प्रश्न: "भारत का आरसीईपी से बाहर रहने का निर्णय अन्य व्यापार समझौतों को आगे बढ़ाने के संदर्भ में आर्थिक हितों और सुरक्षा चिंताओं के बीच किस प्रकार एक रणनीतिक संतुलन को प्रतिबिंबित करता है?" चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
दृष्टिकोण:
- आर.सी.ई.पी. पर हस्ताक्षर करने तथा भारत के इससे बाहर रहने के निर्णय का उल्लेख करते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- आर.सी.ई.पी. से बाहर निकलने के कारण बताइये।
- द्विपक्षीय और क्षेत्रीय समझौतों को आगे बढ़ाने की भारत की रणनीति पर प्रकाश डालिये।
- भारत के रणनीतिक दृष्टिकोण के लाभ और चुनौतियों पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
- संतुलित तरीके से उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
नवंबर 2019 में, भारत ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) से बाहर रहने का विकल्प चुन, जो एक व्यापार समझौता है जिसमें 15 देश, जिनकी वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 30% हिस्सेदारी है, शामिल हैं।
- यह निर्णय भारत की आर्थिक महत्त्वाकांक्षाओं को सुरक्षा चिंताओं के साथ, विशेष रूप से इसके व्यापार घाटे, चीन के उदय और मज़बूत घरेलू उद्योगों की आवश्यकता के मद्देनज़र संतुलित करने के सामरिक दृष्टिकोण को दर्शाता है।
मुख्य भाग:
RCEP से बाहर निकलने के कारण
- व्यापार घाटे की चिंताएँ: RCEP देशों, विशेषकर चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा काफी अधिक रहा है।
- RCEP में शामिल होने से यह असंतुलन और बढ़ सकता था, जिससे घरेलू उद्योगों को नुकसान हो सकता था।
- वर्ष 2024 की पहली छमाही में, चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 41.9 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया, जो इसमें शामिल आर्थिक जोखिमों को उजागर करता है।
- घरेलू उद्योगों का संरक्षण: ऐसी आशंका थी कि RCEP से सस्ते माल का प्रवाह बढ़ेगा, जिससे कृषि और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
- उदाहरण के लिये, डेयरी उद्योग को न्यूज़ीलैंड जैसे देशों से प्रतिस्पर्द्धा का भय था, जिसका स्थानीय किसानों पर प्रभाव पड़ सकता था।
- गैर-टैरिफ बाधाएँ और बाज़ार अभिगम: भारत ने अपने सेवा क्षेत्र के लिये गैर-टैरिफ बाधाओं और अधिक बाज़ार अभिगम पर आश्वासन मांगा, जिसे RCEP वार्ता में पर्याप्त रूप से पूरा नहीं किया गया था।
- भारत के सेवा निर्यात के लिये अनुकूल फ्रेमवर्क का अभाव एक महत्त्वपूर्ण चिंता का विषय था।
- भारत-EFTA मुक्त व्यापार समझौता: मार्च 2024 में, भारत ने यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) के साथ एक ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- इस समझौते में EFTA सदस्यों द्वारा अगले 15 वर्षों में भारत में 100 बिलियन डॉलर का निवेश करने तथा दस लाख नौकरियाँ सृजित करने की प्रतिबद्धता शामिल है।
द्विपक्षीय और क्षेत्रीय समझौतों को आगे बढ़ाने की भारत की रणनीति:
- व्यापार समझौतों का विविधीकरण: भारत ने जापान, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ जैसे देशों के साथ छोटे, अधिक प्रबंधनीय समझौतों के माध्यम से व्यापार संबंधों को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित किया है।
- उदाहरण: मार्च 2024 में, भारत ने यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) के साथ एक ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- CAPE कार्यान्वयन के बाद वित्त वर्ष 23 में UAE को भारत का निर्यात 11.8% बढ़कर 31.3 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया।
- हिंद-प्रशांत और सुरक्षा साझेदारी पर जोर: अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता (Quad) में भारत की भागीदारी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग के साथ आर्थिक सहयोग को संतुलित करने वाली साझेदारी के लिये इसकी प्राथमिकता को दर्शाती है।
- भारत-प्रशांत आर्थिक रूपरेखा (IPEF), जिसमें भारत शामिल हुआ, चीन के प्रभाव से बाहर के देशों के साथ आर्थिक संरेखण का प्रतिनिधित्व करता है, जो सुरक्षा के प्रति सजग व्यापार नीतियों के लिये भारत की इच्छा को मज़बूत करता है।
- घरेलू क्षमताओं को सुदृढ़ करना: सरकार ने भारतीय उद्योगों को वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाने, आयात पर निर्भरता कम करने और घरेलू और क्षेत्रीय स्तर पर अनुकूल आपूर्ति शृंखलाओं का निर्माण करने के लिये आत्मनिर्भर भारत जैसे कई कार्यक्रम शुरू किये हैं।
भारत के रणनीतिक दृष्टिकोण के लाभ और चुनौतियाँ:
निष्कर्ष:
RCEP से बाहर रहने का भारत का निर्णय एक सूक्ष्म रणनीति को दर्शाता है जो घरेलू आर्थिक अनुकूलन और राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देता है। भारत का उद्देश्य चुनिंदा व्यापार साझेदारी को आगे बढ़ाकर और आत्मनिर्भर क्षमताओं का निर्माण करके अपनी आर्थिक संप्रभुता पर नियंत्रण बनाए रखते हुए वैश्वीकरण के लाभ प्राप्त करना है।