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प्रश्न :
प्रश्न: भारत में श्रम बल की अनौपचारिक संरचना समावेशी विकास की दिशा में क्या चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है? कमज़ोर श्रमिकों की सुरक्षा करते हुए अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने के लिये संभावित समाधान सुझाइये। (250 शब्द)
13 Nov, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- अनौपचारिक कार्यबल के प्रभुत्व पर प्रकाश डालते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- समावेशी विकास पर अनौपचारिक कार्यबल का प्रभाव बताइये।
- अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने और कमज़ोर श्रमिकों की सुरक्षा के लिये संभावित समाधान सुझाइये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारत का कार्यबल मुख्य रूप से अनौपचारिक है, जिसमें 90% से अधिक कर्मचारी अनौपचारिक रोज़गार में संलग्न हैं। यह व्यापक अनौपचारिकता समावेशी विकास को प्राप्त करने के लिये चुनौतियाँ पेश करती है, क्योंकि इसके परिणामस्वरूप प्रायः नौकरी की असुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा तक सीमित पहुँच और उत्पादकता में कमी आती है।
मुख्य भाग:
समावेशी विकास पर अनौपचारिक कार्यबल का प्रभाव
- सीमित सामाजिक सुरक्षा और कल्याण लाभ: अनौपचारिक श्रमिकों के पास प्रायः आवश्यक कल्याणकारी उपायों, जैसे कि भविष्य निधि, पेंशन, स्वास्थ्य बीमा और मातृत्व लाभ तक पहुँच नहीं होती है, जिससे उनकी असुरक्षा बढ़ जाती है।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, भारत के केवल 24% कार्यबल के पास सामाजिक सुरक्षा कवरेज है, जो सामाजिक हाशिये पर जाने और आर्थिक असमानता को बढ़ाता है।
- आय अस्थिरता और गरीबी: अनौपचारिक श्रमिकों की आय औसतन औपचारिक श्रमिकों की तुलना में 19% कम है (विश्व बैंक) और उन्हें अप्रत्याशित आय का सामना करना पड़ता है और नौकरी की सुरक्षा का अभाव होता है, जिससे गरीबी से बचना तथा निरंतर आर्थिक विकास में योगदान करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- रोज़गार में लैंगिक असमानता: महिला श्रमिकों का एक बहुत बड़ा हिस्सा प्रायः कम वेतन वाले, अनियमित नौकरियों में, मातृत्व लाभ या कार्यस्थल सुरक्षा के बिना अनौपचारिक रोज़गार में लगा हुआ है।
- भारत में महिलाओं का 81.8% रोज़गार अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में केंद्रित (ILO) है।
- कर राजस्व और संसाधन आवंटन में कमी: अनौपचारिक क्षेत्र बड़े पैमाने पर कर के दायरे से बाहर काम करता है, जिसके कारण सरकार का राजस्व कम होता है, जो स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और बुनियादी अवसंरचना पर सार्वजनिक व्यय को बाधित करता है।
- अनुमान है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 50% अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा उत्पन्न होता है, जिससे विकास के लिये संभावित कर संग्रह और राजकोषीय संसाधनों में पर्याप्त अंतर उत्पन्न होता है।
- ऋण और वित्तीय समावेशन तक सीमित पहुँच: अनौपचारिक श्रमिकों और उद्यमों के पास प्रायः औपचारिक वित्तीय रिकॉर्ड का अभाव होता है, जिससे औपचारिक बैंकिंग चैनलों से ऋण प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है, जो उनके व्यवसाय के विकास एवं परिसंपत्ति निर्माण को सीमित करता है।
अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने और कमज़ोर श्रमिकों की सुरक्षा के लिये संभावित समाधान
- सामाजिक सुरक्षा और कल्याण कार्यक्रमों का विस्तार: प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन (PMSYM) और आयुष्मान भारत का विस्तार किया जाना चाहिये ताकि अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों को व्यापक रूप से कवर किया जा सके तथा उन्हें पेंशन, स्वास्थ्य बीमा एवं आय सहायता तक पहुँच प्रदान की जा सके।
- इसके लिये सभी श्रमिकों के लिये सुलभ एक एकीकृत सामाजिक सुरक्षा पोर्टल बनाने हेतु केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोग की आवश्यकता होगी।
- कर और नीति समर्थन के माध्यम से औपचारिक रोज़गार को प्रोत्साहन: सरकार उन कंपनियों को कर में छूट और सब्सिडी दे सकती है जो अनौपचारिक श्रमिकों को औपचारिक रोज़गार में स्थानांतरित करती हैं, विशेष रूप से वस्त्र एवं निर्माण जैसे श्रम-गहन क्षेत्रों में।
- कौशल विकास और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का कार्यान्वयन: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) को अनौपचारिक श्रमिकों के प्रशिक्षण को प्राथमिकता देनी चाहिये, तथा उन्हें ऐसे कौशल से सुसज्जित करना चाहिये जिससे औपचारिक रोज़गार प्राप्त करना आसान हो सके।
- अनुपालन को सरल बनाना और विनियामक बोझ को कम करना: श्रम संहिताओं को सरल बनाना और छोटे व्यवसायों के लिये अनुपालन लागत को कम करना अनौपचारिक उद्यमों को औपचारिक रूप से पंजीकरण एवं संचालन के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।
- वेतन संहिता और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य स्थिति संहिता को सुव्यवस्थित एवं प्रभावी ढंग से क्रियान्वित किया जाना चाहिये।
- डिजिटल वित्तीय समावेशन और औपचारिक ऋण सुलभता को बढ़ावा देना: जन धन-आधार-मोबाइल (JAM) ट्रिनिटी जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्मों का विस्तार अनौपचारिक श्रमिकों को औपचारिक बैंकिंग और ऋण सुविधाओं तक पहुँच प्रदान करने में सक्षम बना सकता है, जिससे उनकी वित्तीय स्थिरता बढ़ेगी एवं बचत को बढ़ावा मिलेगा।
निष्कर्ष:
समावेशी विकास को प्राप्त करने के लिये भारत के अनौपचारिक कार्यबल को औपचारिक बनाना आवश्यक है। सहायक नीतियों को लागू करके, वित्तीय समावेशन को बढ़ाकर और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करके, भारत एक अधिक न्यायसंगत एवं उत्पादक अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर हो सकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि विकास का लाभ समाज के सभी वर्गों को मिले।
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