प्रश्न: उच्च सकल घरेलू उत्पाद (GDP) विकास दर हासिल करने के बावजूद, भारत मानव विकास सूचकांकों में अपेक्षित प्रगति नहीं कर पाया है। इस विसंगति के कारणों का विश्लेषण कीजिये और समावेशी विकास सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइये। (250 शब्द)
उत्तर :
दृष्टिकोण:
- भारत की मज़बूत GDP वृद्धि और मानव विकास सूचकांकों के बीच असमानता को उजागर करते हुए इसकी पृष्ठभूमि प्रस्तुत की गई है।
- GDP वृद्धि और मानव विकास के बीच विसंगति के कारण बताइये।
- समावेशी विकास सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
वित्त वर्ष 2023-24 में सकल घरेलू उत्पाद की 7.6% की मज़बूत वृद्धि दर के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था अनुकूल बनी रही, जिससे वह तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गई।
- हालाँकि यह आर्थिक प्रगति मानव विकास के क्षेत्र में समान रूप से परिलक्षित नहीं हुई है, जो मानव विकास सूचकांक (HDI) 2023-24 में भारत की रैंकिंग से स्पष्ट है, 193 देशों में से भारत 134वें स्थान पर है।
मुख्य भाग:
GDP वृद्धि और मानव विकास के बीच विसंगति के कारण
- धन का असमान वितरण और क्षेत्रीय असंतुलन
- धन संकेंद्रण: ऑक्सफैम वर्ष 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, केवल 5% भारतीयों के पास देश की 60 प्रतिशत से अधिक संपत्ति है, जिससे आय में भारी असमानता उत्पन्न हो रही है, जो स्वास्थ्य और शिक्षा तक समान पहुँच में बाधा उत्पन्न करती है।
- शहरी-ग्रामीण विभाजन: जबकि शहरी क्षेत्रों में सेवाओं तक बेहतर पहुँच है, ग्रामीण क्षेत्र संसाधनों से वंचित हैं, वहाँ बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छता और शिक्षा के बुनियादी ढाँचे का अभाव है।
- अपर्याप्त स्वास्थ्य अवसंरचना
- कम स्वास्थ्य व्यय: आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 2.1% है, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता सीमित हो गई है और लोगों को अपनी आय का बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य व्यय पर खर्च करना पड़ता है।
- खराब स्वास्थ्य परिणाम: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) के अनुसार, देश में कुपोषण और बाल बौनेपन की दर 35.5% है, जो अधिक प्रभावी तथा लक्षित स्वास्थ्य कार्यक्रमों की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- शैक्षिक असमानताएँ और गुणवत्ता संबंधी चिंताएँ
- पहुँच और गुणवत्ता में अंतर:हालाँकि प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन दर उच्च है, लेकिन सीखने के परिणामों में अभी भी उल्लेखनीय कमियाँ बनी हुई हैं।
- ASER 2022 रिपोर्ट के अनुसार, पाँचवीं कक्षा के केवल 42.8% बच्चे कक्षा 2 के स्तर का पाठ पढ़ने में सक्षम हैं, जो बच्चों के पढ़ने के कौशल में गिरावट का संकेत देता है।
- कौशल विसंगति: आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, भारत के केवल 51.25% स्नातक ही रोज़गार योग्य हैं तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल विकास में महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं।
- सीमित सामाजिक सुरक्षा और रोज़गार के अवसर
- रोज़गार संबंधी मुद्दे: उच्च सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि के बावजूद पर्याप्त रोज़गार सृजन नहीं हुआ है।
- अप्रैल 2023 में बेरोज़गारी दर, विशेष रूप से युवाओं में, 8.11% तक पहुँच गई (CMIE डेटा), जो विकास और आजीविका के बीच असंतुलन को दर्शाती है।
- सामाजिक सुरक्षा घाटा: वर्तमान में 400 मिलियन कार्यबल में से केवल लगभग 35 मिलियन लोगों के पास वृद्धावस्था आय संरक्षण के रूप में औपचारिक सामाजिक सुरक्षा तक पहुँच है, जिससे एक बड़ा वर्ग आर्थिक समस्याओं के प्रति असुरक्षित रहता है।
- पर्यावरण और पारिस्थितिकी चुनौतियाँ
- प्रदूषण और स्वास्थ्य प्रभाव: IQAir के अनुसार, भारत विश्व में तीसरा सबसे प्रदूषित देश है, जिसके 42 शहर प्रदूषण के मामले में दुनिया के 50 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में शामिल हैं।
- जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता: जलवायु संबंधी चुनौतियाँ, जैसे अत्यधिक गर्म लहरें और अचानक सूखा, कृषि को प्रभावित करती हैं तथा विस्थापन का कारण बनती हैं, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण आजीविका एवं मानव विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
समावेशी विकास सुनिश्चित करने के उपाय:
- स्वास्थ्य और शिक्षा में सार्वजनिक निवेश में वृद्धि
- स्वास्थ्य बजट में वृद्धि: प्राथमिक और निवारक स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान केंद्रित करते हुए स्वास्थ्य देखभाल व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 4-5% तक बढ़ाने से स्वास्थ्य परिणामों में सुधार हो सकता है और असमानता कम हो सकती है।
- शिक्षा सुधार: कौशल अंतर को पाटने और रोज़गार क्षमता में सुधार के लिये व्यावसायिक शिक्षा, डिजिटल शिक्षा तथा क्षेत्रीय भाषा निर्देश पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के लक्ष्यों को केंद्रित करना है।
- लक्षित कल्याण कार्यक्रमों के माध्यम से असमानताओं को दूर करना
- सामाजिक सुरक्षा तंत्र को सशक्त करना: आयुष्मान भारत और प्रधानमंत्री जन धन योजना जैसी योजनाओं के अंतर्गत कवरेज का विस्तार करने से हाशिये पर पड़े समूहों के लिये वित्तीय और स्वास्थ्य सुरक्षा तक पहुँच में सुधार हो सकता है।
- प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT): कल्याणकारी लाभों के समय पर और प्रभावी वितरण को सुनिश्चित करने के लिये DBT (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) प्रणाली में सुधार करके कमज़ोर वर्गों को सशक्त किया जा सकता है, जिससे गरीबी में कमी तथा सामाजिक सुरक्षा की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाया जा सकता है।
- रोज़गार और कौशल विकास को बढ़ावा देना
- कौशल भारत और स्टार्टअप इंडिया कार्यक्रम: उद्योग-संरेखित पाठ्यक्रम के साथ कौशल विकास कार्यक्रमों को नया रूप देने से, विशेष रूप से AI और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे उभरते क्षेत्रों में, रोज़गार सृजन तथा उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है।
- MSME क्षेत्र को समर्थन: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) के लिये लक्षित सहायता, जो रोज़गार का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, क्षेत्रों में रोज़गार वृद्धि को प्रोत्साहित कर सकता है।
- सतत् एवं हरित विकास पर ध्यान केंद्रित करना
- नवीकरणीय ऊर्जा निवेश: भारत की COP26 प्रतिबद्धताओं के अंतर्गत नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं का विस्तार, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, स्थायी रोज़गार के अवसर उत्पन्न कर सकता है और पर्यावरणीय क्षरण को कम कर सकता है।
- जलवायु-अनुकूल कृषि को बढ़ावा देना: प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) जैसे कार्यक्रमों को ग्रामीण आजीविका और खाद्य सुरक्षा की रक्षा के लिये जलवायु-अनुकूल कृषि तकनीकों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- डेटा संग्रह और नीति कार्यान्वयन में सुधार
- वास्तविक समय डेटा निगरानी: स्वास्थ्य, रोज़गार और गरीबी पर निगरानी रखने के लिये वास्तविक समय डेटा का लाभ उठाने से सामाजिक कार्यक्रमों के लक्षित वितरण में सुधार हो सकता है।
- विकेंद्रीकृत शासन: स्थानीय शासन को सशक्त करना ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कल्याणकारी योजनाएँ ज़मीनी स्तर तक, विशेष रूप से वंचित क्षेत्रों में, प्रभावी रूप से पहुँच सकें।
निष्कर्ष:
केवल उच्च GDP वृद्धि हासिल करना भारत के सामने मौजूद जटिल सामाजिक चुनौतियों का समाधान नहीं कर सकता। मानव संसाधन में निवेश, क्षेत्रीय असमानताओं को समाप्त करना, सतत् विकास को बढ़ावा देना और सामाजिक सुरक्षा की सुनिश्चितता से भारत एक अधिक समावेशी तथा संतुलित विकास मॉडल प्राप्त कर सकता है।