प्रश्न. "18वीं शताब्दी में, क्षेत्रीय शक्ति केंद्रों का उदय मुगल साम्राज्य के पतन का द्योतक होने के साथ-साथ राज्य-निर्माण की नई अवधारणाओं और स्वरूपों के विकास का भी परिचायक था।” चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
दृष्टिकोण:
- 18वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य के विखंडन और क्षेत्रीय शक्तियों के उदय को चिह्नित करके उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- क्षेत्रीय शक्ति केंद्रों को मुगल पतन के प्रतिबिंब के रूप में प्रस्तुत करते हुए तर्क दीजिये।
- राज्य-निर्माण के नए रूपों के उद्भव पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
18वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य का विखंडन हुआ तथा मराठों, बंगाल के नवाबों, हैदराबाद के निज़ाम आदि जैसी क्षेत्रीय शक्तियों का उदय हुआ।
- यद्यपि इसे मुगल पतन के लक्षण के रूप में देखा जाता है, यह काल राज्य निर्माण में एक परिवर्तनकारी चरण का भी प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें स्थानीय परिस्थितियों और आकांक्षाओं के अनुकूल नए प्रशासनिक, आर्थिक एवं सैन्य संरचना को अपनाया गया।
मुख्य भाग:
क्षेत्रीय शक्ति: केंद्र मुगल पतन का प्रतिबिंब
- केंद्रीय नियंत्रण का विघटन: शाही वित्त की कमज़ोरी, विशाल क्षेत्रों का प्रबंधन करने में असमर्थता और आंतरिक विद्रोहों ने मुगल शासन क्षमता को कम कर दिया।
- क्षेत्रीय अभिजात वर्ग, जिनमें गवर्नर (सूबेदार) और ज़मींदार शामिल थे, ने स्वायत्तता पर बल दिया।
- सैन्य सत्ता का विखंडन: मुगल सैन्य पतन ने मराठों और सिखों जैसी क्षेत्रीय शक्तियों को क्षेत्रीय विस्तार का अवसर प्रदान किया।
- प्रशासनिक नेटवर्क का पतन: राजस्व संग्रह तंत्र में गिरावट और भ्रष्टाचार के कारण क्षेत्रीय शक्तियों ने स्थानीय शासन संरचनाओं का निर्माण किया।
राज्य-निर्माण के नए रूपों का उदय:
- स्थानीय शासन: मराठों जैसी क्षेत्रीय शक्तियों ने अष्टप्रधान प्रणाली के माध्यम से विकेंद्रीकृत शासन को अपनाया।
- बंगाल और अवध के नवाबों ने स्थानीय कृषि स्थितियों के अनुकूल व्यावहारिक राजस्व संग्रह पर बल दिया।
- राजस्व प्रणालियाँ: मराठों ने विशाल क्षेत्रों में राजस्व वसूलने के लिये चौथ और सरदेशमुखी प्रणालियाँ विकसित कीं।
- व्यापार और वाणिज्य: क्षेत्रीय राज्यों ने यूरोपीय कंपनियों के साथ वाणिज्यिक नेटवर्क और व्यापारिक संबंध को बढ़ावा दिया।
- मुर्शिद कुली खान के अधीन बंगाल, वस्त्र उत्पादन और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का केंद्र बन गया।
- व्यावसायिक सेनाएँ: कई राज्य सामंती सैन्य टुकड़ियों से स्थायी सेनाओं की ओर चले गए, जैसे कि मराठा हल्की घुड़सवार सेना या हैदर अली और टीपू सुल्तान के अधीन मैसूरी सेनाएँ।
निष्कर्ष:
18वीं सदी में क्षेत्रीय शक्ति केंद्रों का उदय मुगल पतन का लक्षण मात्र नहीं था। यह रचनात्मक राज्य निर्माण का एक चरण था, जिसकी विशेषता प्रशासनिक व्यावहारिकता, आर्थिक नवाचार और सांस्कृतिक पुनरुत्थान थी। इस अवधि ने आधुनिक राज्य प्रणालियों के लिये आधार तैयार किया और बदलती परिस्थितियों के समक्ष भारतीय राजनीतिक संरचनाओं की अनुकूलन क्षमता का प्रदर्शन किया।