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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न: भारत अपने जनांकिकीय लाभांश का प्रभावी उपयोग किस प्रकार कर सकता है? साथ ही, कौशल विकास और रोज़गार सृजन से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करने के लिये कौन-से कदम उठाए जा सकते हैं? हाल की सरकारी पहलों और योजनाओं का उल्लेख करते हुए चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    19 Nov, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • जनांकिकीय लाभांश पर डेटा प्रस्तुत करते हुए उत्तर का परिचय दीजिये। 
    • भारत के जनांकिकीय लाभांश का लाभ उठाने के अवसरों की व्याख्या कीजिये। 
    • कौशल विकास और रोज़गार सृजन में चुनौतियों पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये। 
    • इन चुनौतियों से निपटने के लिये सरकारी पहलों पर प्रकाश डालिये। 
    • कौशल विकास और रोज़गार सृजन के साथ-साथ जनांकिकीय लाभांश का लाभ उठाने के उपाय सुझाइये। 
    • उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय: 

    भारत ने सत्र 2005-06 में अपनी जनांकिकीय लाभांश अवधि में प्रवेश किया, जो सत्र 2055-56 तक चलेगी। यह आर्थिक विकास को गति देने के लिये एक अवसर प्रदान करता है। हालाँकि इस क्षमता का दोहन करने के लिये कौशल विकास और रोज़गार सृजन में चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है। 

    मुख्य भाग: 

    भारत के जनांकिकीय लाभांश के अवसर: 

    • युवा कार्यबल: भारत की 50% से अधिक जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु की है तथा 65% से अधिक जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है।
    • आर्थिक प्रभाव: विश्व बैंक के अनुसार, स्कूली शिक्षा के औसत वर्षों में एक वर्ष की वृद्धि से देश की GDP वृद्धि में 0.37% की वृद्धि हो सकती है।
      • इससे घरेलू खपत, बचत और विनिर्माण एवं सेवाओं की उत्पादकता में भी वृद्धि हो सकती है।
    • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: लागत प्रभावी, कुशल श्रम की उपलब्धता भारत को उद्योगों के लिये एक वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करती है।

    कौशल विकास और रोज़गार सृजन में चुनौतियाँ

    • कौशल विकास चुनौतियाँ
      • औपचारिक प्रशिक्षण का निम्न प्रसार: कार्यबल का केवल 4.7% ही व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त करता है (2022)।
      • रोज़गार योग्यता अंतर: भारत कौशल रिपोर्ट 2024 में कहा गया है कि 48.7% युवाओं में नौकरी के लिये उपयुक्त कौशल का अभाव है।
        • केवल 45% इंजीनियरिंग स्नातक ही उद्योग मानकों पर खरे उतरते हैं।
    • अभिगम असमानताएँ:
      • लैंगिक अंतराल: व्यावसायिक प्रशिक्षण में महिलाओं की भागीदारी कम ( 18-59 वर्ष की आयु की 18.6% महिलाएँ) बनी हुई है।
      • ग्रामीण-शहरी विभाजन: ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त प्रशिक्षण बुनियादी अवसंरचना का अभाव है।
        • आर्थिक बाधाएँ: गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण की उच्च लागत आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिये अभिगम को सीमित करती है।
    • रोज़गार सृजन की चुनौतियाँ
      • बेरोज़गारी के आँकड़े: कुल बेरोज़गारी दर: 8.1% (CMIE, अप्रैल 2024)। युवा बेरोज़गारी: 23.2%। (विश्व बैंक)
        • महिलाओं की श्रम शक्ति में भागीदारी अभी भी कम उपयोग में लाई जाती है।
      • संरचनात्मक मुद्दे: 90% कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में है, जहाँ वेतन और नौकरी की सुरक्षा कम है।
        • विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार सृजन (GDP में मात्र 14% का योगदान) कार्यबल वृद्धि से पीछे है।
        • गुणवत्तापूर्ण रोज़गार सृजन जनांकिकीय लाभांश आवश्यकताओं से मेल नहीं खाता।
      • क्षेत्रीय असमानताएँ: रोज़गार के अवसर शहरी और औद्योगिक क्षेत्रों में ही केंद्रित रहते हैं।

    इन चुनौतियों से निपटने के लिये सरकारी पहल: 

    कौशल विकास और रोज़गार सृजन के साथ-साथ जनांकिकीय लाभांश का उपयोग:

    • कौशल एवं शिक्षा सुधार: शिक्षा को उद्योग जगत की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने की आवश्यकता है:
      • स्कूलों और उच्च शिक्षा में व्यावसायिक प्रशिक्षण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
      • AI और रोबोटिक्स जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों को शामिल करने के लिये पाठ्यक्रम को अद्यतन किया जाना चाहिये।।
      • उदाहरण: NEP- 2020 का फोकस अनुभवात्मक शिक्षा और इंटर्नशिप पर है।
    • डिजिटल और हरित कौशल प्रशिक्षण का विस्तार: चौथी औद्योगिक क्रांति के लिये कार्यबल तैयार करने हेतु डिजिटल साक्षरता और हरित अर्थव्यवस्था कौशल को एकीकृत किये जाने की आवश्यकता है।
      • स्किल इंडिया डिजिटल प्लेटफॉर्म और नैसकॉम फ्यूचरस्किल्स जैसी पहलों का लाभ उठाना चाहिये।
    • औपचारिक क्षेत्र के अवसरों को बढ़ावा देना: औपचारिक रोज़गार सृजन के लिये व्यापार में आसानी संबंधी सुधारों और कर प्रोत्साहनों के माध्यम से कार्यबल के औपचारिकीकरण को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
      • राष्ट्रीय प्रशिक्षुता संवर्द्धन योजना (NAPS) के अंतर्गत अधिक प्रशिक्षुओं को शामिल करने के लिये नियोक्ताओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • MSME विकास को बढ़ावा देना: MSME के लिये वित्तीय और रसद सहायता को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है, जो 62% कार्यबल को रोज़गार प्रदान करते हैं।
      • ऋण गारंटी योजनाओं के विस्तार के साथ-साथ कौशल आधारित सब्सिडी प्रदान की जानी चाहिये।
    • क्षेत्र-विशिष्ट विकास को बढ़ावा देना: विनिर्माण, स्वास्थ्य सेवा, नवीकरणीय ऊर्जा और डिजिटल सेवाओं जैसे उच्च विकास वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
      • रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने के लिये PLI योजनाओं में अधिक श्रम-प्रधान क्षेत्रों को शामिल किया जाना चाहिये।
    • ग्रामीण उद्यमिता: क्लस्टर आधारित विकास के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित और हस्तशिल्प उद्यमों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
      • मार्गदर्शन और वित्तपोषण सहायता के साथ ग्रामीण उद्यमिता केंद्रों की स्थापना की जानी चाहिये।
    • आकांक्षी ज़िलों को लक्षित करना: अविकसित क्षेत्रों में कौशल केंद्रों और औद्योगिक समूहों के निर्माण के लिये आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम का विस्तार करने की आवश्यकता है।
      • पिछड़े राज्यों में रोज़गार से जुड़े प्रोत्साहन प्रदान करके क्षेत्रीय असमानताओं को दूर किया जाना चाहिये।

    निष्कर्ष: 

    भारत का जनांकिकीय लाभांश आर्थिक विकास को गति देने का अवसर प्रदान करता है। लक्षित कौशल विकास कार्यक्रमों को लागू करके, रोज़गार सृजन को बढ़ावा देकर तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण के साथ शिक्षा को एकीकृत करके, भारत अपनी युवा आबादी की क्षमता का दोहन कर सकता है।

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