प्रश्न: भारत के विविध सांस्कृतिक लाभों को राष्ट्रीय विकास के लिये उपयोग करने में क्षेत्रीय असमानताएँ किस प्रकार बाधा उत्पन्न करती हैं? चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
दृष्टिकोण:
- भारत में क्षेत्रीय असमानताओं और सांस्कृतिक विविधता को परिभाषित कीजिये।
- भारत की सांस्कृतिक विविधता और राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा देने की इसकी क्षमता पर प्रकाश डालिये।
- क्षेत्रीय असमानताओं और क्षेत्रीय क्षमता पर उनके प्रभाव की व्याख्या कीजिये।
- असमानताओं को पाटने और विविधता का दोहन करने के लिये कदम सुझाते हुए निष्कर्ष निकालिये।
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परिचय:
क्षेत्रीय असमानता का तात्पर्य किसी देश के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में संसाधनों, अवसरों और विकास के असमान वितरण से है। इसके विपरीत, विविधता विभिन्न क्षेत्रों के बीच संस्कृति, भाषा, जातीयता और सामाजिक प्रथाओं में निहित अंतरों का प्रतिनिधित्व करती है। हालाँकि आर्थिक, सामाजिक और अवसंरचनात्मक विकास में क्षेत्रीय असमानताएँ भारत की समावेशी राष्ट्रीय विकास के लिये अपनी विविधता का पूरी तरह से उपयोग करने की क्षमता में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं।
मुख्य भाग:
भारत की सांस्कृतिक विविधता और राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा देने की इसकी क्षमता:
- पर्यटन: भारत की विविध सांस्कृतिक विरासत प्रतिवर्ष लाखों घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को आकर्षित करती है, जो सकल घरेलू उत्पाद एवं रोज़गार में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।
- उदाहरणों में राजस्थान के महल, केरल के सांस्कृतिक उत्सव और वाराणसी की आध्यात्मिक विरासत शामिल हैं।
- रचनात्मक उद्योग: हस्तशिल्प, बनारसी रेशम जैसे पारंपरिक वस्त्र एवं कथक व भरतनाट्यम जैसी प्रदर्शन कलाएँ भारत की सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करती हैं तथा स्थानीय और वैश्विक दोनों बाज़ारों का सृजन करती हैं।
- नवाचार और सॉफ्ट पावर: समुदायों के बीच विचारों और परंपराओं का आदान-प्रदान रचनात्मकता को बढ़ावा देता है तथा योग, बॉलीवुड व भारतीय व्यंजनों के माध्यम से भारत की वैश्विक सॉफ्ट पावर को सुदृढ़ करता है।
- आर्थिक विकास: सांस्कृतिक उद्योग और विरासत पर्यटन रोज़गार का सृजन करते हैं तथा क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देते हैं, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ परंपराएँ समृद्ध हैं लेकिन औद्योगिक बुनियादी अवसंरचना सीमित है।
- भारत सरकार का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 56 बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा जुटाना तथा पर्यटन क्षेत्र में लगभग 140 मिलियन नौकरियों का सृजन करना है।
क्षेत्रीय असमानताएँ और सांस्कृतिक क्षमता पर उनका प्रभाव:
- अपर्याप्त वित्तपोषण: आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में प्रायः सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिये संसाधनों की कमी होती है।
- उदाहरण के लिये, वारली चित्रकला और गोंड कला जैसे जनजातीय कला रूप अपर्याप्त वित्तपोषण एवं सीमित प्रदर्शन के कारण संघर्ष कर रहे हैं।
- स्मारकों की उपेक्षा: अविकसित क्षेत्रों में ऐतिहासिक स्थल, जैसे प्राचीन नालंदा के खंडहर, संरक्षण में अपर्याप्त निवेश के कारण प्रायः उपेक्षा का सामना करते हैं।
- बाज़ार तक पहुँच: मधुबनी पेंटिंग या चन्नपटना खिलौने जैसे पारंपरिक शिल्पों को निम्न स्तरीय बुनियादी अवसंरचना और विपणन समर्थन की कमी के कारण बाज़ार तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- पर्यटन अंतराल: समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर वाले लेकिन अपर्याप्त कनेक्टिविटी वाले क्षेत्र, जैसे कि छत्तीसगढ़ के जनजातीय क्षेत्र, पर्यटकों को आकर्षित करने में विफल रहते हैं, जिससे आर्थिक लाभ सीमित हो जाता है।
- प्रवासन: कम विकसित क्षेत्रों से लोग बेहतर अवसरों की तलाश में शहरी केंद्रों की ओर पलायन करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप स्थानीय परंपराओं और प्रथाओं के प्रसार में गिरावट आती है।
क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने के लिये उठाए गए कदम:
- समान संसाधन आवंटन: पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि जैसी नीतियों को पिछड़े क्षेत्रों में बुनियादी अवसंरचना, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ जैसे कार्यक्रम अंतर-क्षेत्रीय सांस्कृतिक समन्वय को बढ़ावा देते हैं तथा मतभेदों को दूर करते हैं।
- सांस्कृतिक उद्योगों के लिये समर्थन: सरकारी और निजी पहलों के माध्यम से स्थानीय शिल्प, प्रदर्शन कला तथा परंपराओं को बढ़ावा देना। उदाहरण के लिये, इंडिया हैंडमेड बाज़ार जैसे मार्केटिंग प्लेटफॉर्म कारीगरों को बाज़ार तक पहुँच बनाने में मदद करते हैं।
- समावेशी विकास कार्यक्रम: सांस्कृतिक रूप से समृद्ध लेकिन आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में शिक्षा, कौशल विकास और उद्यमिता पर ध्यान केंद्रित करना।
- पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि (BRGF) एक कार्यक्रम है जो विकास में क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के लिये देश के सभी राज्यों में 272 चिह्नित पिछड़े ज़िलों में क्रियान्वित किया गया है।
निष्कर्ष:
जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ रहा है, क्षेत्रीय विकास के प्रति अधिक संतुलित दृष्टिकोण यह सुनिश्चित कर सकता है कि हर क्षेत्र, चाहे उसकी आर्थिक स्थिति कुछ भी हो, राष्ट्र की सामूहिक सांस्कृतिक और आर्थिक प्रगति में योगदान दे सके। आने वाले वर्षों में समावेशी, संधारणीय और सामंजस्यपूर्ण राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा देने के लिये भारत की सांस्कृतिक विविधता की पूरी क्षमता का दोहन करना महत्त्वपूर्ण होगा।