- फ़िल्टर करें :
- सैद्धांतिक प्रश्न
- केस स्टडीज़
-
प्रश्न :
प्रश्न: "प्रशासनिक नेतृत्व में भावनात्मक बुद्धिमत्ता की भूमिका पर विचार कीजिये। भावनात्मक आत्म-नियमन और सामाजिक जागरूकता कैसे प्रभावी रूप से प्रशासनिक चुनौतियों का समाधान कर सकती हैं।" विश्लेष्ण कीजिये (150 शब्द)
21 Nov, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
दृष्टिकोण:
- भावनात्मक बुद्धिमत्ता को परिभाषित करके उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- सार्वजनिक नेतृत्व में भावनात्मक बुद्धिमत्ता का महत्त्व बताइये।
- प्रशासनिक चुनौतियों को कम करने में भावनात्मक आत्म-नियमन की भूमिका पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
- प्रशासनिक चुनौतियों को कम करने में सामाजिक जागरूकता की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय
भावनात्मक बुद्धिमत्ता (EI) स्वयं की और दूसरों की भावनाओं को पहचानने, समझने एवं प्रबंधित करने की क्षमता है, जो सार्वजनिक नेतृत्व के लिये एक महत्त्वपूर्ण कौशल है।
- जब प्रशासनिक मुद्दों जैसे कि हितधारक सहयोग, सार्वजनिक विश्वास की कमी और संघर्ष समाधान की बात आती है, तो भावनात्मक आत्म-नियंत्रण के दो प्रमुख घटक— भावनात्मक आत्म-नियमन और सामाजिक जागरूकता बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं।
मुख्य भाग:
सार्वजनिक नेतृत्व में भावनात्मक बुद्धिमत्ता का महत्त्व
- बेहतर निर्णय लेने की क्षमता: उच्च भावनात्मक बुद्धिमत्ता वाले लोक सेवक अपने निर्णयों के भावनात्मक प्रभाव का आकलन कर सकते हैं, तथा यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि वे सहानुभूतिपूर्ण और निष्पक्ष हैं।
- उदाहरण: एक ज़िला कलेक्टर रसद संबंधी आवश्यकताओं और जनता की चिंता दोनों को दूर करते हुए आपदा राहत प्रयासों को संचालित करता है।
- संघर्ष समाधान: EI लोक सेवकों को विविध दृष्टिकोणों को समझने और आपसी समझ को बढ़ावा देने के माध्यम से विवादों को प्रभावी ढंग से मध्यस्थता करने में सक्षम बनाता है।
- उदाहरण: नीति कार्यान्वयन में अंतर्विभागीय संघर्षों का समाधान करना।
- सार्वजनिक विश्वास और पारदर्शिता का निर्माण: सहानुभूति और वास्तविक संचार लोक सेवकों एवं नागरिकों के बीच विश्वास का निर्माण करता है।
- उदाहरण: स्वास्थ्य संकट से पारदर्शी तरीके से निपटना, जैसा कि राजेंद्र भट्ट जैसे कई लोक सेवकों में देखा गया, जिन्होंने कोविड-19 महामारी का प्रभावी ढंग से प्रबंधन किया।
- टीमों और हितधारकों को प्रेरित करना: EI सहयोग को बढ़ावा देता है, टीम को प्रेरित करता है और संगठनात्मक लक्ष्यों के साथ संरेखण सुनिश्चित करता है।
- उदाहरण: सीमित संसाधनों वाले क्षेत्रों में स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं को प्रेरित करने वाला एक लोक सेवक।
प्रशासनिक चुनौतियों को कम करने में भावनात्मक आत्म-नियमन की भूमिका
- संकट प्रबंधन: स्व-नियमन दबाव में आवेगपूर्ण निर्णय लेने से रोकता है, तथा संकट के दौरान विचारशील प्रतिक्रिया सुनिश्चित करता है, जैसे: सांप्रदायिक दंगों के दौरान स्थिति को बढ़ने से रोकने के लिये शांत दृष्टिकोण अपनाना।
- सार्वजनिक आलोचना से निपटना: आत्म-नियमन वाले लोक सेवक आलोचना या सार्वजनिक आक्रोश के बावजूद धैर्य बनाए रखते हैं और रचनात्मक समाधान पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- नैतिक व्यवहार को कायम रखना: स्व-नियमन भ्रष्टाचार या पक्षपात की प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाने में सहायक है जो शासन में ईमानदारी को बढ़ावा देता है, जैसे निष्पक्ष निविदा प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिये लॉबिंग दबाव का सामना करना।
प्रशासनिक चुनौतियों को कम करने में सामाजिक जागरूकता की भूमिका
- सार्वजनिक आवश्यकताओं को समझना: सामाजिक जागरूकता लोक सेवकों को हितधारकों की भावनात्मक और सांस्कृतिक संवेदनशीलता को समझने में मदद करती है, जिसके परिणामस्वरूप जन-केंद्रित नीतियाँ बनती हैं।
- विविध हितधारकों को साथ लेकर चलना: सामाजिक गतिशीलता के बारे में जागरूकता नागरिकों, मीडिया, गैर-सरकारी संगठनों और राजनीतिक अभिकर्त्ताओं के साथ प्रभावी जुड़ाव सुनिश्चित करती है।
- संघर्ष निवारण: समूह की भावनाओं और अंतर्निहित तनावों को पहचान कर, लोक सेवक विवादों का प्रभावी ढंग से मध्यस्थता कर सकते हैं।
निष्कर्ष:
भावनात्मक बुद्धिमत्ता प्रभावी सार्वजनिक नेतृत्व की आधारशिला है, विशेष रूप से शासन की जटिल, बहुआयामी चुनौतियों के प्रबंधन में। भावनात्मक आत्म-नियमन संतुलित, नैतिक और संयमित निर्णय लेने को सुनिश्चित करता है, जबकि सामाजिक जागरूकता सहानुभूति एवं समावेशिता को बढ़ावा देती है। साथ में, ये विशेषताएँ लोक सेवकों को विश्वास को प्रेरित करने, संघर्षों को हल करने और लोगों को केंद्रित नीतियों को लागू करने में सक्षम बनाती हैं।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print