिल्प के माध्यम से अद्वितीय क्षेत्रीय पहचान को संरक्षित करते हैं।
- स्वदेशी सामग्री और स्थिरता को पुनर्जीवित करना
- कई हस्तशिल्पों में स्थानीय रूप से उपलब्ध, पर्यावरण-अनुकूल सामग्रियों का उपयोग किया जाता है, जिससे स्वदेशी प्रथाओं को जीवित रखा जाता है, जैसे कि असम के जापी बनाने में बाँस का प्रयोग या पश्चिम बंगाल के बिष्णुपुर के टेराकोटा शिल्प में मिट्टी का उपयोग।
- ये टिकाऊ पद्धतियाँ भारत के प्रकृति के प्रति सम्मान को उजागर करती हैं, जो इसकी सांस्कृतिक प्रकृति का एक प्रमुख पहलू है।
- लोककथाओं, पौराणिक कथाओं और अनुष्ठानों का संरक्षण
- हस्तशिल्प में प्रायः पौराणिक कथाओं और लोककथाओं की कहानियाँ दर्शाई जाती हैं। उदाहरण के लिये, बिहार की मधुबनी पेंटिंग रामायण और महाभारत की कहानियों को दर्शाती हैं, जो भारत की आध्यात्मिक परंपराओं के दृश्य वर्णन के रूप में काम करती हैं।
- त्योहारों और अनुष्ठानों के माध्यम से सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा
- तमिलनाडु में कोलम कला और दिवाली के दौरान रंगोली जैसे पारंपरिक शिल्प, त्योहारों से जुड़ी समुदाय-केंद्रित कला को प्रदर्शित करते हैं तथा साझा पहचान व अपनेपन की भावना को सुदृढ़ करते हैं।
- क्षेत्रीय विविधता को बढ़ावा देना
- हस्तशिल्प भारत की सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित करते हैं, जैसे: उत्तर प्रदेश की जरदोजी कढ़ाई, पंजाब की फुलकारी और आंध्र प्रदेश की लेपाक्षी कलमकारी।
- यह क्षेत्रीय विशिष्टता बहुलवादी राष्ट्रीय पहचान में योगदान देती है और वैश्विक रुचि को आकर्षित करती है।
- सामाजिक सामंजस्य और आर्थिक विकास में योगदान
- ओडिशा में रघुराजपुर या गुजरात में कच्छ जैसे कारीगर समूह सांस्कृतिक केंद्रों के रूप में कार्य करते हैं तथा सामुदायिक भागीदारी और गौरव को बढ़ावा देते हैं।
- हस्तशिल्प आजीविका प्रदान करते हैं, ग्रामीण-शहरी प्रवास को कम करते हैं और परंपराओं को जीवित रखते हैं।
- उदाहरण के लिये, खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) की सफलता समुदाय-संचालित विकास का प्रमाण है।
- वैश्विक सांस्कृतिक कूटनीति
- चिकनकारी कढ़ाई और जयपुर ब्लू पॉटरी जैसे भारतीय हस्तशिल्प को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे भारतीय परंपराओं के संदर्भ में जागरूकता बढ़ रही है तथा वैश्विक सांस्कृतिक आदान-प्रदान समृद्ध हो रहा है।
हस्तशिल्प और कारीगर समुदायों के संरक्षण में चुनौतियाँ:
- कारीगरों की घटती संख्या: कम पारिश्रमिक और पेशेवर सम्मान की कमी के कारण युवा पीढ़ी कारीगरों से दूर जा रही है।
- मशीन-निर्मित वस्तुओं से प्रतिस्पर्द्धा: बड़े पैमाने पर उत्पादन पारंपरिक हस्तशिल्प के बाज़ार को कमज़ोर करता है।
- जागरूकता और मांग का अभाव: कई शिल्प सीमित घरेलू और वैश्विक दृश्यता के कारण प्रभावित होते हैं (जैसे- टोडा कढ़ाई, डोकरा कला)।
- सामग्री की कमी और बढ़ती लागत: रेशम या मिट्टी जैसी प्राकृतिक सामग्रियों पर निर्भरता बढ़ती लागत और पर्यावरणीय चुनौतियों के कारण खतरे में है।
आगे की राह
- संस्थागत समर्थन और नीतिगत हस्तक्षेप: वित्तीय सहायता, बुनियादी अवसंरचना और कौशल प्रशिक्षण के लिये अंबेडकर हस्तशिल्प विकास योजना जैसी योजनाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- पारंपरिक ज्ञान को पुनर्जीवित करना: युवाओं को जोड़ने के लिये NEP- 2020 के पाठ्यक्रम में स्थानीय शिल्प को शामिल किया जाना चाहिये। मधुबनी कला और कनी शॉल जैसे शिल्प के लिये डिजिटल अभिलेखागार विकसित किया जाना चाहिये।
- बाज़ार एकीकरण: GI टैग का विस्तार करने के साथ ही बनारसी साड़ियों और दार्जिलिंग चाय जैसे उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- कारीगरों तक पहुँच के लिये अमेज़न कारीगर जैसे प्लेटफॉर्म का लाभ उठाए जाने की आवश्यकता है।
- संधारणीय अभ्यास: चन्नपटना खिलौनों जैसे उत्पादों में प्राकृतिक रंगों एवं संधारणीय सामग्रियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। वैश्विक अपील के लिये पर्यावरण-अनुकूल तकनीकों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- कारीगर कल्याण: कारीगरों के लिये प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन और स्वास्थ्य लाभ का विस्तार किया जाना चाहिये।।
- सांस्कृतिक पर्यटन: रघुराजपुर जैसे शिल्पी गाँवों को पर्यटक आकर्षण के रूप में विकसित किया जाना चाहिये। क्षेत्रीय शिल्प को वैश्विक स्तर पर प्रदर्शित करने के लिये सूरजकुंड मेले जैसे और अधिक आयोजन किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
भारत के हस्तशिल्प और कारीगर समुदायों को संरक्षित करने के लिये नीति, बाज़ार एकीकरण, कौशल आधुनिकीकरण एवं जन जागरूकता से जुड़े बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। संसाधनों, मान्यता और अवसरों के साथ इन समुदायों को सशक्त बनाना भारत की सांस्कृतिक विरासत की निरंतरता सुनिश्चित करता है, साथ-ही-साथ सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।