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प्रश्न :
प्रश्न: डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) भारत में समावेशी आर्थिक विकास और वित्तीय परिवर्तन को कैसे सक्षम बना सकती है? इसकी संभावनाओं और चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)
27 Nov, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- DPI की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- सहायक उदाहरणों के साथ DPI की क्षमता बताइये।
- DPI की सीमाओं की व्याख्या कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारत की G20 अध्यक्षता ने डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) को समावेशी आर्थिक विकास और वित्तीय परिवर्तन के लिये एक परिवर्तनकारी प्रवर्तक के रूप में रेखांकित किया।
DPI अपने खुलेपन, अंतर-संचालनीयता और मापनीयता की विशेषता के कारण, डिजिटल सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के लिये आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन जैसी क्षेत्रीय पहलों के साथ आधार तथा UPI जैसी आधारभूत प्रणालियों को एकीकृत करता है।
मुख्य भाग:
DPI की क्षमता:
- समावेशी आर्थिक विकास:
- वित्तीय समावेशन: आधार-सक्षम भुगतान प्रणालियों और UPI ने सीमांत समूहों के लिये औपचारिक बैंकिंग तक अभिगम का विस्तार किया है, जिससे मासिक 10 बिलियन से अधिक UPI लेन-देन होते हैं।
- आर्थिक मूल्य: नैसकॉम (Nasscom) के अनुमान के अनुसार, DPI वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद में 4.2% का योगदान कर सकता है, जिससे भारत की 8 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की क्षमता बढ़ जाएगी।
- एमएसएमई का सशक्तीकरण: ONDC जैसे प्लेटफॉर्म ई-कॉमर्स को लोकतांत्रिक बनाते हैं तथा समान बाज़ार अभिगम को बढ़ावा देते हैं।
- बेहतर प्रशासन और सेवा वितरण:
- ई-गवर्नेंस: CoWIN जैसे प्लेटफॉर्मों ने 2.2 बिलियन वैक्सीन प्रशासन की सुविधा प्रदान की, जिससे निर्बाध सार्वजनिक सेवा वितरण का प्रदर्शन हुआ।
- डेटा सशक्तीकरण: डिजिलॉकर और DEPA गोपनीयता को बनाए रखते हुए सुरक्षित डेटा प्रबंधन सुनिश्चित करते हैं।
- नवप्रवर्तन के लिये उत्प्रेरक:
- डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र स्टार्टअप और निजी क्षेत्र के नवाचार को प्रोत्साहित करते हैं, तथा फिनटेक विकास के लिये अकाउंट एग्रीगेटर फ्रेमवर्क जैसे उपकरणों का लाभ उठाते हैं।
DPI की सीमाएँ:
- डिजिटल डिवाइड: वर्ष 2022 तक, भारत में इंटरनेट की पहुँच केवल 52% थी, ग्रामीण क्षेत्र शहरी केंद्रों से काफी पीछे हैं, जिससे UPI और ई-गवर्नेंस जैसी डिजिटल सेवाओं तक पहुँच सीमित है।
- डिजिटल निरक्षरता: प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान जैसी पहलों के बावजूद, एक बड़ा हिस्सा डिजिटल रूप से निरक्षर बना हुआ है, जिससे डिजिटल भुगतान (UPI) जैसी सेवाओं के अंगीकरण पर असर पड़ रहा है।
- साइबर सुरक्षा जोखिम: भारत को प्रत्येक सप्ताह 3,000 से अधिक साइबर हमलों का सामना करना पड़ता है, जिसमें वर्ष 2023 में हुए एम्स दिल्ली रैनसमवेयर अटैक जैसी घटनाएँ डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी अवसंरचना में कमियों को उजागर करती हैं।
- डेटा गोपनीयता और सुरक्षा: डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 अभी भी लागू किया जा रहा है। वर्ष 2018 में आधार लीक जैसी पिछली घटनाओं ने डेटा सुरक्षा के बारे में चिंताओं को उजागर किया है।
- डिजिटल संप्रभुता: भुगतान डेटा को स्थानीय स्तर पर संग्रहीत करने के लिये RBI के आदेश जैसी नीतियाँ वैश्विक तकनीकी कंपनियों के लिये चुनौती हैं और सीमा पार डेटा प्रवाह को प्रभावित करती हैं।
आगे की राह:
- सार्वभौमिक कनेक्टिविटी का विस्तार: ब्रॉडबैंड और मोबाइल इंटरनेट कवरेज के विस्तार के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये। राष्ट्रव्यापी पहुँच सुनिश्चित करने के लिये भारतनेट जैसी पहलों का लाभ उठाने की आवश्यकता है।
- डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना: डिजिटल कौशल को बेहतर बनाने के लिये प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान जैसे कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। स्कूल के पाठ्यक्रम और सामुदायिक प्रशिक्षण केंद्रों में डिजिटल साक्षरता को एकीकृत किया जाना चाहिये।
- महिलाओं और सीमांत समुदायों की डिजिटल शिक्षा तक पहुँच बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
- साइबर सुरक्षा ढाँचे का सुदृढ़ीकरण: महत्त्वपूर्ण बुनियादी अवसंरचना की सुरक्षा के लिये एक व्यापक साइबर सुरक्षा रणनीति बनाए जाने की आवश्यकता है। सरकारी और निजी क्षेत्र के डिजिटल प्लेटफॉर्म का नियमित ऑडिट किया जाना चाहिये।
- डेटा गोपनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करना: व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के लिये डिजिटल व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा अधिनियम, 2023 को लागू किये जाने की आवश्यकता है। क्रॉस-बॉर्डर डेटा फ्लो सुनिश्चित करते हुए डेटा स्थानीयकरण के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश स्थापित किये जाने चाहिये।
- भाषा समावेशिता को बढ़ाना: भारत की भाषाई विविधता को ध्यान में रखते हुए बहुभाषी डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित किया जाना चाहिये। क्षेत्रीय भाषाओं में कंटेंट को बढ़ावा देने के लिये BHASHINI जैसी पहलों का विस्तार किया जाना चाहिये।
- डिजिटल संप्रभुता को कायम रखना: डेटा स्थानीयकरण से जुड़े कानूनों को सुदृढ़ बनाने के साथ ही राष्ट्रीय हितों की रक्षा भी सुनिश्चित की जानी चाहिये। डेटा सुरक्षा चिंताओं के साथ वैश्विक तकनीकी सहयोग को संतुलित करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
DPI में सामाजिक-आर्थिक अंतर को कम करने और वित्तीय परिवर्तन को आगे बढ़ाने की अपार क्षमता है, लेकिन डिजिटल असमानता, गोपनीयता जोखिम एवं विनियामक विखंडन जैसी चुनौतियों का समाधान किया जाना चाहिये। इन उपायों को अपनाकर, भारत DPI को समावेशी विकास की आधारशिला के रूप में सुदृढ़ कर सकता है, एक ऐसे डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा दे सकता है जो अभिनव, न्यायसंगत एवं आघातसह हो।
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