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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न: "लोक सेवा में निष्पक्षता के लिये अपने स्वयं के पूर्वाग्रहों को स्वीकार करना आवश्यक है।" क्या आप सहमत हैं? उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। (150 शब्द)

    14 Nov, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • वस्तुनिष्ठता को परिभाषित करके उत्तर प्रस्तुत कीजिये। 
    • इस बात पर तर्क दीजिये कि निष्पक्षता के लिये पूर्वाग्रह को स्वीकार करना क्यों महत्त्वपूर्ण है?
    • लोक सेवा में पक्षपात को प्रबंधित करने और कम करने के लिये उठाये जाने वाले कदमों पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये। 
    • उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय

    लोक सेवा में निष्पक्षता का मतलब है साक्ष्य, निष्पक्षता और निष्पक्षता के आधार पर निर्णय लेना, व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों या पक्षपातों से रहित होना। अपने पूर्वाग्रहों को स्वीकार करना, उन्हें दूर करने और न्यायसंगत शासन सुनिश्चित करने की दिशा में पहला कदम है। अगर पक्षपात को अनियंत्रित छोड़ दिया जाए, तो यह निर्णय को विकृत कर सकता है, जिससे अनुचित परिणाम सामने आ सकते हैं।

    मुख्य भाग: 

    पूर्वाग्रह को स्वीकार करना- निष्पक्षता के लिये महत्त्वपूर्ण: 

    • अचेतन पूर्वाग्रह निर्णयों को प्रभावित करते हैं: व्यक्तिगत पूर्वाग्रह, जो प्रायः अचेतन होते हैं, प्रभावित कर सकते हैं कि लोक सेवक डेटा की व्याख्या किस प्रकार करते हैं, मुद्दों का आकलन कैसे करते हैं या विविध समुदायों के साथ कैसे समन्वय करते हैं। 
      • इन पूर्वाग्रहों के बारे में जागरूकता वास्तव में निष्पक्ष और संतुलित निर्णय लेने के लिये आवश्यक है।
    • पारदर्शिता और विश्वास: पूर्वाग्रहों को स्वीकार करके, लोक सेवक पारदर्शिता बढ़ाते हैं, जनता और सहकर्मियों के बीच विश्वास को बढ़ावा देते हैं। यह खुलापन नैतिक मानकों तथा जवाबदेही के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
      • महानगरीय क्षेत्रों के प्रति पूर्वाग्रह का अभिनिर्धारण करने से आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम जैसी पहल शुरू हुई, जिससे छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जैसे पिछड़े क्षेत्रों का उत्थान हुआ।
    • बेहतर नीति-निर्माण: व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों का अभिनिर्धारण करने से अधिक समावेशी नीति-निर्माण होता है, क्योंकि अधिकारी विभिन्न दृष्टिकोणों एवं विभिन्न हितधारकों की आवश्यकताओं पर विचार करते हैं।
    • लैंगिक संवेदनशीलता सुनिश्चित करना: पितृसत्तात्मक पूर्वाग्रहों को स्वीकार करने से बेटी, बचाओ, बेटी पढ़ाओ’  जैसी योजनाएँ शुरू की गईं, जिससे हरियाणा में बालिकाओं की जीवन दर और शिक्षा में सुधार हुआ।
    • सामाजिक न्याय को बढ़ावा: जातिगत पूर्वाग्रह से निपटने वाले न्यायालय, जैसे कि सर्वोच्च न्यायालय ने मॉडल जेल और सुधार सेवा अधिनियम, 2023 में एक प्रावधान जोड़ने का आदेश दिया, ताकि कारागारों में सभी प्रकार के जातिगत भेदभाव पर रोक लगाई जा सके। यह न्याय प्रदान करने में निष्पक्षता को दर्शाता है।

    लोक सेवा में पूर्वाग्रह को प्रबंधित करने और कम करने के कदम: 

    • अंतर्निहित पूर्वाग्रह प्रशिक्षण और संवेदनशीलता कार्यशालाएँ: अंतर्निहित पूर्वाग्रहों पर नियमित कार्यशालाएँ लोक सेवकों को सामान्य पूर्वाग्रहों (जैसे- लिंग, जाति, सामाजिक-आर्थिक स्थिति) के संदर्भ में शिक्षित कर सकती हैं। इस तरह के प्रशिक्षण से जागरूकता बढ़ाने, सहानुभूति को प्रोत्साहित करने और इन पूर्वाग्रहों का मुकाबला करने के लिये रणनीतियाँ प्रदान करने में मदद मिलती है।
    • मानकीकृत, साक्ष्य-आधारित निर्णय लेना: भर्ती या नीति मूल्यांकन जैसे निर्णयों के लिये एक समान, डेटा-संचालित प्रक्रियाएँ और मानदंड स्थापित करने से व्यक्तिपरक निर्णय को कम किया जा सकता है।
    • विविध दृष्टिकोणों को प्रोत्साहित करना: विभिन्न पृष्ठभूमियों (लिंग, क्षेत्र, जाति, सामाजिक-आर्थिक स्थिति) के लोगों के साथ टीम बनाने से व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों को संतुलित करने में मदद मिलती है। 
      • विविध दृष्टिकोण समग्र विचार-विमर्श के लिये सहायक होते हैं तथा निर्णय लेने में संभावित कमियों की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं।
    • अनाम समीक्षा तंत्र: भर्ती या संसाधन आवंटन जैसी स्थितियों में, जानकारी को अनामित/अज्ञातनाम करने (जैसे- नाम, क्षेत्र और जनांकिकी को हटाना) से पहचान या पृष्ठभूमि से संबंधित पूर्वाग्रहों को रोका जा सकता है तथा यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि निर्णय केवल योग्यता या आवश्यकता के आधार पर लिये जाएँ।
    • जवाबदेही तंत्र स्थापित करना: नियमित ऑडिट और निर्णयों की समीक्षा करने वाली निगरानी संस्थाएँ पक्षपात के पैटर्न का पता लगाने में मदद कर सकती हैं। इन ऑडिट से मिलने वाली प्रतिक्रियाएँ सुधार का मार्गदर्शन कर सकती हैं और लोक सेवकों के बीच जवाबदेही को बढ़ावा दे सकती हैं।

    निष्कर्ष:

    लोक सेवा में पूर्वाग्रहों को स्वीकार करना कमज़ोरी नहीं बल्कि ताकत है, क्योंकि यह निष्पक्षता, समावेशिता और विश्वास की नींव रखता है। निष्पक्षता तभी प्राप्त की जा सकती है जब लोक सेवक सचेत रूप से अपनी प्रवृत्तियों को पहचान कर उनका समाधान करें, यह सुनिश्चित करते हुए कि निर्णय संवैधानिक मूल्यों और सामाजिक कल्याण के अनुरूप हों।

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