प्रश्न. छोटा नागपुर पठार के खनिज संसाधन और इस क्षेत्र के विकास में महत्त्वपूर्ण भू-वैज्ञानिक तथा ऐतिहासिक कारकों का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- छोटा नागपुर पठार को ‘भारत का खनिज हृदय स्थल’ बताकर उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- छोटा नागपुर पठार के खनिज संसाधन आधार पर प्रकाश डालिये।
- धातुकर्म और विनिर्माण क्षेत्र को आयाम देने में इसकी भूमिका पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
- खनिज प्रचुरता के पीछे भू-वैज्ञानिक और ऐतिहासिक कारण बताइये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
छोटा नागपुर पठार, जिसे प्रायः ‘भारत का खनिज हृदय स्थल’ कहा जाता है, लौह अयस्क, कोयला, अभ्रक और बॉक्साइट जैसे विविध खनिज संसाधनों से समृद्ध है। इस संसाधन आधार ने भारत के धातुकर्म और विनिर्माण क्षेत्रों को आयाम देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे यह क्षेत्र एक औद्योगिक केंद्र के रूप में स्थापित हुआ है।
मुख्य भाग:
छोटा नागपुर पठार का खनिज संसाधन आधार
- लौह अयस्क: नोआमुंडी, गुआ (झारखंड) और आस-पास के क्षेत्रों में प्रमुख भंडार।
- उच्च श्रेणी के हेमेटाइट अयस्क से इस्पात उत्पादन को सहायता मिलती है।
- कोयला: दामोदर घाटी कोयला क्षेत्र (जैसे- झरिया, बोकारो और रानीगंज) भारत के ताप विद्युत और इस्पात उद्योगों की रीढ़ हैं।
- अभ्रक: कोडरमा और गिरिडीह में पाया जाता है, जिससे भारत विश्व स्तर पर अभ्रक के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक बन गया है। अभ्रक का विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों में उपयोग किया जाता है।
- बॉक्साइट और ताँबा: राँची और गुमला ज़िलों में प्रचुर भंडार एल्यूमीनियम एवं ताँबे के उत्पादन में योगदान करते हैं।
- यूरेनियम: जादुगुड़ा में यूरेनियम भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को ईंधन प्रदान करता है।
धातुकर्म और विनिर्माण क्षेत्र को आयाम देने में भूमिका:
- इस्पात उद्योग: लौह अयस्क और कोयला भंडार की निकटता के कारण प्रमुख इस्पात संयंत्रों की स्थापना हुई।
- उदाहरण: जमशेदपुर में टाटा स्टील, बोकारो और राउरकेला में स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) संयंत्र।
- एल्युमिनियम उत्पादन: प्रचुर मात्रा में बॉक्साइट भंडार ने हिंडाल्को जैसे उद्योगों को समर्थन दिया, जिससे भारत के एल्युमिनियम क्षेत्र को बढ़ावा मिला।
- ताप विद्युत उत्पादन: कोयला भंडार क्षेत्र में ताप विद्युत संयंत्रों को विद्युत ऊर्जा प्रदान करते हैं, जिससे औद्योगिक ऊर्जा मांग पूरी होती है।
- उदाहरण: दामोदर घाटी निगम (DVC) उद्योगों के लिये विद्युत ऊर्जा की सुविधा प्रदान करता है।
- रोज़गार सृजन और शहरीकरण: खनिज आधारित उद्योगों ने जमशेदपुर, बोकारो और धनबाद जैसे शहरों में शहरीकरण को बढ़ावा दिया।
खनिज प्रचुरता के पीछे भू-वैज्ञानिक और ऐतिहासिक कारक
- भू-वैज्ञानिक कारक:
- मज़बूत आधार: इसकी नींव प्राचीन क्रिस्टलीय शैल से बनी है, जिसमें आर्कियन कायांतरित संरचनाएँ, ग्रेनाइट का निर्माण और क्रिस्टलीय संस्तर शामिल हैं, जो इसकी खनिज संपदा के लिये संरचनात्मक ढाँचा प्रदान करते हैं।
- संरचनात्मक विशेषताएँ: पठार की भू-वैज्ञानिक संरचना, जो फ्रैक्चर ज़ोन, फॉल्ट लाइनों, वलन और कायांतरण प्रक्रियाओं द्वारा चिह्नित है, खनिज भंडार को सांद्रित करने तथा संरक्षित करने में सहायक रही है।
- ये संरचनात्मक विशेषताएँ शैल संरचनाओं के भीतर विविध खनिजों के समाविष्ट होने के लिये आदर्श स्थितियाँ प्रदान करती हैं।
- ऐतिहासिक कारक:
- औपनिवेशिक विकास: औद्योगिक क्रांति के दौरान कोयले और लौह अयस्क के ब्रिटिश दोहन ने औद्योगीकरण की आधारशिला रखी।
- स्वतंत्रता के बाद का औद्योगिकीकरण: पंचवर्षीय योजनाओं में पठार के संसाधनों का लाभ उठाते हुए भारी उद्योगों पर ज़ोर दिया गया।
- बुनियादी अवसंरचना का विकास: रेलवे और विद्युत संयंत्रों ने संसाधनों के उपयोग को सुगम बनाया।
निष्कर्ष:
अपने विशाल खनिज संसाधनों के साथ छोटानागपुर पठार भारत के धातुकर्म और विनिर्माण विकास की आधारशिला रहा है। गोंडवाना कोयला क्षेत्र जैसी भू-वैज्ञानिक विशेषताओं और टाटा स्टील की स्थापना जैसी ऐतिहासिक पहलों ने इस क्षेत्र को औद्योगिक केंद्र में बदल दिया है। हालाँकि दीर्घकालिक लाभ सुनिश्चित करने के लिये संधारणीय दोहन और समान संसाधन साझाकरण आवश्यक है।