लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. हालिया घटनाक्रमों को ध्यान में रखते हुए, भारत की आर्थिक संप्रभुता सुनिश्चित करने में तकनीकी स्वदेशीकरण की रणनीतिक भूमिका का मूल्यांकन कीजिये। (150 शब्द)

    04 Dec, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • तकनीकी स्वदेशीकरण को परिभाषित करके परिचय दीजिये।  
    • तकनीकी स्वदेशीकरण के रणनीतिक महत्त्व पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये। 
    • तकनीकी स्वदेशीकरण प्राप्त करने में चुनौतियाँ बताइये। 
    • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय: 

    तकनीकी स्वदेशीकरण में घरेलू स्तर पर प्रौद्योगिकियों का विकास, अनुकूलन और उत्पादन शामिल है, जिससे आयात पर निर्भरता कम होती है। यह भारत की आर्थिक संप्रभुता के लिये आवश्यक है, जो रणनीतिक स्वायत्तता, मज़बूत राष्ट्रीय सुरक्षा और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था में निहित है। 

    मुख्य भाग: 

    तकनीकी स्वदेशीकरण का रणनीतिक महत्त्व: 

    • सामरिक स्वायत्तता और राष्ट्रीय सुरक्षा
      • आयात पर निर्भरता में कमी: स्वदेशीकरण से रक्षा, ऊर्जा और दूरसंचार जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं पर निर्भरता कम हो जाती है।
        • उदाहरण: एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) के तहत अग्नि और पृथ्वी जैसी स्वदेशी मिसाइलें भारत की रक्षा क्षमताओं को सुदृढ़ करती हैं।
      • भू-राजनीतिक जोखिमों को कम करना: महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों पर विदेशी नियंत्रण के जोखिम को कम करके, स्वदेशीकरण यह सुनिश्चित करता है कि भू-राजनीतिक तनावों के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता न हो।
        • उदाहरण: तेजस जैसे लड़ाकू विमानों और INS अरिहंत जैसी पनडुब्बियों का स्वदेशीकरण रक्षा तैयारियों को सुदृढ़ करता है।
    • आर्थिक संप्रभुता
      • घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना: प्रौद्योगिकियों का स्थानीय उत्पादन औद्योगिक विकास और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देता है।
        • उदाहरण: ‘मेक इन इंडिया’ के अंतर्गत प्रमुख क्षेत्र इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में वृद्धि देखी गई है, जिससे आयात में कमी आई है।
      • आयात बिलों में बचत: स्वदेशी क्षमताओं का विकास करके, भारत विदेशी मुद्रा के बहिर्गमन को रोक सकता है और अपने व्यापार संतुलन को बनाए रख सकता है।
        • उदाहरण: भारतीय वैज्ञानिकों ने स्वदेशी रूप से अधिक स्थायी, कम लागत वाली कार्बन-आधारित पेरोवस्काइट सौर कोशिकाओं का विकास किया है, जिनमें बेहतर तापीय और नमी स्थिरता है।
    • नवाचार और तकनीकी संप्रभुता को बढ़ावा देना
      • अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना: स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकास अनुसंधान और नवाचार को प्रोत्साहित करता है, जिससे भारत वैश्विक बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त बनाने में सक्षम हुआ है।
        • उदाहरण: चंद्रयान-3 और आदित्य-L1 मिशन के माध्यम से अंतरिक्ष में भारत की अनुसंधान एवं विकास उपलब्धियाँ तकनीकी प्रगति को उजागर करती हैं।
      • आर्थिक समुत्थानशक्ति: स्वदेशी प्रौद्योगिकियों ने भारत को वैश्विक घटनाओं, जैसे कोविड-19 महामारी के दौरान सेमीकंडक्टर की कमी और हाल ही में लाल सागर संकट के कारण होने वाली आपूर्ति शृंखला व्यवधानों से बचाने में मदद की है। 
      • स्वास्थ्य सेवा में वृद्धि: भारत के पहले स्वदेशी कोविड-19 वैक्सीन, Covaxin के विकास ने जैव प्रौद्योगिकी में देश की आत्मनिर्भरता को प्रदर्शित किया।
        • स्वदेशी चिकित्सा उपकरणों और नैनो-टीकों में प्रगति से स्वास्थ्य सेवा में आयात पर निर्भरता कम हो रही है।
      • डिजिटल और IT प्रौद्योगिकियाँ: विदेशी ऑपरेटिंग सिस्टम के घरेलू विकल्प के रूप में भारत ऑपरेटिंग सिस्टम सॉल्यूशंस (BOSS) का विकास साइबर सुरक्षा और तकनीकी संप्रभुता सुनिश्चित करता है।
        • यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस और आधार जैसे क्षेत्रों में प्रगति भारत के डिजिटल नेतृत्व का मार्ग प्रशस्त कर रही है।

    तकनीकी स्वदेशीकरण प्राप्त करने में चुनौतियाँ

    • अनुसंधान एवं विकास निवेश घाटा: भारत अनुसंधान एवं विकास पर सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.7% व्यय करता है, जो अमेरिका (2.8%) और चीन (2.2%) जैसे देशों की तुलना में काफी कम है।
    • कौशल की कमी: अनुमान है कि वित्त वर्ष 2025 के अंत तक भारत को 30-32 मिलियन लोगों की संभावित कौशल कमी का सामना करना पड़ेगा, विशेष रूप से अत्याधुनिक क्षेत्रों जैसे कि AI, सेमीकंडक्टर और जैव प्रौद्योगिकी में, जो प्रगति में बाधा उत्पन्न करती है।
    • महत्त्वपूर्ण आयातों पर निर्भरता: सेमीकंडक्टर जैसे विदेशी निर्मित घटकों पर अत्यधिक निर्भरता आत्मनिर्भरता को सीमित करती है। (भारत अपने 95% सेमीकंडक्टर चीन, ताइवान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर जैसे देशों से आयात करता है )
    • नीति और पारिस्थितिकी तंत्र में अंतराल: शिक्षा, उद्योग और सरकार के बीच कमज़ोर संबंध नवाचार एवं प्रौद्योगिकी अंतरण की गति को धीमा कर देते हैं।

    आगे की राह 

    • अनुसंधान एवं विकास निवेश में वृद्धि: अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए अनुसंधान एवं विकास व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के कम से कम 2% तक बढ़ाना चाहिये।
    • कौशल विकास पहल: AI, नवीकरणीय ऊर्जा और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे उभरते क्षेत्रों में कौशल विकास कार्यक्रमों को कौशल भारत जैसी पहलों के तहत प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
    • सार्वजनिक-निजी सहयोग को सुदृढ़ करना: नवाचार में तेज़ी लाने के लिये शिक्षाविदों, अनुसंधान संस्थानों और उद्योगों के बीच साझेदारी को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। 
    • सेमीकंडक्टर विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करना: सेमीकंडक्टर मिशन के तहत निवेश को उन्नत नोड्स (10nm से नीचे) की ओर लक्षित किया जाना चाहिये ताकि AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और 5G जैसी अत्याधुनिक तकनीकों में प्रतिस्पर्द्धी बने रह सकें।
    • क्षेत्र-विशिष्ट नीतियाँ: स्वदेशी प्रौद्योगिकी अपनाने को प्रोत्साहित करने के लिये अंतरिक्ष, रक्षा, स्वास्थ्य सेवा और कृषि जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के लिये लक्षित नीतियाँ विकसित की जानी चाहिये।

    निष्कर्ष: 

    तकनीकी स्वदेशीकरण भारत की आर्थिक संप्रभुता और रणनीतिक स्वायत्तता के लिये केंद्रीय है। निरंतर प्रयासों से स्वदेशीकरण न केवल भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ करेगा बल्कि नवाचार, औद्योगिक विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को भी बढ़ावा देगा, जिससे एक समुत्थानशील तथा आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था के रूप में इसकी स्थिति सुदृढ़ होगी।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2