प्रश्न: स्टॉकहोम सम्मेलन 1972 के बाद से भारत ने पर्यावरण शासन में क्या प्रगति की है और जैवविविधता संरक्षण के क्षेत्र में इन परिवर्तनों का क्या प्रभाव पड़ा है? चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- स्टॉकहोम सम्मेलन- 1972 के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- स्टॉकहोम सम्मेलन- 1972 के बाद पर्यावरण शासन के प्रति भारत के दृष्टिकोण का विकास, जैव विविधता संरक्षण पर विकासशील शासन के प्रभावों पर प्रकाश डालिये।
- स्थायी मुद्दों पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
स्टॉकहोम सम्मेलन- 1972 ने वैश्विक पर्यावरण शासन में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ ला दिया, जिसने भारत की पर्यावरण नीतियों को आयाम दिया तथा सतत् विकास एवं जैव विविधता संरक्षण को प्राथमिकता दी।
पिछले दशकों में, भारत का पर्यावरण शासन आधारभूत कानूनों की स्थापना से लेकर अंतर्राष्ट्रीय समझौतों, सामुदायिक भागीदारी और नवीन संरक्षण रणनीतियों को शामिल करने तक आगे बढ़ा है।
मुख्य भाग:
पर्यावरण शासन के प्रति भारत के दृष्टिकोण का विकास —
- 1970-1980 का दशक: पर्यावरण कानून की नींव
- जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 ने जल गुणवत्ता प्रबंधन के लिये प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्थापना की।
- वन संरक्षण अधिनियम, 1980 ने निर्वनीकरण (वनों की कटाई) और वन भूमि के परिवर्तन पर प्रतिबंध लगा दिया।
- 1990 का दशक: वैधानिक तंत्र का सुदृढ़ीकरण
- भोपाल गैस त्रासदी के बाद, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 ने सरकार को वायु, जल और भूमि में प्रदूषण को विनियमित करने का अधिकार दिया।
- वन्यजीव संरक्षण संशोधन, 1991 ने संरक्षित प्रजातियों की सूची का विस्तार किया तथा अवैध शिकार के लिये दंड में वृद्धि की।
- 2000 का दशक: अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों का एकीकरण
- जैव विविधता अधिनियम, 2002 जैविक संसाधनों तक पहुँच को विनियमित करता है तथा स्थानीय समुदायों के साथ लाभ-साझाकरण को बढ़ावा देता है।
- वन अधिकार अधिनियम, 2006 ने वनों में रहने वाले समुदायों के अधिकारों को मान्यता दी, जिससे संरक्षण प्रयासों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित हुई।
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC), 2008 में जैव विविधता संरक्षण के लिये ग्रीन इंडिया मिशन जैसी पहल शामिल थी।
- 2010 का दशक: समुदाय-केंद्रित शासन
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT), 2010 ने पर्यावरण संबंधी शिकायतों के समाधान और पर्यावरण संरक्षण कानूनों को लागू करने के लिये एक मंच प्रदान किया।
- 2020 का दशक: नवीन, जलवायु-अनुकूल रणनीतियाँ
- CAMPA, 2020 ने निर्वनीकरण (वनों की कटाई) के परमिट से प्राप्त धनराशि को वनीकरण प्रयासों की ओर निर्देशित किया।
- हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिये राष्ट्रीय मिशन का ध्यान हिमालयी क्षेत्र की जैव विविधता को संरक्षित करने पर केंद्रित है।
- वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 वन संरक्षण के दायरे का विस्तार करता है, विकास और सुरक्षा परियोजनाओं के लिये छूट प्रदान करता है, तथा इको-टूरिज़्म एवं वन्यजीव पहलों के माध्यम से स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाता है।
जैव विविधता संरक्षण पर विकासशील शासन का प्रभाव:
- संरक्षित क्षेत्रों और जैव विविधता हॉटस्पॉट का विस्तार: भारत ने अपने संरक्षित क्षेत्रों का विस्तार किया है और अब संरक्षित क्षेत्रों की संख्या 998 है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 5.28% है।
- उदाहरण: पश्चिमी घाट को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में स्थापित करने से स्थानिक प्रजातियों के संरक्षण के प्रयासों में वृद्धि हुई है।
- सफल प्रजाति संरक्षण कार्यक्रम भारत के प्रमुख संरक्षण कार्यक्रमों ने बाघों, हाथियों और गैंडों जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों की आबादी को पुनर्जीवित करने में मदद की है।
- उदाहरण: वर्ष 1973 में शुरू की गई प्रोजेक्ट टाइगर के कारण बाघों की जीवसंख्या में वृद्धि हुई और अब भारत में विश्व के 70% से अधिक वन्य बाघ निवास करते हैं।
- पारंपरिक ज्ञान और सामुदायिक संरक्षण को बढ़ावा देना: जैव विविधता प्रशासन ने संरक्षण प्रथाओं में पारंपरिक ज्ञान और सामुदायिक भागीदारी को तेज़ी से एकीकृत किया है।
- उदाहरण: नागोया प्रोटोकॉल प्रतिबद्धताएँ और जन जैव विविधता रजिस्टर स्थानीय समुदायों को स्वदेशी जैव विविधता का दस्तावेज़ीकरण एवं संरक्षण करने के लिये सशक्त बनाते हैं, तथा औषधीय पौधों व स्थानीय वनस्पतियों के संधारणीय उपयोग का समर्थन करते हैं।
- जलवायु-अनुकूल जैव विविधता रणनीतियाँ: जलवायु संबंधी चिंताओं को जैव विविधता संरक्षण में एकीकृत करने से भारत जलवायु परिवर्तन के पारिस्थितिक प्रभावों का समाधान करने में सक्षम हुआ है।
- उदाहरण: हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के राष्ट्रीय मिशन ने बढ़ते तापमान से प्रभावित उच्च तुंगता पर निवास करने वाली प्रजातियों के लिये अनुकूली संरक्षण तकनीकें शुरू की हैं।
- बेहतर पर्यावरण अनुपालन और प्रवर्तन तंत्र: राष्ट्रीय हरित अधिकरण के माध्यम से पर्यावरण अनुपालन में सुधार हुआ है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र की बेहतर सुरक्षा संभव हुई है।
- उदाहरण: NGT के हस्तक्षेप से अवैध खनन गतिविधियों पर रोक लगने के कारण राजस्थान में अरावली पर्वतमाला, जो विविध प्रकार की वनस्पतियों और जीवों का आवास है, की सुरक्षा बढ़ी है।
- हालाँकि, इन प्रगतियों के बावजूद, निम्नांकित मुद्दे बने हुए हैं:
- हाल ही में पारित वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 जैव विविधता को खतरा पहुँचाने वाली बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं को छूट प्रदान करता है।
- जैव विविधता (संशोधन) अधिनियम, 2021 लाभ साझाकरण प्रावधानों को निर्धारित करने में स्थानीय समुदायों की प्रत्यक्ष भूमिका को प्रतिबंधित करता है और संरक्षण में स्थानीय शासन को कमज़ोर करता है।
- चार धाम राजमार्ग और हसदेव अरण्य में खनन जैसी परियोजनाओं के कारण आवास का नुकसान हुआ है जिससे प्रजातियाँ खतरे में पड़ गई हैं।
निष्कर्ष:
स्टॉकहोम सम्मेलन- 1972 के बाद से भारत का पर्यावरण शासन काफी विकसित हुआ है। इस विकास ने जैव विविधता संरक्षण पर सकारात्मक प्रभाव डाला है। हालाँकि, दीर्घकालिक पारिस्थितिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये भारत को उभरती पर्यावरणीय चुनौतियों, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन और आवास ह्रास से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिये अपनी नीतियों को अनुकूलित करना जारी रखना चाहिये।