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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न: स्वामी विवेकानंद ने सामाजिक प्रगति के लिये आध्यात्मिक और भौतिक मूल्यों के सामंजस्य पर ज़ोर दिया। आधुनिक समय की नैतिक दुविधाओं से निपटने में उनके दर्शन की प्रासंगिकता का मूल्यांकन कीजिये। (150 शब्द)

    21 Nov, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    दृष्टिकोण:

    • आध्यात्मिक और भौतिक मूल्यों के सामंजस्य पर स्वामी विवेकानंद के बल को उजागर करते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये। 
    • स्वामी विवेकानंद के दर्शन को आधुनिक नैतिक दुविधाओं के लिये प्रासंगिक बताते हुए उत्तर दीजिये। 
    • उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय:

    19वीं सदी के आध्यात्मिक नेता और सुधारक स्वामी विवेकानंद ने आध्यात्मिक एवं भौतिक मूल्यों के सामंजस्य पर बल देने के साथ ही व्यक्तिगत व सामाजिक विकास के लिये संतुलित दृष्टिकोण का समर्थन किया। 

    • उनके दर्शन नैतिक आचरण, आध्यात्मिक विकास और भौतिक कल्याण को बढ़ावा देते हैं तथा मूल्यों, स्वार्थ एवं सामाजिक दायित्वों के बीच संघर्ष से जुड़ी आधुनिक नैतिक दुविधाओं का समाधान ढूँढने के लिये एक रूपरेखा प्रदान करते हैं।

    मुख्य भाग:

    आधुनिक नैतिक दुविधाओं में स्वामी विवेकानंद के दर्शन की प्रासंगिकता

    • स्व-हित और सामूहिक कल्याण में संतुलन
      • नैतिक दुविधा: भौतिक संपदा की खोज प्रायः व्यापक सामाजिक भलाई के साथ टकराव में रहती है, जैसा कि पर्यावरणीय क्षरण जैसे मुद्दों में देखा जाता है।
      • दर्शन की प्रासंगिकता: विवेकानंद ने निस्वार्थता और सेवा पर ज़ोर दिया तथा सामाजिक कल्याण के साथ व्यक्तिगत समृद्धि पर भी बल दिया। 
        • उदाहरण के लिये, संधारणीय व्यावसायिक प्रथाओं को अपनाने से लाभ की भावना और पर्यावरण संरक्षण में संतुलन बना रहता है।
    • शासन और नेतृत्व में संघर्षों का समाधान
      • नैतिक दुविधा: भ्रष्टाचार, पक्षपात और शासन में जवाबदेही की कमी जनता के विश्वास को कमज़ोर करती है।
      • दर्शन की प्रासंगिकता: ईमानदारी और आध्यात्मिक अनुशासन पर विवेकानंद का बल नैतिक नेतृत्व को प्रोत्साहित करता है। 
        • उनकी शिक्षाएँ लोक सेवकों के लिये व्यक्तिगत लाभ के बजाय धर्म (कर्त्तव्य) के आधार पर निर्णय लेने की प्रेरणा देती हैं।
    • सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देना
      • नैतिक दुविधा: धन और संसाधनों तक पहुँच में असमानताएँ निष्पक्षता एवं समानता के बारे में नैतिक चिंताएँ उत्पन्न करती हैं।
      • दर्शन की प्रासंगिकता: स्वामी विवेकानंद ने शिक्षा और समानता के माध्यम से उत्थान का समर्थन किया। 
        • दरिद्र नारायण (पूजा के रूप में गरीबों की सेवा करना) का उनका विचार असमानता को कम करने और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के उद्देश्य से नीतियों एवं कार्यों को प्रोत्साहित करता है।
    • प्रौद्योगिकी और नवाचार में नैतिकता
      • नैतिक दुविधा: डेटा गोपनीयता, AI का दुरुपयोग और डिजिटल डिवाइड को बढ़ाने जैसे मुद्दे चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।
      • दर्शन की प्रासंगिकता: नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों के साथ प्रगति को सामंजस्य स्थापित करने की विवेकानंद की दृष्टि, कमज़ोरियों का शोषण करने के बजाय मानवता की सेवा करने वाली प्रौद्योगिकी के नैतिक उपयोग का आह्वान करती है।
    • व्यक्तिगत जीवन में नैतिक सापेक्षवाद से निपटना
      • नैतिक दुविधा: आधुनिक समाज को प्रायः जीवनशैली विकल्पों और उपभोक्तावाद जैसे मुद्दों में नैतिक अस्पष्टता का सामना करना पड़ता है।
      • दर्शन की प्रासंगिकता: आत्म-नियंत्रण, आत्म-जागरूकता और आध्यात्मिक आधार पर बल देकर, विवेकानंद मूल्य-आधारित व्यक्तिगत निर्णय लेने के लिये एक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं जो आंतरिक शांति एवं सामाजिक सद्भाव के साथ संरेखित होते हैं।
        • उन्होंने यह भी कहा कि, "जो कुछ भी आपको शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से कमज़ोर बनाता है, उसे जहर समझकर अस्वीकार कर दीजिये।" 

    निष्कर्ष: 

    स्वामी विवेकानंद का दर्शन आधुनिक नैतिक दुविधाओं से निपटने के लिये कालातीत मार्गदर्शन प्रदान करता है। आध्यात्मिक और भौतिक मूल्यों में सामंजस्य स्थापित करके, व्यक्ति तथा समाज आधुनिक जीवन की जटिलताओं को ईमानदारी, समावेशिता एवं सामूहिक प्रगति पर ध्यान केंद्रित करके हल कर सकते हैं।

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