प्रश्न: भारत के वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में आर्थिक हाशिये पर होने, शासन की कमी और कट्टरपंथी विचारधाराओं के उदय के बीच परस्पर जटिल संबंधों का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत के संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों में आर्थिक रूप से हाशिये पर होने, शासन की कमी और कट्टरपंथी विचारधाराओं के उदय के बीच परस्पर क्रिया के संदर्भ में जानकारी देते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- तीन कारकों, जिसमें प्रत्येक कारक एक दूसरे को प्रभावित करता है, को युग्मों में विभाजित करके जटिल अंतर्संबंध को समझाइये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
आर्थिक सीमांतता, शासन की कमी एवं कट्टरपंथी विचारधाराएँ, विशेषकर भारत के संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों जैसे: मध्य भारत, पूर्वोत्तर तथा जम्मू और कश्मीर में एक आत्म-सुदृढ़ीकरण चक्र बनाती हैं। इनके परस्पर प्रभाव से सामाजिक-राजनीतिक तनाव बढ़ता है और हिंसा बढ़ती है।
मुख्य भाग:
तीन कारकों के बीच जटिल अंतर्संबंध
- आर्थिक सीमांतता और शासन की कमी
- बेरोज़गारी और गरीबी: आर्थिक अपवर्जन सीमांत समूहों में असंतोष को बढ़ावा देता है।
- उदाहरण के लिये, झारखंड और छत्तीसगढ़ में जनजातीय समुदायों को खनन परियोजनाओं के कारण विस्थापन का सामना करना पड़ता है, लेकिन उन्हें अपर्याप्त पुनर्वास मिलता है।
- अकुशल कल्याणकारी वितरण: मनरेगा जैसी कल्याणकारी योजनाओं का खराब कार्यान्वयन और भ्रष्टाचार गरीबों को अलग-थलग कर देता है, जिससे वे राज्य-विरोधी आख्यानों के शिकार हो जाते हैं।
- आर्थिक सीमांतता से कट्टरपंथी विचारधाराओं को बढ़ावा
- पुनर्वितरण का वादा: मध्य भारत में माओवादियों जैसे समूह आर्थिक शिकायतों का लाभ उठाकर सीमांत युवाओं की भर्ती करते हैं और संसाधनों के पुनर्वितरण का वादा करते हैं।
- माओवादी विद्रोह की जड़ें जनजातीय समुदायों को वन अधिकारों और संसाधनों तक अभिगम से वंचित करने में निहित हैं।
- राष्ट्रीय विकास से बहिष्कृत: बस्तर जैसे क्षेत्र प्रमुख मानव विकास सूचकांक (HDI) संकेतकों में पिछड़े हुए हैं, जिससे वे कट्टरपंथी विचारधाराओं के गढ़ बन गए हैं।
- शासन की कमी से कट्टरपंथ को बढ़ावा
- सुरक्षा शून्यता: वर्ष 2023 की जातीय हिंसा के दौरान मणिपुर जैसे क्षेत्रों में कमज़ोर कानून प्रवर्तन से विद्रोही समूहों को तनाव का फायदा उठाने और सदस्यों की भर्ती करने का अवसर मिला।
- संवाद की उपेक्षा: शिकायतों को कूटनीतिक रूप से दूर करने में शासन की विफलता (जैसे- पूर्वोत्तर भारत में छठी अनुसूची के प्रावधानों को लागू करने में विलंब) सीमांत समूहों को उग्रवाद के लिये उत्प्रेरित करती है।
- शासन और आर्थिक अंतराल का फायदा उठा रही कट्टरपंथी विचारधाराएँ
- समानांतर शासन का निर्माण: कट्टरपंथी समूह (उदाहरण के लिये, छत्तीसगढ़ में माओवादी-नियंत्रित क्षेत्र) प्रायः शासन की कमियों को पूरा करने के लिये आगे आते हैं, बुनियादी सेवाएँ, न्याय और सुरक्षा प्रदान करते हैं।
- पहचान और शिकायतों को हथियार बनाना: जम्मू और कश्मीर में व्याप्त कट्टरपंथी विचारधाराएँ अलगाववादी भावनाओं को भड़काने के लिये सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार का फायदा उठाती हैं।
- जम्मू-कश्मीर में बेरोज़गारी दर 18% से अधिक है, जो राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है, जिससे कट्टरपंथी विचार पनप सकते हैं।
- अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से प्रशासनिक सुधार तो हुए, लेकिन इससे गहरे आर्थिक अलगाव को पर्याप्त रूप से दूर नहीं किया जा सका, जिसके कारण निरंतर अशांति बनी रही और चरमपंथी समूहों द्वारा भर्ती की गई।
आगे की राह:
- समावेशी विकास: क्षेत्र-विशिष्ट नीतियों के माध्यम से रोज़गार के अवसरों (जैसे- कौशल भारत को संघर्ष-प्रवण क्षेत्रों तक विस्तारित करना) में वृद्धि करने की आवश्यकता है।
- शासन को सुदृढ़ बनाना: योजनाओं के अंतिम छोर तक वितरण में सुधार करने तथा डिजिटल शासन (जैसे- JAM ट्रिनिटी ) के माध्यम से भ्रष्टाचार को दूर करने की आवश्यकता है।
- कट्टरपंथ से मुक्ति कार्यक्रम: शिक्षा, परामर्श और सामाजिक-आर्थिक उत्थान के माध्यम से समुदायों को शामिल किया जाना चाहिये, जैसा कि कट्टरपंथ से मुकाबला करने के लिये केरल के मॉडल में देखा गया है।
- समावेशी विकास: बेहतर प्रशासन के माध्यम से विशेष रूप से जनजातीय क्षेत्रों में कल्याणकारी वितरण को सुदृढ़ किया जाना चाहिये। उदाहरण के लिये, जनजातीय समुदायों की आजीविका को बढ़ाने के लिये PM वन धन योजना की सफलता का विस्तार किया जा सकता है।
- संघर्ष समाधान तंत्र: लंबे समय से चली आ रही शिकायतों के समाधान के लिये संवाद को बढ़ावा दिया जाना चाहिये, जैसा कि नगा शांति समझौते (वर्ष 2015) में देखा गया है।
- भारत सिंगापुर के समुदाय-संचालित दृष्टिकोण से लाभ उठा सकता है, जबकि स्केलेबिलिटी एवं व्यक्तिगत आकलन में यूके और सऊदी अरब की कमियों से सीख सकता है।
निष्कर्ष:
आर्थिक सीमांतता, शासन की कमी और कट्टरपंथी विचारधाराओं के बीच के अंतर्संबंध को बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। शासन संबंधी अंतराल को कम करना, समावेशी विकास को बढ़ावा देना और पहचान आधारित शिकायतों का समाधान करना इस चक्र को तोड़ने के लिये आवश्यक है। जैसा कि आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम से स्पष्ट है, विकास और सुशासन को मिलाकर लक्षित प्रयास भारत के संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों में शांति एवं प्रगति का मार्ग प्रदान कर सकते हैं।