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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    सरकारी बुनियादी ढाँचा परियोजना में वरिष्ठ प्रबंधक रवि पर क्षेत्रीय कनेक्टिविटी के लिये महत्त्वपूर्ण हाईवे निर्माण को निर्धारित समय-सीमा के भीतर पूरा करने का भारी दबाव है। भूमि अधिग्रहण से जुड़ी समस्याओं और ठेकेदार की अक्षमता के कारण परियोजना में हो रही देरी पर उच्च अधिकारियों ने कड़ी आलोचना की है, साथ ही समय पर लक्ष्य हासिल न करने पर निलंबन की चेतावनी भी दी है। इसी दौरान, एक निजी सलाहकार रवि से संपर्क करता है और उससे आगामी नियामक मंज़ूरी से जुड़ी अंदरूनी जानकारी साझा करता है। सलाहकार का दावा है कि इससे मंज़ूरी प्रक्रिया में तेज़ी आ सकती है, बशर्ते रवि सलाहकार को अनुकूल शर्तों पर काम करने के लिये तैयार करे। साथ ही, रवि को उप-ठेकेदार के चालान में वित्तीय अनियमितताएँ पता चलती हैं, हालाँकि वह इस दुविधा में है कि अगर वह इस पर कार्रवाई करता है, तो इससे परियोजना में और देरी हो सकती है और उसकी टीम तथा संगठन को नकारात्मक प्रचार का सामना करना पड़ सकता है।

    रवि अब परस्पर विरोधी दायित्वों के बीच उलझा हुआ है— अपनी व्यक्तिगत ईमानदारी को बरकरार रखना, परियोजना को समय पर पूरा करना और साथ ही अपने कॅरियर की रक्षा करना। रवि को अपने विकल्पों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करना होगा, जहाँ परियोजना की विश्वसनीयता और अपनी पेशेवर प्रतिष्ठा को बनाए रखते हुए, नैतिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता एवं संगठनात्मक दक्षता की आवश्यकता के बीच संतुलन स्थापित करना आवश्यक है।

    (a) इस स्थिति में अनिल कुमार को जिन नैतिक दुविधाओं का सामना करना पड़ता है, उनका अभिनिर्धारण कर विस्तार से चर्चा कीजिये।
    (b) अनिल कुमार के सामने मौजूद विभिन्न कार्यवाही विकल्पों का विश्लेषण कीजिये और उनके पक्ष और विपक्ष का मूल्यांकन कीजिये।
    (c) अनिल कुमार के लिये सबसे नैतिक और व्यावसायिक रूप से उपयुक्त कार्यवाही की सिफारिश करते हुए उनकी स्थिति का गहन विश्लेषण कीजिये।

    06 Dec, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़

    उत्तर :

    परिचय: 

    रवि एक महत्त्वपूर्ण राजमार्ग निर्माण परियोजना की समय-सीमा को पूरा करने के दबाव में है, भूमि संबंधी मुद्दों और ठेकेदार की अक्षमता के कारण विलंब का सामना कर रहा है। एक निजी सलाहकार आकर्षक शर्तों के बदले विनियामक अनुमोदन के लिये अंदरूनी सूचना प्रदान करता है, जिससे रवि अपनी ईमानदारी से समझौता करने के लिये प्रेरित होता है। 

    • इसके साथ ही, रवि को उप-ठेकेदार के बीजकों (Invoices) में वित्तीय अनियमितताएँ भी पता चलती हैं, लेकिन उसे डर है कि इन पर ध्यान न देने से परियोजना में और विलंब हो सकता है। 

    (a) रवि के समक्ष नैतिक दुविधाएँ

    • ईमानदारी बनाम सुविधा: क्या परामर्शदाता के अनैतिक प्रस्ताव को अस्वीकार करके व्यक्तिगत ईमानदारी कायम रखी जाए या परियोजना में तेज़ी लाने और समय-सीमा को पूरा करने के लिये उसे स्वीकार किया जाए।
    • पारदर्शिता बनाम संगठनात्मक दबाव: क्या उपठेकेदार के बीजक/बिल में वित्तीय अनियमितताओं को उजागर करना चाहिये, जिससे विलंब और आलोचना का जोखिम उठाना पड़े या परियोजना की समय-सीमा बनाए रखने के लिये उन्हें अनदेखा करना है।
    • कॅरियर सुरक्षा बनाम नैतिक सिद्धांत: निलंबन और कॅरियर को होने वाले नुकसान के भय को नैतिक रूप से कार्य करने एवं पेशेवर मानकों को बनाए रखने के दायित्व के साथ संतुलित करना।
    • लोक कल्याण बनाम नैतिक शासन: नैतिक चिंताओं को दूर करने के लिये परियोजना में विलंब करने से क्षेत्रीय संपर्क में बाधा उत्पन्न हो सकती है, जिससे लोक कल्याण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
    • अल्पकालिक दक्षता बनाम दीर्घकालिक विश्वसनीयता: अनैतिक प्रथाओं में लिप्त होकर दीर्घकालिक संस्थागत और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा की तुलना में तत्काल परियोजना पूर्णता को प्राथमिकता देना।
    • जवाबदेही बनाम व्यावहारिकता: क्या प्रणालीगत मुद्दों के कारण होने वाली विलंब के लिये पूरी जवाबदेही ली जाए, दंडात्मक कार्रवाई का जोखिम लिया जाए, या व्यक्तिगत और टीम हितों की रक्षा के लिये दोष दूसरे पर डाला जाए।
    • हितों का टकराव बनाम सार्वजनिक विश्वास: आकर्षक शर्तों पर परामर्शदाता को नियुक्त करने से सार्वजनिक विश्वास एवं पारदर्शिता से समझौता होता है, जबकि प्रस्ताव को अस्वीकार करने से परियोजना में और अधिक बाधाएँ आ सकती हैं।

    (b) संभावित कार्यवाही और मूल्यांकन

    विकल्प 1: सलाहकार के प्रस्ताव को स्वीकार करना और अनुमोदन में तीव्रता लाना 

    • लाभ:
      • शीघ्र अनुमोदन से परियोजना की समयसीमा में तीव्रता लाई जा सकती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि समय-सीमाएँ पूरी हों।
      • उच्च अधिकारी संतुष्ट हैं, जिससे रवि पर दबाव कम हो गया है और उसका कॅरियर सुरक्षित हो गया है।
    • दोष:
      • यह रवि की नैतिक निष्ठा से समझौता है जो भ्रष्टाचार को समर्थन देने की एक हानिकारक मिसाल कायम कर सकता है।
      • यदि यह बात उजागर हो गई तो रवि की व्यावसायिक प्रतिष्ठा के साथ-साथ परियोजना में जनता के विश्वास को भी अपूरणीय क्षति पहुँचेगी।
      • इसके बाद कानूनी और अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है, जिसके दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं।

    विकल्प 2: वित्तीय अनियमितताओं की रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को देना और औपचारिक रूप से आगे बढ़ना

    • लाभ:
      • यह पारदर्शिता और जवाबदेही के प्रति रवि की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
      • इससे भ्रष्टाचार और सार्वजनिक धन के दुरुपयोग के खिलाफ एक ठोस संकेत मिलता है तथा संस्थागत विश्वसनीयता बढ़ती है।
    • दोष:
      • विलंबित जाँच से परियोजना में और भी विलंब हो सकता है।
      • इससे ठेकेदारों और अन्य हितधारकों के साथ तनाव बढ़ सकता है, जिससे परिचालन संबंधी अकुशलता का खतरा उत्पन्न हो सकता है।
      • उच्च अधिकारी रवि को समस्या का समाधान करने के बजाय ज़िम्मेदारी से भागने वाला मान सकते हैं।

    विकल्प 3: अनैतिक प्रस्तावों को अस्वीकार करते हुए भूमि अधिग्रहण और ठेकेदार की अक्षमताओं को सक्रियता से संबोधित करना 

    • लाभ:
      • नैतिक मानकों को बनाए रखना, रवि की प्रतिष्ठा और व्यावसायिक अखंडता की रक्षा करना।
      • प्रणालीगत समाधान और जवाबदेही पर ध्यान केंद्रित करके दीर्घकालिक हितधारक विश्वास को बढ़ाता है।
      • इससे रवि की विश्वसनीयता एक समस्या-समाधानकर्त्ता, जो नैतिक रूप से चुनौतियों का सामना कर सकता है, के रूप में स्थापित होती है
    • दोष:
      • इसमें बहुत प्रयास और समय की आवश्यकता होती है, जिसके परिणामस्वरूप परियोजना में विलंब हो सकता है।
      • यदि नैतिक रुख के बावजूद समय-सीमाएँ चूक जाती हैं तो रवि का कॅरियर अभी भी जोखिम में पड़ सकता है।

    विकल्प 4: नैतिक समाधानों के लिये उच्च-स्तरीय समर्थन प्राप्त करना और नवीन समाधान प्रस्तावित करना

    • लाभ:
      • संस्थागत मार्गदर्शन के साथ अपने कार्यों को संरेखित करके रवि की स्थिति को सुदृढ़ करता है।
      • यह प्रणालीगत विलंब को दूर करने के लिये अंतरिम नीतियों या तीव्र समाधान तंत्र जैसे नवीन विचारों को प्रस्तावित करने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
      • उच्च अधिकारी जवाबदेही साझा करते हुए रवि को व्यक्तिगत प्रतिक्रिया से बचाते हैं।
    • दोष:
      • उच्च अधिकारियों के सहयोग और सक्रिय भागीदारी पर निर्भर करता है, जिसकी गारंटी नहीं दी जा सकती।
      • संस्थागत जड़ता के कारण समाधान की प्रक्रिया धीमी हो सकती है, जिससे आगे और अधिक विलंब होने का खतरा बढ़ सकता है।

    (c) अनुशंसित कार्यवाही: 

    • नैतिक विचारों, संगठनात्मक दक्षता और व्यावसायिक व्यावहारिकता के बीच संतुलन बनाने के लिये रवि को विकल्प 4 के प्रमुख तत्त्वों के साथ विकल्प 3 को अपनाना चाहिये।

    उठाए जाने वाले कदम:

    • परामर्शदाता के प्रस्ताव को अस्वीकार करना: परामर्शदाता से स्पष्ट रूप से कहना चाहिये कि अनैतिक कार्यवाहियों को स्वीकार नहीं किया जाएगा, जिससे एक प्रभावी व्यक्तिगत और व्यावसायिक मिसाल कायम होगी।
    • वित्तीय अनियमितताओं को रणनीतिक ढंग से संबोधित करना: उपठेकेदारों के बीजकों की समीक्षा के लिये एक तटस्थ, समयबद्ध लेखा परीक्षा दल का गठन किया जाना चाहिये तथा यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि जाँच के कारण चल रहे कार्य में बाधा न आए।
      • अनियमितताओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिये भविष्य के बीजकों के लिये कड़ी जाँच लागू किया जाना चाहिये।
    • भूमि अधिग्रहण और ठेकेदार के कार्य निष्पादन में सक्रियतापूर्वक तेज़ी लाना: त्वरित वार्ता या मुआवज़ा पुनर्मूल्यांकन जैसे सरकारी तंत्रों का लाभ उठाकर भूमि विवादों को सुलझाने के लिये स्थानीय प्रशासन के साथ सहयोग किया जाना चाहिये।
      • ठेकेदारों के साथ नियमित रूप से निष्पादन समीक्षा आयोजित की जानी चाहिये, विलंब के लिये दंड का प्रावधान किया जाना चाहिये तथा जहाँ संभव हो कार्यकुशलता को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • तीव्र अनुमोदन के लिये नवीन दृष्टिकोण: नियामक मंज़ूरी में बाधाओं को कम करने के लिये उच्च अधिकारियों को अंतरिम समाधान जैसे: समवर्ती अनुमोदन या डिजिटल तंत्र का प्रस्ताव दिया जाना चाहिये।
    • उच्च अधिकारियों के साथ पारदर्शी संचार: प्रगति, चुनौतियों और उनके समाधान के लिये उठाए जा रहे कदमों के संदर्भ में उच्च अधिकारियों को नियमित रूप से जानकारी दी जानी चाहिये।
      • प्रणालीगत मुद्दों के रूप में चुनौतियों से निपटना चाहिये, जिनके लिये संस्थागत कार्रवाई की आवश्यकता है, न कि व्यक्तिगत कमियों की।
    • हितधारक सहयोग पर ध्यान केंद्रित करना: परियोजना में विलंब के संदर्भ में खुले संचार के माध्यम से, नैतिक शासन और दीर्घकालिक लाभ पर ज़ोर देते हुए, आम जनता सहित प्रमुख हितधारकों को शामिल किया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष: 

    रवि को परियोजना को पूरा करने के लिये चुनौतियों का व्यावहारिक रूप से सामना करते हुए नैतिक सिद्धांतों को बनाए रखना चाहिये। अनैतिक प्रस्तावों को अस्वीकार करके, अनियमितताओं को रणनीतिक रूप से नियंत्रित करके और विलंब को सक्रिय रूप से कम करके रवि अपनी ईमानदारी एवं विश्वसनीयता की रक्षा कर सकता है। पारदर्शी संचार और अभिनव दृष्टिकोण नेतृत्व का प्रदर्शन किया जाना चाहिये, परियोजना की प्रतिष्ठा तथा दीर्घकालिक संगठनात्मक लक्ष्यों की रक्षा की जानी चाहिये। यह संतुलित रणनीति सुनिश्चित करती है कि रवि नैतिक मूल्यों से समझौता किये बिना अपने पेशेवर कर्त्तव्यों को पूरा करे।

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