प्रश्न: सार्वजनिक संस्थानों में गैर-पक्षपातपूर्णता के क्षरण के संभावित दीर्घकालिक प्रभावों का मूल्यांकन कीजिये। यह लोकतांत्रिक शासन की प्रभावशीलता और नागरिकों के संस्थागत विश्वास को कैसे प्रभावित करता है? (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- सार्वजनिक संस्थाओं में गैर-पक्षपात के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- गैर-पक्षपातपूर्ण भावना के क्षरण के परिणामों पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
- लोकतांत्रिक शासन और सार्वजनिक विश्वास पर इसके प्रभाव पर प्रकाश डालिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
सार्वजनिक संस्थाओं में गैर-पक्षपातपूर्ण रवैया राजनीतिक या वैचारिक झुकाव से ऊपर उठकर निष्पक्षता एवं संवैधानिक मूल्यों का पालन सुनिश्चित करता है। लोकतंत्र में संस्थाओं की विश्वसनीयता, स्वतंत्रता और अखंडता बनाए रखने के लिये यह बहुत ज़रूरी है।
- इसका क्षरण शासन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है, जनता में अविश्वास को बढ़ा सकता है, तथा लोकतांत्रिक फ्रेमवर्क को कमज़ोर कर सकता है।
मुख्य भाग:
गैर-पक्षपातपूर्ण भावना के क्षरण के परिणाम
- संस्थागत अखंडता को कमज़ोर करना: राजनीतिक पूर्वाग्रह से प्रभावित होने पर सार्वजनिक संस्थाएँ निष्पक्ष रूप से कार्य करने की अपनी क्षमता खो देती हैं।
- उदाहरण: राजनीतिक कारणों से लोक सेवकों के बार-बार स्थानांतरण से निर्णय लेने में उनकी स्वायत्तता और प्रभावशीलता समाप्त हो जाती है।
- कानून के शासन को कमज़ोर करना: पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण से कानूनों का चयनात्मक अनुप्रयोग हो सकता है, जिससे कानून के समक्ष समानता का सिद्धांत कमज़ोर हो सकता है।
- उदाहरण: विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के आरोप में कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ प्रतिशोध की धारणा उत्पन्न कर सकती हैं, जिससे न्याय में विश्वास कमज़ोर हो सकता है।
- नियंत्रण और संतुलन का क्षरण: न्यायपालिका, चुनाव आयोग और CAG जैसी संस्थाएँ सरकार को जवाबदेह बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- राजनीतिकरण से स्वतंत्र निगरानीकर्त्ताओं के रूप में उनकी भूमिका कमज़ोर हो सकती है।
- उदाहरण: चुनावी सुधारों या न्यायिक नियुक्तियों में पक्षपात के आरोप उनकी विश्वसनीयता को नुकसान पहुँचाते हैं।
- व्यावसायिकता में गिरावट: पात्रता और सामर्थ्य राजनीतिक निष्ठा के आगे कम पड़ जाती है, जिससे प्रशासनिक दक्षता एवं नवाचार में कमी आती है।
- उदाहरण: नियामक निकायों या विश्वविद्यालयों जैसे सार्वजनिक कार्यालयों में नियुक्तियों में प्रतिस्पर्द्धात्मक पक्षपात, अकुशलता और सामान्यता को जन्म दे सकता है।
- भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार की जड़ें मज़बूत होना: राजनीतिक संस्थाएँ लोक कल्याण को कायम रखने के बजाय राजनीतिक निष्ठा को पुरस्कृत करने का साधन बन जाती हैं, जिससे भ्रष्टाचार बढ़ता है।
- उदाहरण: राजनीतिक हस्तक्षेप से पीड़ित सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, प्रदर्शन या जवाबदेही की तुलना में निहित स्वार्थों को प्राथमिकता दे सकते हैं।
लोकतांत्रिक शासन और सार्वजनिक विश्वास पर प्रभाव
- लोकतांत्रिक मानदंडों का कमज़ोर होना: पक्षपातपूर्ण व्यवहार पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्पक्षता जैसे सिद्धांतों को कमज़ोर करता है।
- समाज का ध्रुवीकरण: गैर-पक्षपातपूर्ण संस्थाएँ मध्यस्थ के रूप में कार्य करती हैं। उनका क्षरण विभाजन को बढ़ाता है, जिससे राजनीतिक और सामाजिक तनाव बढ़ता है।
- समझौतापूर्ण नीति निरंतरता: राजनीतिकरण के परिणामस्वरूप नीति में बार-बार उलटफेर होता है, जिससे शासन में अनिश्चितता और अकुशलता उत्पन्न होती है।
- नागरिक भागीदारी में कमी: संस्थाओं में विश्वास की कमी से लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में जनता की भागीदारी हतोत्साहित होती है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा: कमज़ोर संस्थागत अखंडता भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक जैसे सूचकांकों में देश की वैश्विक स्थिति को प्रभावित करती है।
निष्कर्ष:
सार्वजनिक संस्थाओं में गैर-पक्षपातपूर्णता का क्षरण लोकतांत्रिक शासन और जनता के विश्वास के लिये एक बड़ा खतरा है। यह संस्थागत अखंडता से समझौता करता है, विधि के शासन को कमज़ोर करता है और सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देता है, जिसका शासन की गुणवत्ता एवं राष्ट्रीय सामंजस्य पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है।