प्रश्न: "भारतीय शहर आपदाओं के बढ़ते जोखिम का सामना कर रहे हैं, लेकिन शहरी आपदा प्रबंधन की तैयारियों में अभी भी अनेक कमियाँ हैं। मौजूदा कानूनी ढाँचे के तहत, आपदा प्रतिरोध के संवर्द्धन हेतु कौन-सी रणनीतियाँ और सुधार किये जा सकते हैं?" (250 शब्द)
उत्तर :
दृष्टिकोण:
- आपदाओं के प्रति भारतीय शहरों की संवेदनशीलता पर प्रकाश डालते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- शहरी आपदा प्रबंधन में चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
- आपदा तैयारी और प्रतिक्रिया को सुदृढ़ करने के उपाय बताइये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भारतीय शहर अपनी बढ़ती आबादी, तेज़ी से हो रहे शहरीकरण और विस्तारित हो रहे बुनियादी अवसंरचना के कारण विभिन्न आपदाओं- प्राकृतिक (बाढ़, भूकंप, चक्रवात) तथा मानव निर्मित (आगजनी, इमारतों का ढहना, औद्योगिक दुर्घटनाएँ) के प्रति संवेदनशील होते जा रहे हैं।
- आपदा प्रबंधन में अनेक प्रगति के बावजूद, शहरी आपदा अनुकूलता अभी भी अपर्याप्त है, जिसका मुख्य कारण खंडित शासन, अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना और प्रभावी योजना का अभाव है।
मुख्य भाग:
शहरी आपदा प्रबंधन में चुनौतियाँ:
- तीव्र शहरीकरण: अनियमित विस्तार से बाढ़ के मैदानों (वर्ष 2023 में बंगलूरू बाढ़) और भूकंपीय क्षेत्रों पर अतिक्रमण होता है।
- कानूनों का कमज़ोर क्रियान्वयन: भवन संहिताओं और ज़ोनिंग विनियमों का निम्नस्तरीय क्रियान्वयन।
- अपर्याप्त शहरी नियोजन: शहर विकास योजनाओं में आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) के एकीकरण का अभाव। (वर्ष 2022 में गुजरात में मोरबी पुल ढहने की घटना)
- अपर्याप्त पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ: आपदा चेतावनियों की सीमित पहुँच, विशेष रूप से सीमांत समूहों के लिये। (केदारनाथ आकस्मिक बाढ़- वर्ष 2013)
- जन-जागरूकता में कमी: तैयारी उपायों में समुदाय की कम भागीदारी।
आपदा तैयारी और प्रतिक्रिया को सुदृढ़ करने के उपाय:
- एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय: शहरी आपदा प्रबंधन के लिये विभिन्न एजेंसियों (NDRF, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, स्थानीय नगर निकाय और आपातकालीन सेवाएँ) के बीच निर्बाध समन्वय की आवश्यकता होती है।
- शहरी जोखिम और भेद्यता मानचित्रण: जोखिमों के आधार पर शहर-विशिष्ट भेद्यता मानचित्र विकसित करने के लिये राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन दिशा-निर्देशों का उपयोग किये जा सकते हैं।
- इन मानचित्रों में खतरा-प्रवण क्षेत्र (बाढ़ के मैदान, भूकंपीय क्षेत्र, आदि), असुरक्षित आबादी (झुग्गी-झोपड़ियाँ, अनौपचारिक बस्तियाँ) और महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे (अस्पताल, बिजली ग्रिड) को शामिल किया जाना चाहिये।
- शहरी स्तर पर आपदा प्रबंधन योजनाएँ: शहरों को आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत अनिवार्य रूप से विशिष्ट, स्थानीयकृत आपदा प्रबंधन योजनाएँ तैयार करनी चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे भीड़भाड़, परिवहन बाधाओं और अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं जैसी शहर-विशिष्ट चुनौतियों का समाधान कर सकें।
- शहरी विकास में तन्यकता को शामिल करना: शहरी नियोजन कानूनों में संशोधन, जैसे मॉडल बिल्डिंग उप-नियम, 2016, शहरों के लिये आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी अवसंरचना, भूकंप-प्रतिरोधी इमारतों, बाढ़ नियंत्रण प्रणालियों और सुरक्षित सार्वजनिक स्थानों को एकीकृत करना अनिवार्य बना सकता है।
- नए भवनों और बुनियादी अवसंरचनाओं के लिये आपदा अनुकूलता का आकलन करने तथा अनुमोदन से पहले उसमें सुधार करने हेतु अनुकूलन ऑडिट शुरू की जानी चाहिये।
- जलवायु-अनुकूल बुनियादी अवसंरचना: जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) को बाढ़, हीट-वेव्स और अनावृष्टि जैसी जलवायु-जनित आपदाओं से निपटने के लिये शहर स्तर पर लागू किया जाना चाहिये।
- शहरी स्थानीय निकायों को जलवायु-अनुकूल बुनियादी अवसंरचना (जैसे- सतत् जल निकासी प्रणाली, हरित छत और नवीकरणीय ऊर्जा समाधान) को शामिल करने के लिये अनिवार्य किया जा सकता है।
- आपदा-रोधी आवास: उच्च घनत्व वाली झुग्गी-झोपड़ियों वाली आबादी वाले शहरों में मौजूदा संरचनाओं के पुनर्निर्माण को प्राथमिकता दी जानी चाहिये और प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) के माध्यम से सुरक्षित आवास को बढ़ावा देना चाहिये जिसमें आपदा-रोधी डिज़ाइन एवं सामग्रियों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
भारत में शहरी आपदा तन्यकता को बेहतर समन्वय, एकीकृत आपदा जोखिम प्रबंधन, उन्नत बुनियादी अवसंरचना और बढ़ी हुई सार्वजनिक भागीदारी के माध्यम से काफी सुदृढ़ किया जा सकता है। आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005, राष्ट्रीय भवन संहिता और शहरी नियोजन दिशा-निर्देशों सहित मौजूदा कानूनी फ्रेमवर्क का लाभ उठाकर, अधिक आपदा-तन्य शहरी वातावरण को बढ़ावा दिया जा सकता है।