प्रश्न: "लोक सेवा में नैतिक आचरण के लिये विवेक एक आवश्यक लेकिन अपर्याप्त मार्गदर्शक है।" चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
दृष्टिकोण:
- विवेक को परिभाषित करके उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- लोक सेवा में विवेक की भूमिका बताइये।
- केवल विवेक पर निर्भर रहने की चुनौतियों पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
विवेक, जोकि सही और गलत के संदर्भ में व्यक्ति की आंतरिक समझ है, नैतिक निर्णय लेने के लिये आवश्यक है, विशेष रूप से लोक सेवा में।
- यह ईमानदारी और आत्म-अनुशासन को प्रेरित करता है। हालाँकि व्यक्तिपरक पूर्वाग्रहों, सामाजिक अनुकूलन और स्थापित कानूनों तथा नैतिक दिशा-निर्देशों के साथ संघर्ष के कारण केवल विवेक अपर्याप्त हो सकता है।
मुख्य भाग:
लोक सेवा में विवेक की भूमिका:
- सत्यनिष्ठा के लिये नैतिक दिशा-निर्देश: विवेक लोक सेवकों को चुनौतीपूर्ण वातावरण में भी नैतिक रूप से सही निर्णय लेने के लिये प्रेरित करता है।
- उदाहरण के लिये, सत्येंद्र दुबे जैसे मुखबिर, जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण में भ्रष्टाचार को उजागर किया, ने दृढ़ विवेक से कार्य किया तथा साहस और ईमानदारी का परिचय दिया।
- सार्वजनिक विश्वास सुनिश्चित करना: एक सुविकसित विवेक अधिकारियों को व्यक्तिगत लाभ की तुलना में सार्वजनिक कल्याण को प्राथमिकता देने में मदद करता है, जिससे शासन में जनता का विश्वास सुदृढ़ होता है।
- आर्मस्ट्रांग पाम जैसे लोक सेवकों ने, जिन्होंने व्यक्तिगत धन और सामुदायिक सहायता से मणिपुर में सड़क का निर्माण कराया, लोगों की सेवा करने की ईमानदार प्रतिबद्धता के साथ कार्य किया।
केवल विवेक पर निर्भर रहने की चुनौतियाँ:
- व्यक्तिपरकता और पूर्वाग्रह: विवेक व्यक्तिगत अनुभवों, संस्कृति और समाजीकरण से प्रभावित होता है, जिसके कारण नैतिक निर्णयों में परिवर्तनशीलता आती है।
- उदाहरण के लिये, कुछ सामाजिक समूहों के प्रति पूर्वाग्रह अनजाने में ही किसी लोक सेवक के निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे अनुचित व्यवहार की संभावना बढ़ जाती है।
- संस्थागत मानदंडों के साथ टकराव: विवेक से प्रेरित निर्णय कभी-कभी नियमों या कानूनों के साथ असंगत हो सकता है, जिससे नैतिक दुविधाएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- उदाहरण के लिये, एक अधिकारी दया के कारण झुग्गीवासियों को बेदखल करने से बचना चाह सकता है, लेकिन कानूनी आदेशों के अनुसार ऐसी कार्रवाई की आवश्यकता हो सकती है। यहाँ व्यक्तिगत मूल्य कानून को लागू करने के कर्त्तव्यों के साथ संघर्ष कर सकते हैं।
- असंगत नैतिक मानक: एक व्यक्ति जिसे नैतिक मानता है, वह दूसरे व्यक्ति को अनुचित लग सकता है।
- इस तरह की संगतता की कमी लोक सेवा में निष्पक्षता को कमज़ोर कर सकती है। स्पष्ट संस्थागत संरचना के बिना, एक अधिकारी का विवेक-आधारित निर्णय दूसरे के निर्णय के विपरीत हो सकता है, जिससे अनिश्चितता उत्पन्न हो सकती है।
नैतिक आचरण का मार्गदर्शन करने के लिये विवेक की सराहना करने वाले संस्थागत फ्रेमवर्क:
- आचार संहिता और विनियमन: सिविल सेवा आचरण नियम और सूचना का अधिकार अधिनियम जैसे फ्रेमवर्क एक समान नैतिक दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि सभी सार्वजनिक अधिकारी पारदर्शिता एवं जवाबदेही के सुसंगत मानकों का पालन करें।
- प्रशिक्षण और नैतिक रूपरेखा: नैतिकता पर औपचारिक प्रशिक्षण लोक सेवकों को व्यक्तिगत विवेक को व्यावसायिक मानकों के साथ संरेखित करने में मदद करता है।
- उदाहरण के लिये, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, नैतिकता प्रशिक्षण आयोजित करती है जो मूल मूल्यों को स्थापित करती है तथा केवल व्यक्तिपरक विवेक पर निर्भरता को कम करती है।
- जवाबदेही के लिये संस्थागत तंत्र: केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) और लोकपाल जैसे निकाय जवाबदेही प्रदान करते हैं तथा सत्ता के दुरुपयोग को रोकते हैं, जिस पर व्यक्तिगत विवेक ध्यान नहीं दे सकता।
निष्कर्ष:
यद्यपि विवेक लोक सेवा में नैतिक व्यवहार का एक महत्त्वपूर्ण घटक है, केवल इस पर निर्भर रहना अपर्याप्त है। एक व्यापक दृष्टिकोण जो व्यक्तिगत नैतिकता को संस्थागत नैतिक फ्रेमवर्क, प्रशिक्षण और जवाबदेही तंत्र के साथ जोड़ता है, निष्पक्षता, पारदर्शिता एवं सार्वजनिक विश्वास को बनाए रखने के लिये आवश्यक है।